‘इन्दोरी’ की अभिलाषा!
चाह नहीं, मैं पनीर के,
पकौड़ों से तौला जाऊं
चाह नहीं मैं सय्याजी के,
बुफे के लालच से ललचाऊँ
चाह नहीं सराफे की गलियों में,
हे हरि पाया जाऊं,
चाह नहीं ५६ दुकान पे,
घूम भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे दे देना ओ बनमाली,
उस पथ का कर्फ्यू पास एक,
सेंव की दुकान पर लाइन लगाने,
जिस पथ पर जाएँ इन्दोरी अनेक!
– समीर शर्मा
11 April 2020 at 5:16 PM ·
Disclaimer: कृपा कर इसे किसी राजनीति या साहित्य से न जोड़ा जाये, यह पूर्णत: हास्य और मनोरंजन हेतु खाली दिमाग की उपज है! ये कविता पुष्प की अभिलाषा से प्रेरित होकर इस लॉक डाउन में सेंव की एक इन्दोरी के जीवन में महत्ता के आत्मज्ञान से निकली है! इसकी प्रेरणा एक कठोर ‘इन्दोरी’ विनय यादव जी के SOS सेंव कॉल से मिली है!
– समीर शर्मा