विजय तांबट चला रहा है गुरू साटम गिरोह
- गुरू साटम गिरोह की कमान विजय के हाथ
- विदेश में खामोश बैठा है गुरू साटम
- डॉ. दत्ता सामंत हत्याकांड का आरोपी है विजय
- दक्षिण अफ्रिकी देशों में कहीं छुपा है विजय
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 17 जून 2019
विजय पुरुषोत्तम साल्वी उर्फ विजय तांबट उर्फ विजय भाई वह नाम है, जो इन दिनों मुंबई अंडरवर्ल्ड में उभर कर सामने आ रहा है। विजय तांबट विख्यात यूनियन लीडर डॉ. दत्ता सामंत की दिनदहाड़े हत्या करने वाले हमलावर दस्ते का सुपारी हत्यारा है।
गुरू गिरोह का नया खेवनहार
विजय तांबट के बारे में यह खबर छन कर सामने आई है कि वह अब गुरू गिरोह का संचालन कर रहा है।
पता चला है कि इसके लिए विजय तांबट को गुरू साटम ने ही तैयार किया है। गुरू साटम का इरादा है कि उसके इशारे पर मुंबई में विजय काम करे। खुद गुरू साटम कुछ नहीं करेगा। वह शांत बैठा है। यही कारण है कि उसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं मिल रही है।
गुरू को डर है कि संतोष शेट्टी और बंटी पांडे की तरह मुंबई पुलिस की अपराध शाखा भी उस तक न पहुंच जाए। इसके चलते विजय को सामने रख कर वह भूमिगत हो गया है।
विजय तांबट है कहां?
दत्ता सामंत हत्याकांड में शामिल रहा विजय ताबंट इन दिनों किसी दक्षिण अफ्रिकी देश में डेरा डाले हुए है।
विजय तांबट ने दी रवि की टिप?
अंडरवर्ल्ड में यह सूचना उड़ी हुई है कि सेनेगल में रवि पुजारी उर्फ आरपी की गिरफ्तारी के पीछे विजय तांबट का हाथ हो सकता है। यह संभावना है कि गुरू और रवि की आपसी दुश्मनी के बीच में विजय एक मोहरा बन गया है।
यह जानकारी निकल कर सामने आ रही है कि पुलिस को सूचना देकर रवि को गिरफ्तार करवाने में उसका भी हाथ हो सकता है।
विजय तांबट की हिस्ट्रीशीट
मुंबई में रहते हुए विजय ने नाना कंपनी के लिए न केवल हफ्तावसूली की बल्कि सुपारी लेकर हत्याएं कीं। उसके खिलाफ कई गंभीर मामले कई पुलिस थानों में दर्ज थे। उसे कई मामलों में सजा भी हो चुकी है।
सन 2011 के आसपास उसने अपना ठिकाना वसई-विरार-नालासोपारा इलाके को बना लिया था। यहां के बिल्डरों और जमीन मालिकों को धमका कर हफ्तावसूली करने लगा था।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक विजय पहले संगमरमर कारोबारी था। उसके राजनीतिक संपर्क बड़े ही तगड़े हैं।
वह हर बार जमानत पर छूट कर बाहर आता है ओर फरार हो जाता है।
वह सन 2008 में भाग कर सिंगापुर चला गया था। वहां से मलेशिया चला गया। दोनों देशों के बीच वह लगातार आना-जाना बनाए रखता ताकी पुलिस को उसकी सही ठिकाना न मिल सके।
सोसायटी सचिव की हत्या
8 अप्रैल 2009 की रात में सहार एयरपोर्ट पर विजय की गिरफ्तारी 9 नवंबर 2008 के एक हत्याकांड के सिलसिले में हुई। उसने कांदीवली की एक हाऊसिंग सोसायटी के सचिव शांताराम कानाड़े की हत्या सोसायटी पर कब्जे के विवाद में की थी। शांताराम पहले रिलायंस एनर्जी लि. में काम करते थे। न
विजय ने ठाकुर विलेज स्थित उनकी ही इमारत में 38 वार करके शांताराम को मार डाला था। विजय भी इस इमारत में रहता था। हत्या के बाद वह फरार हो गया था। इस मामले के तुरंत बाद ही पुलिस ने विजय के 10 बॉडीगॉर्ड को गिरफ्तार भी किया था।
विजय तांबट के खिलाफ इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस उन दिनों जारी था। उसी कारण सहार एटरपोर्ट पर आव्रजन अधिकारियों ने विजय तांबट को विदेश जाने के पहले पहचान लिया। सहार पुलिस को सूचना दी। एक दस्ता तुरंत आव्रजन में पहुंचा और विजय को धर दबोचा।
कार-नामा!
छोटा राजन की बतौर हमलावर बांह पहचान रखने वाला विजय बड़ा ही खुराफाती किस्म का अपराधी है। सन 2011 के नवंबर महीने में तो उसने कमाल का खेल रचाया था। 14 नवंबर को नौ मामलों में पहले से वांछित विजय तांबट ने बोरीवली कस्तूरबा मार्ग पुलिस थाने में कमाल की एक हरकत की। पुलिस को किसी नागरिक ने सिद्धार्थ नगर से फोन पर बताया कि उनके इलाके में संदिग्ध लैंडक्रूजर एसयूवी खड़ी है।
इलाके में गश्त पर निकले कांस्टेबल एम. धूमक ने वायरलैस पर सूचना मिलने पर कार के पास जाकर जांच की। तभी वहां एक व्यक्ति आया, जिसने राजकिशोर चिंचोल नाम बताते हुए कहा कि वह कार का ड्राईवर है। उसने कांस्टेबल से कहा कि यह कार ‘भाई’ की है। कांस्टेबल ने कार का कागजात मांगे तो ड्राईवर ने बड़ी अकड़ से कहा कि भाई को पेपर ले के चलने की जरूरत नहीं होती है। कांस्टेबल उसे कार के साथ थाने ले गया।
कुछ ही देर में विजय थाने पहुंचा। उसने थाने में हंगामा खड़ा कर दिया। जब वह हंगामा कर रहा था, पीछे से ड्राईवर कार लेकर रफूचक्कर हो गया। इसके बाद विजय भी चुपचाप बाहर निकला, एक रिक्शा लेकर वहां से उड़नछू हो गया।
विजय और ड्राईवर यहां से सीधे समता नगर पुलिस थाने पहुंचे। वहां उन्होंने ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों को बताया कि कुछ लोग पुलिसवाला बता कर उनकी कार छीनना चाहते हैं।
तब तक कस्तूरबा मार्ग थाने के पुलिस अधिकारी भी उनका पीछा करते हुए समता नगर थाने में जा पहुंचे। उन्हें देख कर विजय थाने से बाहर भागा। चहारदीवारी लांघ कर भागते हुए भीड़ में गुम हो गया।
पुलिस ने ड्राईवर को थाने में ही दबोच लिया। उसके दो और साथियों को भी पकड़ लिया। उनसे पूछताछ में विजय की असलियत का पता चला। यह रहस्य तब खुला, जब ड्राईवर की थोड़ी सी ‘पूजा’ हुई कि कार का मालिक कौन है।
यह कार वसई के एक बिल्डर की निकली। पता चला कि छोटा राजन के लिए हफ्तावसूली करने वाले विजय ने इस बिल्डर को धमका कर कार पर कब्जा कर लिया था।
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