Books: रात का राजा: उपन्यास अंश… दत्तात्रय लॉज: लेखक – विवेक अग्रवाल
रज्जू भैया से आज फिर राजा भाई की बातें चल रही है। मुद्दा है वही कि कौन चुनाव जीतेगा – कांग्रेस या बीजेपी?
बात उन दिनों की है, जिन दिनों अटलबिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी की पूरी दुनिया में तूती बोलती थी। ऐसे में रज्जू भैया का कहना हमेशा यही रहता कि बाजपेईजी जैसा वक्ता और आडवाणीजी जैसा नेता दूसरा हुआ नहीं।
अपने राजा भाई बड़े खुले दिल और विचारों के हैं। वे कभी किसी के मुंह राजनीति पर तो लगते ही नहीं।
“नेहरू की सरकार देख ली… इंदिरा की सरकार देख ली… राजीव की सरकार देख ली… अटल जी की सरकार देख ली… यह बताओ पान की दुकान, अभी तक पान की ही क्यों बनी हुई है? इसमें सोने के पत्ते क्यों नहीं बिकने शुरू हुए?” उन्होंने रज्जू भैया से पूछा।
“अरे भैया आप तो एकदम कुतर्क करने लगते हैं…” रज्जू भैया बुरी तरह बौखलाए।
“रज्जू भैया, बुरा मत मानो… एक बात बताओ पेट्रोल के दाम कितने कम हुए?”
“अरे पेट्रोल से पोलिटिक्स का क्या लेना-देना है भाई?”
“बिल्कुल है… आप बताइए पेट्रोल के दाम कितने कम हुए? डीजल की कीमत कम हुई क्या?” राजा ने जिद पकड़ी।
“कम तो नहीं हुए हैं…” रज्जू भैया का सुर थोड़ा नीचा हो गया।
“अच्छा तो ये बताएं… बिजली की कीमत तो कम हुई होगी ना…”
“अरे कहां… वो भी तो चार रुपया यूनिट हो रही है…”
“तो फिर गेहूं सस्ता हो गया होगा?”
“हमारी बात में… राजनीति में ये गेहूं कहां से आ गया?”
“तो चलिए छोड़िए… यह बता दीजिए की कत्था कितना सस्ता हुआ है?”
“भाई अब राजनीति में कत्था कहां से आ गया?” रज्जू भैया को समझ नहीं आया कि आखिरकार यह राजा जानी निकला कहां है?
“हां अब हुई ना कुछ बात… इसका मतलब है कि राजनीति में पेट्रोल, डीजल, बिजली, गेहूं, चावल, नमक, तेल, हल्दी, कत्था, चूना, इत्तर, फुलेल, धागा, गुलेल, कागज, चिट्ठी, फोन, जूता, कपड़ा, कंघी… इन सबका कोई स्थान नहीं है… है ना?”
“अरे भाई राजनीति तो इन सबसे अलग की बात है ना…”
“बिल्कुल सही कह रहे हैं रज्जू भैया… राजनीति में तो सिर्फ चूना चलता है… चूना लगाओ – माल कमाओ…” राजा जानी ने कुटिल मुस्कुराहट से कहा।
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