जनता मोदी के भरोसे और देश भगवान भरोसे
यह देश निश्चित तौर पर भगवान भरोसे है। देश की अधिकांश जनता को बुद्धिहीन प्रजा मान लिया गया है और तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ताकतें उस प्रजा के साथ हैरतअंगेज निर्मम प्रयोग करने पर उतारू है। केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नाम से सरकार को अपने चंगुल में लेने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रेरित भारतीय जनता पार्टी जनता के साथ खतरनाक सामाजिक और राजनीतिक प्रयोग कर रही है। भारत किसानों, मजदूरों और छोटे-छोटे स्वरोजगार करने वाले लोगों का देश है। देश की 139 करोड़ होने जा रही जनसंख्या में ऐसे लोग 80 करोड़ से ज्यादा हैं। इन लोगों पर अब तरह-तरह के मेडिकल प्रयोग शुरू हो गए हैं और ये प्रयोग चिकित्सा विशेषज्ञों की बजाय प्रशासन के माध्यम से किए जा रहे हैं।
चीन की वुहान स्थिति प्रयोगशाला में सार्स प्रजाति के वायरस पर कई प्रयोग हुए और कोविड-19 नामक वायरस का निर्माण हुआ। सिर्फ 200-250 वर्षों में विकसित आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पास उसका कोई इलाज नहीं था। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया। इसके बाद पता नहीं किन ताकतों ने पूरी दुनिया के मध्यमवर्गीय और गरीब लोगों के साथ खेल कर दिया। कोविड-19 के महामारी घोषित होने के बाद विश्व बैंक ने अपनी थैली खोली और तीन शर्तों के साथ तमाम देशों को आसान कर्ज बांट दिए। इसके लिए 160 करोड़ डॉलर का बजट तय किया। शर्तें थी देश का हर नागरिक मास्क लगाएगा, पूरे देश में कम से कम 2 महीने लॉकडाउन रहेगा और उसके बाद 4 महीने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य होगा। वायरस से बचने के लिए सेनिटाइजर का उपयोग भी जरूरी बताया गया। हालांकि वैज्ञानिक रूप से अब तक यह प्रमाणित नहीं हुआ है कि इन तीन उपायों से किसी बीमारी को रोका जा सकता है।
बीमारी की एक लहर आई। अचानक लोगबंदी हुई। जन साधारण को अपने ही घरों में कैद होने का अनुभव हुआ। तकनीकी दानवों को लोगों के दिमाग पर हावी होने का मौका मिला। मनुष्य से ज्यादा जरूरी उसका मोबाइल फोन हो गया। मोदी सरकार ने अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने के चक्कर में अर्थव्यवस्था का सत्यानाश होने दिया। करोड़ों लोगों का शहरों से गांवों की तरफ पलायन हुआ। कई छोटे काम-धंधे अचानक बंद हो गए। पूरा देश एकबारगी सामाजिक व आर्थिक रूप से अस्त-व्यस्त हो गया और साफ दिखने लगा कि देश राजनीतिक तानाशाही की चपेट में आ चुका है।
पिछले वर्ष 2 महीने के लॉकडाउन और 4 महीने की सोशल डिस्टेंसिंग के बाद अर्थ व्यवस्था के तमाम सेक्टरों में रिकवरी के संकेत दिखने लगे और दिसंबर जनवरी तक लगने लगा था कि अर्थ व्यवस्था पटरी पर लौट सकती है। लेकिन मोदी सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था का दोहन अपने कुछ चहेते सौदागरों को करने देना चाहती है, इसलिए उसे देश की अर्थव्यवस्था से कोई लेना-देना नहीं। मोदी देश की अर्थव्यवस्था को लेकर उस तरह चिंता नहीं करते, जिस तरह मनमोहन सिंह किया करते थे या उनसे पहले के बाकी सभी प्रधानमंत्री किया करते थे। नरेन्द्र मोदी ने जन साधारण को अच्छे दिन लाने का झुनझुना थमाते हुए प्रधानमंत्री पद पर अधिकार कर लिया और खुद को देश का अकेला खैरख्वाह साबित करने के इंतजाम में जुट गए। महामारी के दौरान भी उन्होंने यही किया। प्रचार हुआ कि मोदी ने देश के करोड़ों लोगों को मरने से बचा लिया।
पिछले साल के झटके से लड़खड़ाने के बाद जब देश की अर्थव्यवस्था फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही थी, तब मार्च में कोविड-19 की दूसरी खतरनाक लहर आ गई और करोड़ों लोग संक्रमित हुए, लाखों लोगों की मौत हो गई। मोदी सरकार ने दूसरी लहर से लोगों को बचाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर छोड़ दी। पिछले साल सलंग दो महीने का लॉकडाउन था। इस बार टुकड़ों-टुकड़ों में राज्य सरकारों के हिसाब से लॉकडाउन लगा और अर्थव्यवस्था एक बार फिर ठप हो गई। जो लोग कमाई कर रहे थे, वे हैं प्राइवेट अस्पताल, दवाइयों और मेडिकल उपकरणों के निर्माता-विक्रेता, ऑक्सीजन कंपनियां और ऑनलाइन ऑर्डर पर घरों तक सामान पहुंचाने वाली कंपनियां।
मोदी सरकार के रहते जन साधारण को महंगाई से कोई राहत नहीं है। देश का हैल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने का विचार अभी भी नहीं है। प्रकृति और मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्ति को नष्ट कर देने का हर उपाय मोदी सरकार कर रही है। कोरोना वायरस से लोगों को आतंकित करने के लिए भारी-भरकम इनवेस्ट किया गया। पूरे सोशल मीडिया को कोरोना वायरस के आतंक से भर दिया गया। टीवी के समाचार चैनल और अखबार पाबंद हुए कि कोरोना से संक्रमितों और मरने वालों की सूचनाएं लगातार जारी रहें। अखबारों में शब्दों की जगह आंकड़े छपने लगे। कोरोना मरीजों के आंकड़ों ने अर्थव्यवस्था के आंकड़ों को बुरी तरह दबा दिया। अर्थशास्त्र में एमए करने के बाद आईएएस बने शक्तिकांत दास अब रिजर्व बैंक के गवर्नर हैं और वह देश में मुद्रा की डांवाडोल स्थिति को संभालने का प्रयास कर रहे हैं। उनके रहते रुपए की तुलना में डॉलर की कीमत सम्मानजनक तरीके से बढ़ रही है। देश में बहुत कम लोगों के पास बहुत ज्यादा पैसा है और उसे हर तरह से खींच लेने के भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।
महामारी ने बहुत से लोगों की कमाई कम या बंद कर दी है और खर्च बढ़ा दिया है। अमेरिका, विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित तमाम ताकतों को चिंता रहती थी कि भारत की आधी जनसंख्या का मेडिकल खर्च लगभग शून्य क्यों है। कोविड महामारी ने उनकी चिंता दूर कर दी है। उन्हें मोदी सरकार और राज्य सरकारों का भी समर्थन है, क्योंकि देश में पहली बार लोगों को बीमारी से बचाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल देखा गया है। बीमारी के नाम से सरकारी खजानों से पहुत पैसा निकला है और कहां-कहां किसकी जेब में गया, कोई नहीं जानता। मोदी सरकार का सारा खर्च खुद की वाहवाही को कायम रखने के लिए है। जनता को सिर्फ मोदी के भाषणों से ही राहत मिल सकती है। और कमाल की बात यह कि बहुत से लोग अपना मानवीय अस्तित्व भूलकर मोदी को भगवान मानते हुए उनके भरोसे रहना चाहते हैं। इस तरह मोदी ने देश को भगवान भरोसे छोड़ दिया है और बड़ी संख्या में लोग उनके भरोसे हो गए हैं। कोविड की तीसरी लहर भी आने वाली है।