CrimeMafia

पालघर मॉब लिंचिंग: शराब और वन संपदा तस्करों के इलाके में हत्याकांड

दीपक राव

मुंबई, 25 अप्रैल 2020।

दो साधु और उनके ड्राइवर की हत्या को लेकर जहां राज्य सरकार मुस्तैदी से काम पर लग हुई है, वही केंद्र भी राज्य सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। एक तरफ हत्याकांड, दूसरी तरफ राजनीति, क्या ऐसी हालत में राजनीति करना जरूरी है? जिस तरह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बार-बार निवेदन करते नजर आ रहे हैं, लोगों से अपील कर रहे हैं कि इस घटना को राजनीतिक रंग न दें, हिंदू-मुस्लिम का अखाड़ा न बनाएं, उसके बावजूद कुछ लोग बाज नहीं आ रहे हैं।

इस मामले में एक बात पर गौर नहीं किया जा सका है। यह शराब और वन संपदा तस्करों का इलाका है, जहां यह हत्याकांड हुआ है।

सरकार की मुस्तैदी

हत्या के बाद साधुओं के शव

सूत्रों के मुताबिक संभवतः उद्धव ठाकरे को इस घटना से पैदा हुई आंधी का आभास हो चुका है। उन्होंने हत्याकांड पर तमाम पुलिस अधिकारियों, स्टेट सीआईडी और राज्य गृहमंत्री को काम पर लगा दिया है।

पालघर पुलिस ने दो अधिकारी को बलि का बकरा बनाते हुए निलंबित कर दिया है। क्या इतने से बात बन गई? 101 आदिवासी गिरफ्तार हो चुके हैं। क्या इतने से उन तीनों को इंसाफ मिल गया? अभी तक तो नहीं।

आदिवासी बहुल पालघर

पालघर पहले ठाणे जिले में आता था। इस इलाके में जनसंख्या बढ़ाने में वसई-विरार का अच्छा-खासा योगदान रहा। वसई-विरार इलाकों में कुछ ही सालों में जनसंख्या तेजी से बढ़ी थी। इसके चलते पालघर को राज्य सरकार ने एक स्वतंत्र जिला बना दिया।

पालघर बतौर आदिवासी जिला पहचाना जाता है। आदिवासी क्षेत्र होने के साथ ही यह इलाका 70 फीसदी जंगल और पहाड़ों से भरा है। पालघर जिला गुजरात और दमन-दिव की सीमा से लगा है।

गुजरात और दमन-दीव से कुछ भी लाना – ले जाना हो, तो पालघर के रास्ते ही संभव है। इसी कारण ट्रांसपोर्ट के मसले में तो कम से कम पालघर जिले की अहमियत बढ़ ही जाती है।

कुछ और सवाल…

वारदात वाला परा इलाका पूरी तरह आदिवासियों के कब्जे में है। इलाके में वही होता है, जो वे चाहते हैं।

हत्याकांड के बाद तमाम आदिवासी नेता चुप्पी साधे बैठे हैं। वे तो छोटे-छोटे मुद्दों पर सड़कों पर उतरते रहे हैं। क्यों?

सीपीएम का एक भी नेता इस हत्याकांड के बाद सामने नहीं आता है। बावजूद इसके कि पूरा इलाका उनका सबल वोट बैंक है। क्यों?

जंगलों में मिली पनाह!

हत्याकांड की भूमि बना गढ़चिंचोली गांव दादरा-दमन-दीव-नगर हवेली की सीमा पर है। स्थानीय आदिवासियों के रिश्तेदार दादरा-नगर हवेली में भी रहते हैं।

इसके चलते आदिवासियों ने घटना के फौरन बाद दादरा-दमन-दीव-दादरा नगर हवेली और आसपास के जंगलों मे पनाह ले ली। ये बीहड़ इलाका उन्हें पुलिस और मुखबिरों से महफूज रखता है।

शराब तस्करों का स्वर्ग

गढ़चिंचोली एक दुर्गम गांव है। इस गांव का एकमात्र रास्ता ही शराब तस्करों के लिए शराब तस्करी के लिए महफूज माना जाता है।

सत्रों के मुताबिक कुछ समय से इन ग्रामीणों और आदिवासियों को शराब तस्करों के बारे में जानकारी मिली थी। इस रास्ते की अहमियत का पता भी चला था। इसके चलते आदिवासियों ने कई बार रात में यहां लूटमार की हैं।

सूत्रों का कहना है कि शराब तस्करों की गाड़ियों या अन्य यात्रियों को लूटने की कई घटनाएं हुई हैं लेकिन पुलिस में शिकायतें दर्ज नहीं हुई हैं।

शराब तस्कर तो आदिवासियों के खिलाफ रपट लिखाने पुलिस थाने जाने वाले नहीं। सामान्य यात्री लूटपाट के बाद थाना खोजने और बार-बार इस इलाके में आने की परेशानी से बचने के लिए रपट लिखाने से बचते रहे हैं।

इन हालात का फायदा आदिवासी बहुल गांवों के निवासियों को होने की पूरी संभावना जताई जा रही है। इसके चलते ही आपराधिक घटनाएं एक के बाद एक होती रहीं। इसी से इन आदिवासियों का हौसला बुलंद होता रहा। इसी कारण पुलिस की सुरक्षा में होने के बावजूद मॉब लिंचिंग करने में भी वे सफल रहे।

पुलिस क्यों है लाचार

कतिपय सूत्र कहते हैं कि पुलिस को इन गतिविधियों की जानकारी पहले से न हो, यह संभव नहीं। एक स्थानीय मुखबिर कहता है कि पुलिस को सब पता रहता है।

उसका मानना है कि पुलिस को समय-समय पर शराब तस्कर और वन संपदा तस्कर नजराना देते हैं। यही कारण रहा कि गांव वालों को पुलिस की हरकतों के बारे में पहले से ही पता होने के बावजूद वे कमजोर पड़ जाते हैं। स्थानीय ग्राणीणों के मन में पुलिस का कोई खौफ इसी कारण संभवतः नजर नहीं आता जो वायरल वीडियो में साफ दिखता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Web Design BangladeshBangladesh Online Market