मुंबई माफिया का हर राज करती है तार-तार किताब मुं’भाई
दाऊद इब्राहिम के कराची स्थित उसके घर में बने स्वीमिंग पूल के सामने खड़े अनदेखे और ताजातरीन फोटो के साथ जब खोजी पत्रकार – लेखक विवेक अग्रवाल की बहुप्रतीक्षित किताबों मुं’भाई और मुं’भाई रिटर्न्स के बारे में दिल्ली के क्राईम राइटर्स फेस्टीवल में घोषणा हुई, तो लोग हैरान रह गए। विवेक अग्रवाल ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि उन्होंने माफिया की खबरें हासिल करने के लिए वो रास्ता चुना जो बेहद दुर्गम, बीहड़ और दुरूह था, याने मुंबई के लालबत्ती इलाके कमाठीपुरा की बदनाम गलियों की रक्कासाओं के बीच, मुखबिरों और अपराधियों के खतरनाक व गंदे गठजोड़ में।
वाणी प्रकाशन से छप कर आ रही खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल की बहुप्रतीक्षित किताबों मुं’भाई और मुं’भाई रिटर्न्स पर 16 व 17 जनवरी 2016 को हुए दो दिवसीय क्राईम रार्टर्स फेस्टिवल में न केवल विस्तार से चर्चा हुई बल्कि विवेक अग्रवाल ने तमाम उपस्थित श्रोताओं के सभी सवालों का बेखौफ और बेलौस अंदाज में जवाब भी दिया।
मुं’भाई और मुं’भाई रिटर्न्स मुंबई के माफिया जगत के ढेरों अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं। ये पुस्तकें कुछ ऐसे तथ्य उजागर करती हैं, जिनसे बाकी दुनिया वाकिफ नहीं है। यह किताब कई अनदेखी तस्वीरों का खुलासा भी करती है जो प्रेस और मीडिया की पहुंच से अब तक दूर रही हैं। इनमें मुंबई के कुख्यात माफिया सरगनाओं, उनकी पत्नियों-प्रेमिकाओं, संबंधियों, साथियों, उनके घरों और अड्डों की जानकारियां और फोटो समाहित हैं।
विवेक अग्रवाल फोटो की जानकारियों को आगे बढ़ाते हुए बताते हैं, “इनमें अंडरवर्ल्ड के इतिहास के सबसे खतरनाक और बड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के कराची में सबसे सुरक्षित पनाहगाह और घर के अंदर लिया सबसे ताजातरीन एक फोटो है, जो आज तक किसी खुफिया अथवा जांच एजंसी तक नहीं पहुंच पाया है।” जब उनसे एक दर्शक ने पूछा कि वे इस तरह का खतरनाक काम क्यों करते हैं तो विवेक अग्रवाल का जवाब था कि चुनौतियों के बिना जीवन अधूरा है। यह काम खतरनाक नहीं है, बशर्ते आप अपने काम के प्रति ईमानदार रहें। किसी गिरोह विशेष के ही खिलाफ लिखना, या किसी गिरोह सरगना विशेष के पक्ष में लिखना आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। निष्पक्ष लेखन और पत्रकारिता का सम्मान तो मुंबई अंडरवर्ल्ड भी करता है।
वाणी प्रकाशन की निदेशक अदिती माहेश्वरी कहती हैं, “मुं’भाई और मुं’भाई रिटर्न्स के जरिए लोग यह जान पाएंगे कि माफिया सरगनाओं और आतंकफरोशों के गिरोहों की संरचना कैसी है, पुराने माफिया और नए दौर के सरगनाओं में क्या फर्क है, वे दुनिया और देश में कहां-कहां तक जा पहुंचे हैं, रिटायर होने के बाद वे क्या करते हैं… इसके आगे और भी बहुत कुछ ऐसा है, इन किताबों में जो आज तक आई किसी किताब में नहीं है। सबसे बड़ी बात यह कि हिंदी में मुंबई माफिया के इतिहास और उनके कारनामे समेटने का यह सबसे पहला और अदम्य साहसपूर्ण अभियान है।”
मुं’भाई और मुं’भाई रिटर्न्स के लेखन में किस्सागोई की तकनीक में पत्रकारिता का तड़का लगा कर पेश किया है। यह पुस्तक मनोरंजन का मसाला न होकर मुंबई के गिरोहों और उनके तमाम किरदारों की दुनिया का जीवंत व प्रामाणिक दस्तावेज है। पुस्तकों के अंत में गिरोहबाजों, प्यादों, खबरियों, सुपारी हत्यारों, खुफिया व पुलिस अधिकारियों तथा मैच फिक्सिंग में प्रचलित शब्दों व मुहावरों का पूरा जखीरा मौजूद है।
मुं’भाई माफिया जगत पर छप कर आ रही विवेक अग्रवाल की तीन किताबों वाली श्रृंखला की पहली व दूसरी कड़ी है। इसके साथ कुछ और पुस्तकें हैं, जो बस आगे-आगे ही प्रकाशित होने जा रही हैं। पत्रकार – लेखक विवेक अग्रवाल तीन दशकों से अपराध, रक्षा, कानून व न्याय और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर मीडिया के सभी स्वरूपों के लिए रिपोर्टिंग करते आए हैं। वे बतौर क्राईम रिपोर्टर जनसत्ता, इंडिया टीवी, न्यूज एक्सप्रेस, लाईव इंडिया, जनमत, मी मराठी जैसे चैनलों आदि मीडिया संस्थानों के लिए काम कर चुके हैं। उनकी रिपोर्टिंग की दुनिया अपराध से आतंक तक, न्याय से घोटालों तक विस्तार रखती है।
विवेक अग्रवाल वर्षों से मुंबई माफिया की खोजी रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं। उनके पत्रकारिता कैरियर की कुछ प्रमुख उपलब्धियों में 1993 के मुंबई में हुए 13 बमकांड, 2008 के 26/11 आतंकी हमले, 2010 के पुणे बमकांड की कवरेज तो हैं ही, अनेक माफिया सरगना, मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी, कालाबाजारी, तस्करी, टैक्स चोरी इत्यादि के सनसनीखेज खुलासे शामिल हैं। वे फिलहाल लेखन के साथ ही डॉक्यूमेंट्री निर्माण और विभिन्न मीडिया संस्थानों से बतौर सलाहकार जुड़े हुए हैं। उनके बारे में विस्तार से जानकारी www.vivekink.com पर प्राप्त हो सकती है।
लेखक का संक्षिप्त परिचय
विवेक अग्रवाल पिछले 3 दशकों से भी अधिक समय से अपराध, कानून, सैन्य, आतंकवाद और आर्थिक अपराधों की खोजी पत्रकारिता कर रहे हैं। वे पत्रकारिता के हर आयाम के लिए काम कर रहे हैं। एकीकृत मध्यप्रदेश में सन 1985 में बतौर स्वतंत्र पत्रकार स्थानीय व राष्ट्रीय अखबारों में सक्रिय हुए थे।
मुख्यधारा के अखबारों में विवेक ने 1992 में मुंबई के हमारा महानगर से काम शुरू किया। सन 1993 में वे राष्ट्रीय अखबार जनसत्ता से बतौर अपराध संवादताता जुड़े और मुंबई माफिया पर दर्जनों खोजी रपटें प्रकाशित कीं। एक दशक बाद वे देश के पहले वैचारिक चैनल जनमत से समाचार जगत के नए आयाम में कमद रखा, जो बाद में लाईव इंडिया बना। महाराष्ट्र के सबसे शानदार चैनल मी मराठी की खबरों के प्रमुख रहे। खोजी पत्रकार के रूप में उन्होंने एक जबरदस्त पारी देश के इंडिया टीवी में भी खेली। महाराष्ट्र व गोवा राज्य प्रभारी के रूप में वे न्यूज एक्सप्रेस की आरंभिक टीम का हिस्सा बने। इन चैनलों में भी विवेक ने खूब खोजी खबरें कीं।
मुंबई माफिया और अपराध जगत पर उनकी विशेषज्ञता का लाभ हॉलैंड के मशहूर चैनल ईओ तथा एपिक भी उठा चुके हैं। कुछ समय वे फिल्म एवं टीवी धारावाहिक लेखन को भी समर्पित कर चुके हैं।
विवेक अग्रवाल अब लेखन और वृत्तचित्रों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। वे कुछ अखबारों और चैनलों के साथ बतौर सलाहकार जुड़े हैं। वे अब अपनी सेवाएं बतौर विशेषज्ञ, चैनल, अखबार, पत्रिका आरंभ करने और उन्हें स्थापित करने के लिए प्रदान कर रहे हैं।