आंदोलन से परहेज मोदी के तानाशाह बन जाने का साफ संकेत
राहों में कांटे कौन किसके लिए बिछाता है? हमने खेतों में जानवरों को घुसने से रोकने के लिए बाड़ में बबूल की कांटेदार झाडि़यों का उपयोग बहुत देखा है। किसी इलाके की तारबंदी में भी लोहे के कांटेदार तारों का उपयोग होता है, लेकिन किसी आंदोलन को रोकने के लिए पक्की सड़कों पर लोहे की कीलें ठोकना न भूतो न भविष्यति कार्य है, जो हम आदरणीय नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री और माननीय अमित शाह के केंद्रीय गृहमंत्री बनने के बाद पहली बार देख रहे हैं। हाईवे पर सात स्तरीय रुकावट। कांटे ही कांटे। कीलें ही कीलें। किसान आंदोलन को ठप करने के लिए इतना खर्चा। भारी लागत से बनाई गई सड़कें बर्बाद करने का काम।
विश्व के किसी भी देश में कभी भी किसी भी शासक ने ऐसे कीर्तिमान स्थापित नहीं किए, जैसे मोदी सरकार कर रही है। मोदी और शाह के सलाहकार गजब के हैं। जिसने भी किसानों के आंदोलन को रोकने की पटकथा लिखी है, उसके दिमाग की दाद देनी पड़ेगी। और हाईवे वाले मंत्रालय की तरफ से कोई एतराज भी नहीं किया गया। बनी बनाई सड़क को खोदना, उस पर कांटे लगाना आसान है, लेकिन हाईवे बनाने में कितना खर्चा होता है, इंजीनियरों से पूछिए। क्या यह सड़क खोदने वाली पुलिस जानती है? पूरी दुनिया में इतने सारे युद्ध हुए। किसी भी राजा ने हमलावर सेना का रास्ता रोकने के लिए रास्तों पर कांटे नहीं बिछाए।
मोदी सरकार दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे किसानों को हमलावर सेना से भी ऊंचा दर्जा दे रही है। पूरा देश किसानों से संबंधित तीन कानून पारित होने के बाद आंदोलन शुरू होते हुए और उसका विस्तार होते हुए देख रहा है। मोदी सरकार क्या कर रही है, वह भी दिख रहा है और टीवी के समाचार चैनलों की भूमिका भी सबके सामने है। मोदी के तरह-तरह के हजारों भाषणों के बावजूद समस्त भारतीयों की बुद्धि भ्रमित नहीं हुई है। सही गलत का फर्क समझने वाले लोग अभी इस देश में जीवित हैं और बड़ी संख्या में हैं। भारत के घटनाक्रम को विदेशी भी देख रहे हैं और तरह-तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं, जो मोदी सरकार को और भाजपा को अच्छी नहीं लग रही हैं। बौखलाहट साफ झलकने लगी है।
ऊपर से संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में मोदी का हैरतअंगेज भाषण, जिसे सुनकर यही लगता है कि आंदोलन करने वाले देशवासियों के खिलाफ उनके मन में कितना जहर भरा हुआ है। भाजपा खुद तथाकथित हिंदुत्व के नाम पर जबरदस्ती के आंदोलन करते हुए सत्ता तक पहुंची है। अब सरकार बन गई तो मोदी किसानों को आंदोलनजीवी बता रहे हैं। क्या वह जानते हैं कि अंग्रेज सरकार को हटाने के लिए भारतीयों की एक पूरी पीढ़ी आंदोलन करते हुए गुजर गई। क्या वे इस तथ्य से इनकार कर सकते हैं कि जन आंदोलनों के सहारे ही स्वतंत्र गणतंत्र भारत अपने पैरों पर खड़ा हुआ है। जिस देश का राजनीतिक धर्म ही आंदोलन है, वहां मोदी आंदोलन करने वालों को आंदोलनजीवी, परजीवी कहकर उनका मजाक उड़ा रहे हैं। यह मानवता विरोधी अहंकारी व्यक्ति का अट्टहास नहीं तो और क्या है?
मोदी को बताना चाहिए था कि वे खुद किसान नेताओं से बात क्यों नहीं कर रहे हैं? उनकी सरकार दिल्ली के रास्तों पर कांटे बिछाकर क्या साबित करना चाहती है? उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि किसान आंदोलन कर रहे हैं, या उनकी सरकार और उनकी पार्टी भाजपा किसानों से भिड़ी हुई है? जो कानून उन्होंने पारित किए, उनको लेकर जो आरोप लग रहे हैं, उनमें कहां तक दम है? टीवी के समाचार चैनल लगातार विकट तरीके से लोगों को समझा रहे हैं कि मोदी जो कर रहे हैं, सही कर रहे हैं, सबका भला कर रहे हैं, लोगों को शक नहीं करना चाहिए, लेकिन लोगों की समझ में नहीं आ रहा है और यह मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी दिक्कत है।
सरकार के खिलाफ आंदोलन की जरूरत से ज्यादा चिंता करने वाले शासक कालांतर में तानाशाह बन जाते हैं। किसान आंदोलन और उसको रोकने के लिए सड़कों पर गाड़ी गई कीलें चीखते हुए घोषणा कर रही हैं कि लोकतांत्रिक जनादेश से चुने गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तानाशाह बन चुके हैं। भारत सरकार और भारतीय जनता पार्टी इस समय पूरी तरह नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के कब्जे में है। उनके मंत्री भी निर्णायक फैसले नहीं ले सकते, जो किसान नेताओं से हुई मंत्रियों की ग्यारह दौर की बातचीत से स्पष्ट है। मोदी सरकार के मंत्रियों ने किसान नेताओं के साथ बैठक के नाम पर फिजूलखर्ची के अलावा कुछ नहीं किया।
मोदी ने राज्यसभा में अपने भाषण में आंदोलन करने वाले किसानों को विरोधी जमात घोषित करते हुए उनकी खूब खिल्ली उड़ाई और उसके अगले दिन कांग्रेस के नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद की तारीफ में कसीदे पढ़े, जो राज्यसभा से विदा हो रहे हैं। मोदी के भाषण से किसानों का आक्रोश कई गुना बढ़ चुका है और अब यह आर-पार की लड़ाई है। मोदी को या तो तीनों कानून वापस लेने पड़ेंगे या प्रधानमंत्री निवास से विदाई लेनी पड़ेगी। लेकिन संकेत खतरनाक हैं। जो सरकार आंदोलन रोकने के लिए कांटे बिछा सकती है, वह कुछ भी कर सकती है। मोदी सरकार को बचाए रखने के लिए कुछ भी कर डालने के लिए लाखों अंधभक्त तैयार हैं।
मोदी कानून वापस नहीं लेंगे, क्योंकि उन्होंने ऐसा किया तो और भी आंदोलन शुरू हो जाएंगे। बेरोजगार युवा आंदोलन के लिए तैयार बैठे हैं। मोदी सरकार के श्रम कानूनों के कारण निजी कंपनियों के शोषण के शिकार बन रहे लोग भी आंदोलन करने लगेंगे। इसके बाद चौपट हो रही शिक्षा व्यवस्था के उत्पाद के रूप में एक बड़ी दिशाहीन युवा शक्ति भविष्य को लेकर आंदोलन करने का रास्ता पकड़ेगी। मोदी सरकार के पास पुलिस और सेना की ताकत है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए पता नहीं कितने लोगों को शहीद होना पड़ेगा। किसान आंदोलन के दौरान सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो ही चुकी है, जिनके लिए बहुत भाषण देते रहने वाले मोदी के मुंह से सहानुभूति के दो शब्द भी नहीं निकले।
मोदी सरकार और देश की जनता अब सीधे आमने-सामने है। देश के समस्त धनवान नागरिक संपत्ति छिनने के डर से बुरी तरह डरे हुए हैं और मोदी सरकार के समर्थन का राग अलाप रहे हैं, जिनमें बड़े-बड़े एक्टर, क्रिकेटर, उद्योगपति, व्यापारी, अफसर और बड़े नेता शामिल हैं। देश की करीब 80 करोड़ जनता का भविष्य तय करने की जिम्मेदारी मोदी सरकार ने जिस तरह संभाली है, वह लोकतंत्र को पूरी तरह भेडि़याधसान में बदल देने का रास्ता है। जनता की मेहनत से स्थापित बड़े-बड़े संस्थान बेचे जा रहे हैं। आम नागरिकों को शिकंजे में कस दिया गया है। पुलिस की और सरकारी अफसरों की तूती बोल रही है। सदियों से अपनी निजी स्वतंत्रता के साथ जीवन व्यतीत करते आए भारत के लोग इस स्थिति को कब तक सहन कर सकते हैं?
दिल्ली की सड़कों पर कांटे बिछाने के बाद मोदी ने संसद में अपने भाषण में स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी आंदोलन की परवाह नहीं करते हैं और जो उन्हें करना है, करेंगे। जिसको जो करना हो कर ले। पुलिस उनके पास, सेना उनके पास और देश के 130 करोड़ देशवासियों के भविष्य का ठेका उनके पास। उनके अलावा और किसी मंत्री, सांसद, नेता वगैरह का कोई मतलब नहीं है। जो लोग सड़कों पर गड़ी कीलें देखकर हैरान हो रहे हैं, उन्हें यही समझना चाहिए कि मोदी है तो मुमकिन है। जब तक देश के अधिकांश नागरिक दाल रोटी तक के लिए मोहताज नहीं हो जाएंगे, तब तक मोदी का गद्दी से हटने का इरादा शायद नहीं है।