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अब तक के सबसे ढोंगी प्रधानमंत्री मोदी

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत में कितने लोकप्रिय हैं, इसको लेकर प्रमुख अखबारों में देश-विदेश के सर्वे प्रकाशित किए जा रहे हैं. ये कितने विश्वसनीय हैं कितने नहीं, कहा नहीं जा सकता. वैसे भारत में तो सबसे बड़े नेता नरेन्द्र मोदी ही हैं, क्योंकि वह प्रधानमंत्री हैं. भारत में प्रधानमंत्री को ही सबसे बड़ा नेता माना जाता है. मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी से इस कदर चिपककर बैठे हैं कि अमित शाह को छोड़ किसी अन्य मंत्री को अपने पास तक नहीं फटकने देते. ऐसे में स्वाभाविक है, मन में ख्याल आ ही जाता है कि अपनी ही जनता के बीच अपन लोकप्रिय हैं या नहीं. खास तौर से तब, जब सनक में आकर ऊटपटांग फैसले करने के बाद बुरी तरह रायता फैल जाता है, जनता को तकलीफ होने लगती है. तब मोदी को चिंता होती है कि जनता की पीड़ा सार्वजनिक नहीं हो जाए क्योंकि इससे बदनामी होती है.

अपना खुद का प्रचार चारों दिशाओं में हर संभव तरीके से करने के लिए उन्होंने एक सशक्त गिरोह पहली बार प्रधानमंत्री बनने से पहले ही बना लिया था. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले यह गिरोह हर तरह से कांग्रेस, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बदनाम करने में जुटा था और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कठपुतली प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित कर रहा था. इसके साथ ही यह प्रचार भी किया जा रहा था कि देश में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है, काला धन बड़ी समस्या है, जिससे गरीबों का भला नहीं हो पा रहा है.

गरीबों का भला करने के नाम पर नरेन्द्र मोदी अपने गिरोह की ताकत से सिर्फ प्रचार तंत्र के सहारे बड़े नेता बनकर उभरे और जनता ने भी इसलिए उनको समर्थन दे दिया कि मनमोहन सिंह दस साल से प्रधानमंत्री बने हुए थे और मोदी के गिरोह ने जनता में उनकी छवि कठपुतली प्रधानमंत्री, मौनी बाबा जैसी बना दी थी, क्योंकि वे बहुत कम बोलते थे. मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले लगातार करीब छह महीने एक दिन में दो-दो तीन-तीन के हिसाब से आमसभाएं की, धुंआधार भाषण दिए और कांग्रेस, नेहरू, इंदिरा गांधी के खिलाफ जमकर जहर उगला.  सोनिया और राहुल गांधी की खूब खिल्ली उड़ाई.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक होने के नाते वह एक प्रशिक्षित भाषणकर्ता थे. झूठी बातों को भी सच बताते हुए भाषण देने में कुशल होने से जनता बुरी तरह मोदी के झांसे में आ गई, क्योंकि मनमोहन सिंह को लच्छेदार भाषण देना नहीं आता था, सोनिया गांधी धाराप्रवाह हिंदी बोलने में कुशल नहीं थी, राहुल गांधी राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं थे और कांग्रेस में कोई दमदार नेता नहीं बचा था. इन सभी कारणों के चलते मोदी के भाग्य से सत्ता का छींका टूटा और उन्होंने ताक में बैठे बिलाव की तरह झपट्टा मारकर उसे लपक लिया. उसके बाद से अब तक मोदी एक अभिशाप की तरह देश के माथे पर सवार हैं. नेतृत्व से उनका कोई लेना देना नहीं. उनके साथ अगर प्रशासन की ताकत न हो तो वे कहीं भी किसी तरह का नेतृत्व नहीं कर सकते.

मोदी जब पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, तब चुनाव लड़कर नहीं बने थे. सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद उनकी चुनावी राजनीति शुरू हुई. मोदी को पहली बार प्रधानमंत्री बनाने में करीब 750 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने तरह-तरह के तमाशे किए. भारत का सबसे महान नेता होने का स्वांग रचा. तरह-तरह की बतोलेबाजी करते रहे. इसके बाद उनका क्रूर चेहरा पहली बार तब सामने आया, जब उन्होंने नोटबंदी करके लोगों की आर्थिक स्वतंत्रता पर कुल्हाड़ी चलाई. इसके पीछे देशहित का कोई विचार नहीं था बल्कि भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर बाक़ी सभी राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक रूप से अपंग बनाने की ख़तरनाक साजिश थी.

नोटबंदी के ढाई साल बाद फिर लोकसभा चुनाव हुए तो मोदी को अपनी सत्ता खिसकती मालूम पड़ी. तब पहले से भी बड़ी कलाकारी की गई. सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक का प्रचार हुआ, पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की तैयारी का नाटक खड़ा किया गया. आतंकवादियों की कमर तोड़ने का प्रचार किया गया। प्रिंट मीडिया को पंगु बना दिया गया. टीवी के समाचार चैनलों को गोदी मीडिया में तब्दील कर दिया गया. मोदी को 2019 में दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाने में 2700 करोड़ रुपए खर्च हुए. मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बन गए.

अब क्या हो रहा है. देश की अर्थव्यवस्था पटरी से नीचे उतर चुकी है. ऐसे में अब कोरोना वायरस का प्रकोप फैल गया. उसमें भी मोदी देश की बजाय अपना खुद का फायदा देखते हुए अपने विकट स्वार्थी होने का परिचय दे रहे हैं और उनके गिरोह के लोग महामारी में भी सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की  गुंजाइश तलाश रहें हैं. मोदी ने खुद को विश्व का महान नेता साबित करने के चक्कर में पहले 21 दिन और फिर 19 दिन का लॉकडाउन घोषित करके दुनिया में खुद को भारत का  सक्षम नेता साबित करने का फूहड़ और घटिया प्रयास कर डाला है. 40 दिनों के इस लॉकडाउन के कारण देश में जो परिस्थितियां बन रही हैं, उनसे मोदी की बुद्धि, समझ और इरादों पर सवाल उठना स्वाभाविक है. परिस्थितियां चीख-चीख कर कह रही हैं कि मोदी कम से कम देशहित में तो काम नहीं कर रहे हैं. यही कारण है कि इन दिनों बेमौसम बरसात की तरह अखबारों में मोदी को अपने पक्ष में सर्वे छपवाने की जरूरत पड़ रही है.

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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