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मोदी सरकार का चाल, चरित्र, चेहरा उजागर

जब मनुष्य की मति मारी जाती है तो उसके हाथों उलटे काम होते हैं और समाज को भुगतना पड़ता है। इन दिनों अपने देश में ऐसा सरकार चलाने वालों के साथ हो रहा है। लोकतंत्र में जिसको बहुमत मिल गया और जिसने अपनी सरकार बना ली, वह स्वयं को भारत भाग्य विधाता मान लेता है। इस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत भाग्य विधाता बने हुए हैं और उनकी सरकार का दुराग्रह है कि देशवासी उन्हें जबरन भाग्य विधाता मानें। कुछ करोड़ लोग तो उन्हें भाग्य विधाता मान भी बैठे हैं और हरेक को समझाते रहते हैं कि देश को इतना मजबूत और दबंग नेता मिला है, विकल्प और कौन हो सकता है? देश मोदी के हाथ में सुरक्षित है।

अब मोदी सरकार पर तीन किसान विरोधी कानून वापस लेने का भारी दबाव है। किसान आंदोलन नवंबर से चल रहा है और लाल किले की घटना के बाद और तेज हो गया है। मोदी कानून वापस नहीं लेने पर अटल हैं। किसान हर हालत में कानून रद्द करने पर अड़े हुए हैं। किसान आंदोलन अब जन आंदोलन बनने की तरफ बढ़ रहा है। देश एक क्रांति के मुहाने पर है, जिसके संकेत दिल्ली पुलिस ने दे दिए हैं। सिंघु, टिकरी और गाजीपुर, दिल्ली की तीनों सीमाओं पर किसानों का पड़ाव है। उन्हें वापस भेजने की कोशिशों के तहत उनको जीने के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाओं से वंचित करने का खेल शुरू हो गया है। वहां तक पहुंचने के रास्तों पर भयंकर किस्म की रुकावटें कायम कर दी गई हैं। सीमेंटेड पिल्लर के साथ कांटे लगा दिए गए हैं। शौचालय की सुविधा समाप्त की जा रही है। पानी सप्लाई रोकने की कोशिशें हो रही हैं। इंटरनेट बंद कर दिए गए हैं।

इस तरह मोदी सरकार निहत्थे किसानों के सामने अपनी ताकत दिखा रही है और गृहमंत्री अमित शाह का जलवा कायम हो रहा है, जिनके अधीन दिल्ली पुलिस है। दिल्ली की सीमाओं को इस तरह रोका जा रहा है, जैसे किसी सेना को रोकने के इंतजाम किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने बिजली, पानी रोककर और हजारों पुलिस जवान तैनात कर अपनी ताकत की झलक दिखलाई थी, जिसको देखकर राकेश टिकैत रो दिए थे। उन्होंने वहां मौजूद टीवी के रिपोर्टरों के सामने जो कहा, उसका लब्बोलुआब यह है कि मुझे अपना अंत समय निकट प्रतीत हो रहा है, मैं मरने के लिए तैयार हूं, लेकिन किसानों की मांगों के आगे नहीं झुकूंगा। इससे लाल किले की घटना के कारण हताश-निराश किसान नेताओं का मोरल बूस्ट हो गया।

अब पुलिस आंदोलन कर रहे किसानों तक किसी भी मनुष्य या सामान को पहुंचने से रोकने के भरसक प्रयास कर रही है और वह जो कुछ कर रही है, उसकी तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिससे मोदी सरकार की कथनी करनी का पर्दाफाश हो रहा है। किसान आंदोलन अहिंसक आंदोलन है। मोदी जनादेश प्राप्त करने के बाद प्रधानमंत्री बने हैं। उन्होंने अपने गुजरात के सहयोगी अमित शाह को गृहमंत्री बनाया है। अमित शाह एक तरफ पश्चिम बंगाल में भाजपा को जिताने की तरकीबें भिड़ा रहे हैं, दूसरी तरफ किसान आंदोलन को पुलिस की ताकत से कुचल देने का मंसूबा पाल बैठे हैं।

मोदी सरकार को किसी भी काम में हस्तक्षेप पसंद नहीं है और अपने लाजवाब कार्यों को लेकर जगहंसाई भी पसंद नहीं है। मोदी सरकार जो भी कर रही है, उसके बारे में प्रधानमंत्री मोदी स्वयं नियमित रूप से टीवी, रेडियो पर भाषण देते हुए सूचनाएं देते रहते हैं। शायद सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि जब मोदी स्वयं सबकुछ बता दे रहे हैं तो किसी पत्रकार की क्या जरूरत? आर्थिक तौर पर कानूनी जंजाल रचकर छोटे अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं का गला घोट दिया गया है। टीवी के समाचार चैनल सरकार के भोंपू बन गए हैं और प्रमुख हिंदी समाचार पत्र सरकार के मुखपत्र की तरह निकल रहे हैं। संसद में पत्रकारों का प्रवेश रोक दिया गया है। सरकार की सुविधाएं सिर्फ उन पत्रकारों के लिए है, जो उसके प्रवक्ता की भूमिका निभा रहे हैं। जो सही पत्रकार हैं, वे गिरफ्तार किए जा रहे हैं। कुछ पत्रकारों पर तो राजद्रोह का मुकदमा थोप दिया गया है।

इस तरह साफ है कि किसान आंदोलन के जरिए मोदी सरकार का चाल, चरित्र और चेहरा सामने आ गया है। चाल सब देख ही रहे हैं। नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन, सरकारें बदलने की कोशिश आदि चाल है, जिसकी वजह से अच्छे भले विकसित हो रहे देश की अर्थव्यवस्था का इस तरह भट्टा बैठा कि बड़े-बड़े अर्थशास्त्री देश छोड़कर भाग गए। मोदी सरकार का चरित्र दिल्ली पुलिस दिखा रही है और चेहरा सिर्फ नरेन्द्र मोदी का, जिसे लोग लगातार देखते ही रहते हैं। यह मोदी सरकार का चाल, चरित्र और चेहरा है। इस देश में कई लोगों की आत्मा अभी जीवित है, जिनमें किसान प्रमुख हैं। उन्हें अपना भला-बुरा समझ में आता है।

मोदी को चाहिए कि संसद में छलपूर्वक पारित करा लिए गए कानूनों को किसान अपने खिलाफ मान रहे हैं तो वे किसान नेताओं से खुद बात करें, लेकिन वे इतने अहंकारी हैं कि आंदोलन करने वाले किसानों को बात करने लायक नहीं मानते। उनके मंत्री ग्यारह बार किसान संगठनों से बातचीत कर चुके हैं, जिसका नतीजा ढाक के तीन पात रहा और मंत्रियों की योग्यता भी सामने आ गई। मोदी सरकार के सामने किसान भारी पड़ रहे हैं। लाल किले की घटना के बाद भी वे बदनाम नहीं हो रहे हैं। अब मोदी सरकार के सामने एक ही विकल्प बचा है कि वह बाय हुक ऑर क्रुक जबरदस्ती किसानों को खदेड़े और पत्रकारों पर अंकुश लगाए। लगता है मोदी सरकार की मति फिर गई है, जिसकी वजह से ऐसे उलटे काम शुरू हो गए हैं, जिनका खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा।

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