लोकसभा चुनाव 2019 सट्टा: कौन बनेगा प्रधानमंत्री
- सटोरियों का आकलन भाजपा जीतेगी
- राष्ट्रवाद की लहर पर सवार भाजपा
- सवर्ण आरक्षण है तुरूप का पत्ता
- प्रियंका फैक्टर नहीं करेगा काम
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 14 मार्च 2019
भारतीय सट्टाबाजार ने होली के पहले ही राजनीतिक होली खेलनी शुरू कर दी है। उसने अपने पोटली से नए-नए रंग बिखेरने शुरू कर दिए हैं। सटोरियों का चुनावी आकलन भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है।
कौन बनेगा प्रधानमंत्री
सट्टाबाजार ने फिलहाल ‘कौन बनेगा प्रधानमंत्री’ वाला खेल शुरू नहीं किया है। यह खास सट्टा न खोलने के पीछे जानकारी मिली है कि फिलहाल भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के सामने कौन से राष्ट्रीय चेहरे हैं, जो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं, उसका आकलन चल रहा है। जैसे ही वह पूरा होगा, कुछ ही दिनों में ये भाव भी खुलेंगे।
इसके साथ ही दिग्गज चुनावी महारथियों का भी आकलन अभी तक सामने नहीं आया है। न केवल प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों पर खासा सट्टा लगता है, बल्कि कद्दावर नेताओं की हार-जीत पर भी मोटी रकम के दांव लगते हैं। इससे सट्टाबाजार को काफी कमाई होती है।
राष्ट्रवाद की लहर
सट्टा बाजार सूत्रों का आकलन है कि राष्ट्रवाद की जो लहर पिछले दिनों भाजपा और आरएसएस ने पैदा की है, उसका फायदा निश्चित तौर पर चुनाव में इस दल को मिलेगा।
पाकिस्तान के खिलाफ युद्धोन्माद भड़का कर भी भाजपा को काफी फायदा हुआ है। इसके चक्कर में महंगाई, रफाल, बेरोजगारी जैसी तमाम मुद्दे दरकिनार करने में भाजपा सफल रही है।
एक बुकी का कहना है कि भाजपा के तमाम प्रचारक हर रैली में पाकिस्तान के खात्मे का दावा करेंगे। मोदी समेत सभी भाजपा नेता हर रैली में कहेंगे कि हमने बालाकोट में जैसे एयर स्ट्राइक की है, पाकिस्तान को झुकना पड़ा है, यदि और 5 साल मिले तो पाकिस्तान को पूरी तरह खत्म कर देंगे। ऐसे दावों से छद्म राष्ट्रवाद लहर पैदा कर भाजपा अधिक गुंजाइश सीटों की बना सकती है।
रमजान का फायदा भाजपा को
सट्टाबाजार महारथी मानते हैं कि रमजान के दौरान मतदान का फायदा भाजपा को निश्चित तौर पर मिलेगा। पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश में कुल 169 सीट पर इसी महीने में वोटिंग होनी है। इन इलाकों में इस दौरान भीषण गर्मी होती है। तेज गर्मी और भूखे पेट मुस्लिम मतदाता कम ही इन सीटों पर मतदान करने जाएंगे। इसका सीधा फायदा भाजपा को निश्चित तौर पर होगा।
युवा मतदाता पर दांव
देश में कुल 90 करोड़ वोटर हैं। इनमें नौ करोड़ युवा मतदाता हैं। इनमें से भी दो करोड़ पहली बार मतदान करेंगे। भाजपा का मुख्य निशाना यही युवा मतदाता है।
सपाक्स को किया खुश
सटोरियों का आकलन है कि राष्ट्रवाद की लहर का असर सबसे अधिक इसी मतदाता के मन पर हुआ है। वे यह नही समझते हैं कि राष्ट्रवाद की यह लहर छद्म है या सही, वे तो इसका रोमांच जी रहे हैं। इसके जरिए ही युवा मतदाताओं को भाजपा आसानी से रिझा सकती है।
भाजपा ने इस बजट में चुनाव का ध्यान रखते हुए मध्यमवर्ग को फायदा दिया। आयकर सीमा बढ़ा कर एक तरफ जहां नौकरी पेशा वर्ग को खुश किया, वहीं छोटे व्यापारियों को भी खुश करने की कोशिश करती दिखी।
10 फीसदी सवर्ण आरक्षण के कारण भी दूसरी तरफ भाजपा को बढ़त मिलती दिखी। इसकी मुखालफत अधिकांश राजनीतिक दल और नेता नहीं कर पाए क्योंकि सवर्ण वोट बैंक खोने का डर सबको है। इसके पहले भाजपा से सवर्ण वर्ग खासा नाराज हो गया था क्योंकि सुप्रमी कोर्ट ने आरक्षण पर जो आदेश दिया था, सरकार ने उसे अध्यादेश के जरिए रोक दिया था। इससे सवर्ण नाराज हुए थे और सपॉक्स के रूप में अपनी पहचान बाने और ताकत दिखाने लगे थे।
बुकियों का मानना है कि अब भारतीय जनता पार्टी की स्थिति बेहतर हो चुकी है। अब भाजपा 205 से 210 सीटों तक के आंकड़े पर जा पहुंची है, जबकि कांग्रेस थोड़े नुकसान के साथ 92 से 95 सीटों पर उतर गई है।
प्रियंका फैक्टर फुस्स
सट्टाबाजार का दावा है कि प्रियंका गांधी के उप्र में चुनावी महासमर में कूदने का अधिक फायदा कांग्रेस को नहीं मिलेगा। एक बुकि बताता है कि प्रियंका फैक्टर काम ही नहीं करेगा। यह बुकि अपने दावे के पीछे कोई कारण नहीं बताता है।
वे यह भी बताते हैं कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। उनके सामने स्मृति ईरानी को भाजपा उतारेगी। राहुल गांधी को स्मृति ईरानी कांटे की टक्कर देंगी।
सपना चकनाचूर
महाराष्ट्र से केंद्रीय राजनीति में गए एक कद्दावर नेता का बुकियों ने बड़ा ही मजेदार विश्लेषण किया है। बुकियों के मुताबिक यदि भाजपा को 2019 के चुनावों में 190 के आसपास सीटों पर जीत मिलती, तो यह मराठी नेता बगावती तेवर अपनाता। वह नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का विरोध करता। वह इसके लिए संघ दबाव डालता।
पुलवामा आतंकी हमले के बाद बने हालात ने भाजपा की मजबूत होती जा रही स्थिति के कारण इस नेता का यह सपना भी चकनाचूर हो गया है।
नेताओं के दांव
सट्टाबाजार के एक बड़े बुकी नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चुनावी सट्टे में सबसे अधिक पैसा राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं का ही आता है।
इस बुकी के मुताबिक नेता-कार्यकर्ता एक तरफ जहां अपनी पार्टी, उम्मीदवार या खुद के जीतने-जिताने की कोशिशों में रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ सट्टे में मोटी रकम लगाते हैं। इससे सट्टाबाजार को काफी फायदा होता है।
वह बताता है कि कई नेता चुनावी सट्टे में ‘डबल ढोलकी’ की तरह काम करते हैं। वे अपनी पार्टी या उम्मीदवार पर भी सट्टा लगाते हैं लेकिन ताकतवर और जीतने वाले विपक्षी उम्मीदवार पर भी दांव लगाते हैं।
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