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लॉकडाउन में शराब की दुकानें खोलना जनता के साथ मजाक

सोमवार 04 मई 2020 को पूरे देश में शराब की दुकानें खुलीं और बोतलें खरीदने के लिए इस कदर लोगों की भीड़ टूट पड़ी कि भारतीय समाज की असली तस्वीर सामने आ गई।

भारत विकट शराबियों का देश साबित हुआ।

मोदीभक्तों को यह सवाल उठाने का मौका मिला कि देश की अर्थव्यवस्था कहां बिगड़ी?

इतने सारे लोग शराब खरीदने के लिए भीड़ लगा रहे हैं। पूरे देश में एक दिन में करीब 550 करोड़ रुपए की शराब बिकने का अनुमान है।

शराब की दुकानें खोलने का कारण यह बताया गया कि राज्य सरकारों को राजस्व की हानि हो रही थी।

इसके पीछे गहरी चाल मालूम पड़ती है। वैसे भी देश कई दशकों से गहरी चाल में ही फंसा हुआ है।

इस अद्भुत देश को चलाने का सीधा-सरल तरीका स्वतंत्रता के पश्चात कोई भी नेता नहीं खोज पाया। अगर कोई इस तरह की बात दिमाग में रखता भी है तो सत्ता के राजनीतिक चक्रव्यूह में वह अभिमन्यु की गति को प्राप्त होता है।

अब शराब की दुकानों पर भारी भीड़ के बाद सत्ता की राजनीति हो रही है। लॉकडाउन से पूरे देश में जो भीषण कष्ट पैदा हुए हैं, भयानक त्रासदी की रचना हो गई है, उनके बारे में लोग चिंता न करने लगें, इसके लिए जनता को किसी न तरह के तमाशे में उलझाए रखना जरूरी है। शराब की दुकानें खोल देना भी एक तमाशा ही है।

139 करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश में करीब 16 करोड़ लोग नियमित रूप से शराब पीते हैं।

शराब के कारण हर साल 2.60 लाख लोग मर जाते हैं। अर्थात रोजाना 712, कोरोना से कम। शराब पीने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है।

जिस तरह अंग्रेजों ने दूरगामी कार्यक्रम के तहत भारतीय समाज में चाय की स्थापना के सफल प्रयास किए थे, वैसे ही आजादी के बाद से शराब का प्रचलन ग्लैमरस तरीके से बढ़ाने के उपाय निरंतर किए जा रहे हैं, जिससे कि भारतीय समाज शराब को पूरी तरह स्वीकार करने लगे।

शराब को भारतीय समाज में एक अनिवार्य बीमारी की तरह यत्नपूर्वक फैलाया गया है। फिल्मों, विज्ञापनों और सरकार की नीतियों के चलते शराब का प्रचलन बढ़ा। लोगों को आदत लगी, जो लत में बदल गई।

कई लोगों ने फिल्मों में अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र सहित विभिन्न अभिनेताओं को शराब पीते देखकर शराब पीने की प्रेरणा ली।

शराब की लत लगने के बाद उससे पीछे छुड़ाना मु्श्किल होता है।

देश के सभी लोग डेढ़ महीने से लॉकडाउन में हैं। जिनको शराब की लत है, उनकी हालत क्या हो रही होगी, इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है।

दूसरी तरफ कोरोना के कारण कोरोना से ज्यादा अन्य मुसीबतें खड़ी होने से मोदी सरकार के खिलाफ असंतोष भी बढ़ रहा है।

क्या मोदी सरकार के खिलाफ जनता के असंतोष को रोकने के लिए और उसे अन्य समस्याओं में उलझाए रखने के लिए इस भीषण समय में शराब की दुकानें अचानक खोल दी गई?

करीब 16 करोड़ लोग नियमित शराब पीते हैं। आम तौर पर एक व्यक्ति शराब पीकर तीन-चार लोगों को तो परेशान करता ही है।

शराब की दुकान खुलने पर लाखों लोगों ने शराब खरीदी। अंधभक्तों का प्रचार शुरू हो गया कि देश में कोई आर्थिक संकट नहीं है और शराब की दुकानें राज्य सरकारों ने खोली हैं। इससे मोदी का कोई लेना-देना नहीं है।

लॉकडाउन में शराबियों को शराब उपलब्ध हुई। इससे मध्यमवर्गीय परिवारों के घरों में यदि कोई शराबी है, तो वहां लॉकडाउन के दौरान सुकून से जीवन व्यतीत कर रही महिलाओं की समस्या बढ़ेगी। बच्चे परेशान होंगे। घरेलू हिंसा के मामले भी सामने आ सकते हैं। रेप जैसी घटनाएं हो सकती हैं।

शराब चीज ही ऐसी है। वह गले के नीचे उतरने के बाद मनुष्य से पता नहीं क्या क्या करवा देती है।

जब सरकार ने कोरोना के कारण लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है और वह 30 मई तक जारी रहने वाला है, तो 4 मई को शराब की दुकानें खोलने की क्या जरूरत थी?

यह देशहित का कार्य तो बिलकुल नहीं है और न ही इस तरह कोरोना से बचाव हो सकता है।

हकीकत यह है कि सरकार चलाने वाले शराब की दुकानें खुलने से मची अफरा-तफरी का आनंद ले रहे हैं। जनता की मजबूरी देखकर अट्टहास कर रहे हैं।

शराब की दुकानें पूरे देश में एकसाथ खुली तो जाहिर है केंद्र की सहमति से ही खुली होगी।

केंद्र सरकार आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अलावा और कौन चला रहा है?

हकीकत यह है लॉकडाउन के दौरान इस तरह शराब की दुकानें खोलकर जनता की मुसीबतों का मजाक बनाया गया है।

जब कई लोग शराब छोड़ने वाले थे, उस समय शराब की दुकानें खोल दी गई।

मोदी को तो पारिवारिक जीवन का अनुभव है नहीं। परिवार में शराब की क्या भूमिका होती है और उससे क्या-क्या अनहोनी हो जाती है, इसका अनुमान वे नहीं लगा सकते।

शराब की दुकानें खोलने से भारत की जनता का विश्व में बुरी तरह तमाशा बना है, जो कि अच्छी बात नहीं है।

यह जिसका भी फैसला है, वह भारतीय नागरिकों के लिए शत-प्रतिशत खलनायक है।

एक तो लॉकडाउन के दौरान जबरन घर में नजरबंदी। बड़ी-बड़ी बातें। कोरोना से सावधानी, सोशल डिस्टेंसिंग वगैरह-वगैरह। दूसरी तरफ हर जगह शराब की दुकानें खोलने की अनुमति।

क्या सरकार जनता की प्रतिक्रिया देखना चाहती थी?

अब मोदी सरकार ने एक ही दिन में प्रतिक्रिया देख ली है। सारी सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई। लॉकडाउन बेमतलब साबित हुआ।

मोदी सरकार गंभीरता से कोरोना के प्रकोप से देश को बचा रही है या देश की जनता के साथ मजाक कर रही है?

बहरहाल मोदी अवश्य राहत महसूस कर रहे होंगे कि इस तरह के घटनाक्रम होते रहे तो विश्व बैंक की शर्तों के अनुरूप 30 मई तक का लॉकडाउन और सितंबर तक सोशल डिस्टेंसिंग का समय जैसे-तैसे बगैर किसी राजनीतिक झंझट के गुजर जाएगा।

फिलहाल मोदी सरकार के सामने कोई चुनौती नहीं है।

शराब के लिए कानून तोड़ने वाले लोग मोदी सरकार के अव्यावहारिक फैसलों के खिलाफ कानून नहीं तोड़ सकते।

ऐसे लोग जिस देश में रहते हैं, वहां सरकार के लिए तानाशाही कायम करने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

ऋषिकेश राजोरिया

लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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