खेल खल्लास: साधु शेट्टी : ‘साधु’ जिसे मिला मुठभेड़ में ‘निर्वाण’
मई 2002 में मुंबई पुलिस मुठभेड़ों के कारण फिर विवादों में घिरी। राजन गिरोह के सिपहसालार साधु शेट्टी को अपराध शाखा के मुठभेड़ विशेषज्ञ इं. विजय सालस्कर ने मारा, जबकी वह आठ सालों से अंडरवर्ल्ड से तौबा कर गया था।
मुंबई की अंधेरी दुनिया के ‘अंगुलीमाल’ साधु शेट्टी को एक ‘बुद्ध’ मिला जरूर, उसके बावजूद पुलिस ने ‘बुद्धू’ बना कर उसे मौत के घाट उतार दिया।
कर्नाटक के मंगलूर शहर में राजनीतिक-सामाजिक कार्य करने वाले साधु शेट्टी ने काले संसार से अपराध शाखा के डीसीपी दीपक जोग से वादा कर कत्लोगारत की दुनिया को विदा कहा था। इसके बावजूद पुलिस ने उसे मुठभेड़ में मारा, इस पर ढेरों सवाल उठे।
साधु कहता था कि मुंबई निवासी दक्षिण भारतीय नागरिकों को शिवसेना परेशान करती है। इन अत्याचारों का बदला लेने की नीयत से वह अंडरवर्ल्ड से जुड़ा था।
डी-कंपनी के कुख्यात सुपारी हत्यारे माया डोलस से साधु की दुश्मनी थी। घाटकोपर में त्रिमूर्ती होटल चलाने वाले साधु ने माया पर हमला किया था। उसकी जान बच गई तो क्या हुआ, किसी को नहीं पता।
जब साधु ने अंडरवर्ल्ड छोड़ मंगलूर जाने की घोषणा की तो किसी ने भरोसा न हुआ। इसे सबने आंखों में धूल झोंकने की कोशिश बता कर खारिज कर दिया।
साधु कभी ‘साधु’ नहीं बना। उसे गोलियों से ही निर्वाण मिलना था। जब उसने मौत का सौदागर बन हत्या का कारोबार शुरू किया, तभी उसके भाग्य में ऐसी ही मौत लिखी जा चुकी थी।’
डीसीपी का मंदिर बनाया डॉन ने
साधु कोलाबा थाने के हिरासत खाने में बंद था। तत्कालीन उपायुक्त दीपक जोग ने अपराध छोड़ने के लिए उसे दो घंटे समझाया। अगले दिन दीपक जोग दिल के दौरे से चल बसे। इसी रात साधु की आत्मा पिघल गई।
साधु ने कहा, ‘जोग साहब के रूप में भगवान देखा, उनके पैर छुए। उनकी याद में तीन साल तक दीवाली न मनाने का फैसला नाना कंपनी ने किया।’ पूरी कहानी के लिए पढ़ें – खेल खल्लास।
1997 में उसने सायन-ट्रांबे मार्ग पर श्री जोग की याद में ‘सार्इं दीपक मंदिर’ बनवाया था।
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