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किताब: कशाकश : मुंबई अंडरवर्ल्ड में रक्त की होली खेलते सुपारी हत्यारे की दिल दहलाने वाली दास्तां

देश के विख्यात अपराध लेखक विवेक अग्रवाल की ताजा किताब रक्तगंध की एक कहानी इंडिया क्राईम के पाठकों हेतु खासतौर पर प्रकाशित की जा रही है, इस पर टिप्पणियां व सुझाव कमेंट बॉक्स में दें। – संपादक

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कशाकश

खटाक…

“वाह क्या घोड़ा चढ़ाया है!” इदरीस ने एक बार फिर वही पुरानी आवाज सुनी तो सकपकाया।

यह तो वही पुरानी आवाज है। उसी शैतान की आवाज, जिसे दुनिया इबलिस के नाम से जानती है। मुझसे न जाने क्या चाहता है। हर वक्त सिर पर सवार रहता है। खाना खाते समय, गेम बजाते, औरत के पास बैठते, बच्चों के साथ खेलते, बड़े भाई से मुलाकात के दौरान, इबलिस कहां नहीं होता है।

“किसके लिए तैयारी हो रही है?” इदरीस के कानों में इबलिस की शहद में लिपटी आवाज घुसी।

इदरीस जानता है कि इबलिस का इरादा क्या है। इदरीस ने जवाब नहीं दिया। वह सामान[1] का तेल-पानी करता रहा।

यह सामान कोई ऐसा-वैसा नहीं है। 48 कैलीबर का ऊजी है। इंडिया में तो आर्मी वालों को भी नहीं मिलता। यह तो खास इदरीस के लिए मुंबई पहुंचा है। बड़े भाई ने नहीं दिलाया। अपनी मेहनत से कमाया है। ऐसा भरोसेमंद कि आज तक धोखा नहीं दिया। मौके पर कभी जाम नहीं हुआ। कभी निशाना नहीं चूकता। एक दाना खराब नहीं होता। एक बार में 20 दाने भरो और मक्खन के माफिक एक-एक निकलता है – पटापट… पटापट… न हाथ को झटका, न दिमाग को। इस पर पूरे 16 पेटी खर्च हुए हैं। अरे महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक भी इसके आगे फेल है। महाराणा प्रताप का घोड़ा जिंदा था और राजा की जान बचाई थी लेकिन अपना घोड़ा दूसरों की जान लेता है। घोड़ा बोले तो सामान, बोले तो पिस्टल।

“तेरा घोड़ा बहुत कमाल का है इदरीस… और जितना अच्छे से तू चलाता है, सारी दुनिया में तेरी तरह कोई घोड़ा नहीं चलाता होगा… वाह तेरे निशाने का तो कहना क्या! एक दाना – एक खोपड़ी… मैं तो फिदा हूं तेरी इस अदा पर… क्या कहना…” इबलिस ने खीसें निपोरी।

वो इदरीस के दिमाग से निकल कर सामने बैठ गया है। लोग तो कहते हैं कि इबलिस के सिर पर सींग होते हैं, इसके तो हैं नहीं। इबलिस बड़ा मायावी है। हर बार नया रूप लेकर सामने आता है। कभी बड़े भाई की शक्ल में, कभी छोटे बाबू, कभी काऊंटर पेशलिस्ट प्रकाश शर्मा या दयानंद शेट्टी, तो कभी पार्टी पोलिटिक्स वाले भाऊ पाटिल की शक्ल में, कभी जज साब तो कभी जेलर का चेहरा ओढ़े, कभी डॉक्टर तो कभी सिमी के सदर कामरान जाफ़र का मुखौटा लगाए, ये इबलिस कहां और किस शक्ल में नजर नहीं आता।

इदरीस की सांस भर आई। “ये मुझे चैन क्यों नहीं लेने देता!? इसकी परेशानी क्या है?” परेशान इदरीस ने सोचा।

“मेरी कोई परेशानी नहीं है… मैं तो तुझे परेशानियों से निजात दिलाना चाहता हूं… तू काम कर… खूब काम कर… चाहे जितने कत्ल कर… मैं तुझे संभाल लूंगा… मेरी वो शख्सियत है, जिससे सब डरते हैं… मैं जो कह दूं, उससे कोई इंकार नहीं कर पाता… तू एक बात याद रख… तू जिस कंपनी के लिए काम करता है, उसका बड़ा भाई भी मेरा हुकुम मानता है… मैं जैसा कहता हूं तेरा बड़ा भाई भी वैसा ही करता है… उसका मातहत छोटा बाबू तो मेरा मुरीद है… मैं जो नहीं कहता हूं, वो भी कर गुजरता है… सही मायने में तो मेरा असली वारिस छोटा बाबू ही है… तू अगर छोटा बाबू की जगह लेना चाहता है, तो मेरा कहा मान… जो मेरा कहा मानेगा, तो दुनिया पर तू भी राज करेगा… दुनिया की सारी दौलत तेरे कदमों में होगी… जन्नत की हूरों से खूबसूरत औरतें तेरे हरम में, तेरा बिस्तर गर्म करेंगीं… दुनिया की सबसे बेहतरीन शराबें तेरा इंतजार कर रही हैं… उठा घोड़ा, लेकर निकल जा… जो पहला आदमी सामने दिखे, उसकी तरफ दहाना करके आग बरपा दे… उठ इदरीस देर मत कर…” इबलिस की आवाज इदरीस के कानों से होती, दिमाग के हर कोना झनझनाती, दिल में आरी सी आवाज करती, नसों में खून बन कर दनदनाने लगी।

इदरीस ने सिर को ऐसे झटका दिया, जैसे एक जिद्दी मच्छर बार-बार उसके कान के करीब आकर भिनभिना रहा हो। उसे इबलिस कोई खास अच्छा नहीं लगा। आज ही नहीं, कभी नहीं।

“इस कायनात में कोई मुझे इंकार नहीं कर सकता… यह वह वक्त है, जिसमें मेरा ही बोलबाला है… मैं सब जगह हूं… हर जिंदा जिस्म में, उत्तर से दकन में, खाने की तश्तरी में, दोजख से जन्नत तक, जहां नहीं चाहते, मैं वहां भी मौजूद हूं… मेरी मौजूदगी से जो इंकार करे, वह सबसे पहले मेरी गिरफ्त में आता है… मैं हूं… मैं तुम्हारे अंदर हूं… मैं तुम्हारी आंखों में हूं… मैं तुम्हारी जबान में हूं… मैं तुम्हारे इरादों में हूं… मैं तुम्हारे खयालों में हूं… तुम मुझे भूलने की कोशिश करो, तो मैं तुम्हें अधिक याद आऊंगा… तुम मुझसे जितना दूर भागोगे, मैं तुम्हारे अंदर उतनी ही शिद्दत से घर बनाए रहूंगा… तुम मुझसे छिटकना चाहोगे, मैं तुमसे चिपका रहूंगा…” इबलिस कहता रहा, इदरीस अपने काम में जी-जान से मशगूल है।

इदरीस ने पिस्तौल की नाल में तेल लगाने के बाद मुलायम कपड़े से अच्छी तरह बाहरी हिस्सा घिसना शुरु किया। पिस्तौल बिल्कुल नई जैसी चमक उठी। इदरीस की आंखों में सितारे झिलमिलाने लगे। वह खुश हो गया, इबलिस भी खुश हो गया।

“उठ इदरीस गेम बजाने का टाईम हो गया…” इबलिस में एक बार फिर इदरीस को उकसाना चाहा।

ये इबलिस भी कमाल है। न जाने कितने हजारों साल पहले का है लेकिन जुबान आज भी अख्तियार किए है। जो जुबान हम बोलते हैं, ठीक वैसा ही बोलता है। कैसे? क्यों? पता नहीं क्या गोरखधंधा है। इदरीस ने सिर झटक दिया।

इदरीस ने मैगजीन उठाई। उसमें बड़े सलीके और जतन से गोलियां जमाने लगा। 19 गोलियां भरने के बाद इदरीस में मैगजीन चारों तरफ से घुमा कर देखी। वह मुतमईन हो गया कि गोलियां सही भरी हैं। उसे इतमिनान में देख इबलिस भी मुतमईन हो गया।

लेकिन यह क्या!? इदरीस ने तो हथियार बैग में डाल दिया! अब क्या होगा?! इबलिस को लगा उसकी पकड़ कमजोर हो रही है। वह सही वक्त का इंतजार करने के लिए इदरीस के अंदर एक बार फिर समा गया।

इबलिस के जाते ही, पिस्तौल के बैग में पहुंचते ही, इदरीस के अंतस में आवाज गूंजी, “बदी से बड़ी नेकी है, मौत के बड़ी जिंदगी है, जान लेने से जान बचाना बड़ा है, तू आदम का बच्चा है, तू खुदा की पनाह में है, मैं खुदा के नूर से बना हूं, अपना फर्ज अदा करने फिर एक बार तेरे पास आया हूं, दुनिया के मालिक का पैगाम है, आगे बढ़ो और नेकी करो, नेकी करो भूल जाओ, यही तुम्हारा फर्ज है, यही तुम्हारा दीन है…” ये आवाज, ये आवाज तो पहचानी हुई है!

इदरीस जानता है कि यह आवाज भी उसी के अंदर से आ रही है। ओह हांssss, ये तो हमारे वली हैं। पीर बाबा। हमारा खानदान बरसों से इनकी रहनुमाई में है। इन्हें नेकी का फरिश्ता भी कहें,  तो कम होगा। करोड़ों की जायदाद के मालिक थे। न जाने कब और कैसे इलहाम हुआ, सब कुछ गरीबों को तकसीम कर खुदा से लौ लगा बैठे। किसी ने खाने को कुछ दिया, तो खा लिया, नहीं तो पानी पीकर खुदा का नाम लिया। किसी दरख्त के नीचे सो रहे। किसी ने घर बुला खिदमात करना चाही, तो दो-चार दिन रहे, जब मन हुआ सदरी समेटी और निकल लिए। एक चींटी को भी तकलीफ में नहीं देख पाते।

पीर बाबा पूरे खानदान के सरपरस्त रहे। हर घर में उनकी एक गादी होती है। उसे पीर बाबा का तकिया या आस्ताना कहते हैं। इन्हीं पीर बाबा का एक हिस्सा आज भी इदरीस के अंदर कहीं कसकता है। उसे अपनी पकड़ और जकड़ में बनाए रखना चाहते हैं। होता भी क्यों नहीं, पहले अब्बा और अम्मी उनकी नेकियों और सीख के बारे में बताते रहे, उसके बाद वो खुद भी उनसे रूहानी तौर पर जुड़ गया।

हां, ये वही हैं, पीर बाबा। वे तो अल्लाह-तआला की सीख और इल्म इंसानों को पढ़ाते रहे हैं, इतने सालों बाद भी ये मेरे पास क्यों आते है? इनका मकसद क्या है?

इदरीस ने उनकी तरफ भी ध्यान न दिया। उसे चिंता सता रही है कि कहीं पीर बाबा के कहने पर वह दानिश भाई का हुक्म मानने से मंसूख[2] ना हो जाए। ऐसा हुआ तो कयामत के पहले ही कयामत बरपा होगी। उनका एक इशारा होगा और इदरीस का पूरा खानदान खत्म हो जाएगा। वो दानिश भाई के एहसानों तले दबा है।

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इदरीस को वह दिन अच्छी तरह याद है, जब उसके बड़े भाई इखलाक को कुछ गुंडों ने पीट-पीट कर सड़क पर मार डाला।

गुंडे संख्या में 11 होंगे। उनके हाथों में तलवारें, चॉपर, चाकू, गुप्तियां लहरा रहे थे। इखलाक अकेला और निहत्था ही सबसे भिड़ गया। उन्हीं के हथियार छीन कर उन्हीं को मारना शुरू कर दिया।

इखलाक के मुंह से निकले ‘अल्लाह हो अकबर’ और ‘अल मदद’ की गूंज पूरे इलाके में सुनाई देती रही। कुछ ही देर में पूरी सड़क खून से लाल हो गई। इखलाक ने जिस्म पर 50 से ज्यादा जख्म खाए लेकिन तमाम हमलावरों को उसने गाजर-मूली की तरह काट डाला। वे तमाम हलाक हो गए। हर एक का जिस्म जख्मों से ऐसा भर गया कि डाक्टरों के लिए पोस्टमार्टम करना दूभर हो गया।

इसके बाद तो पूरे इलाके में इखलाक की दहशत और इज्जत बन गई। इखलाक के इस कारनामे के बाद से वह सड़क – लाल गल्ली कहलाने लगी।

हमेशा वही होता है, जो इखलाक के साथ भी हुआ। सब कुछ खत्म होने के बाद पुलिस आई। पुलिस ने इखलाक को गिरफ्तार कर लिया। उस पर कत्लोगारत और दंगा करने का जुर्म आयद किया। इखलाक की दलील किसी ने नहीं सुनी कि उसने बचाव में इन लोगों पर हमला किया था। पुलिस ने उसे ही आरोपी मान कर मुकदमा चलाया।

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दुश्मन खेमे के भाई-बंदों ने खुलेआम ऐलान किया कि आंख का बदला आंख, हाथ का बदला हाथ और खून का बदला खून होगा।

वे मौका ताड़ते रहे। एक दिन पेशी के दौरान अदालत के अहाते में हमला हुआ। इस बार दर्जन भर हथियारबंद पुलिस वालों के अलावा सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हमला हुआ। हथकड़ी में जकड़ा इखलाक कुछ कर नहीं पाया। उसे बेरहमी से कत्ल कर हमलावर भाग गए।

इसके बाद पुलिस इधर-उधर लाठियां फटकारती रही। गली के दो-तीन छोटे-मोटे पंटरों को पुलिस ने हवालात के हवाले कर दिया। उन पर इखलाक के कत्ल का मुकदमा बनाया।

ऐसा इस वजह से भी हुआ था क्योंकि इखलाक पर हमला करने वाले इलाकाई विधायक के रिश्तेदार हैं। हुकूमत की ताकत है ही, पैसा भी इफरात में है, लिहाजा पुलिस की आंखें और कान बंद हो गए।

इदरीस गुस्से से फट पड़ा। उसने हलफ उठाया कि इखलाक के कत्ल का इंतकाम लेगा। वो गरीब, लाचार, अकेला और बेबस है लेकिन टूटा नहीं।

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इदरीस ने रास्ते तलाशने शुरू किए। उसे पता चला कि मुंबई अंडरवर्ल्ड का बड़ा भाई याने दानिश बादशाह गरीबों और लाचारों की मदद करता है। वह कौम का खैरख्वाह है। अल्लाह की शान में गुस्ताखी करने वाले काफिरों को वह बमों से उड़वाता है। गोलियों से छलनी करवा देता है। इदरीस खोजते और पता करते दानिश भाई तक जा पहुंचा।

इदरीस ने दानिश भाई के सामने मदद की गुहार लगाई।

दानिश भाई ने उससे कहा, “जो खुद की मदद नहीं कर सकता, उसकी मदद तो खुदा भी नहीं कर सकता… हर इंसान को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है… जब वह अपनी लड़ाई खुद लड़ेगा, तो सारी कायनात उसकी लड़ाई लड़ने साथ खड़ी हो जाएगी… हम कैसे मान लें कि तू यह लड़ाई खुद लड़ने के काबिल है?”

इदरीस की आखों में खून उतरा हुआ है, उसने फौरन कहा, “मैं लड़ सकता हूं या नहीं यह तो वक्त बताएगा… कोई इम्तिहान लेना चाहते हैं तो बताएं…”

दानिश को उसका अंदाज बहुत भाया। उसकी आंखों में सुअर का बाल नजर आया।

“बाहर निकल, जो पहला दुश्मन दिखे, अंजाम की परवाह किए बिना उसे पेट में चाकू मार दे… उसके खून से भरा चाकू लेकर मेरे पास आजा… मैं पूरी कंपनी तेरे साथ लगा दूंगा…” दानिश भाई ने मेज पर पड़े चाकू की तरफ इशारा किया।

इदरीस कुछ पल दानिश भाई को देखता रहा।

“सोचता क्या है… उठा ले खंजर… ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते… ऐसे ताकतवर लोगों की जुबान बार-बार नहीं मिलती… जा ले अपना बदला…” इदरीस के जेहन में आवाजें गूंजने लगीं।

इदरीस सकपकाया। आसपास देखा तो दानिश भाई और छोटा बाबू के अलावा कोई न दिखा। ये दोनों की आवाज नहीं है। यह तो कोई तीसरा है!

“हां मैं तीसरा हूं… लेकिन मैं पहला हूं… तू मुझे नहीं जानता लेकिन मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूं… मैं तेरे अंदर ही रहता हूं… मैं तेरे दिलो-दिमाग का साया हूं… मैं तेरी मोहब्बत के ऊपर हूं… मैं तेरे दीन पर भारी हूं… मैं तेरे ईमान की काट हूं… मैं इबलिस हूं… इबलिस…” एक जोरदार कहकहा इदरीस के पूरे वजूद में गूंजा।

इदरीस जिन हालात में गुजर रहा है, इबलिस से बहस नहीं कर पाया। वो यहां बहस करने नहीं आया है। बदला लेने आया है। इंतकाम।

उसने चाकू उठाया, जेब के हवाले किया, दो कदम पीछे हुआ, मुड़ा और बाहर चल दिया।

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इदरीस घर नहीं गया। सीधा विधायक के इलाके में पहुंचा। साइकिल के पंक्चर पकाने की दुकान पर उसे एक हमलावर दिखाई दिया। वह बैखौफ खड़ा गाजर का हलवा भकोस रहा है। यह गाजर का हलवा उसकी जिंदगी का आखरी खाना होगा, सोचते हुए इदरीस उसके करीब जा पहुंचा। पलक झपकते जेब से चाकू निकाला।

“मार दे… सोचता क्या है… तुरंत मार… ऐसा सुनहरा मौका बार-बार नहीं मिलता… भाई की मौत का बदला लेने का सबसे अच्छा मौका है… दुश्मन सामने है… चीर दे पेट कमीने का…”

इबलिस के उकसाने की आवाजें इदरीस के दिलो-दिमाग पर छाती जा रही हैं। किसी जादूगर की मानिंद उसकी रूह को अपने जाल में जकड़ लिया है। थोड़ी देर पहले तक इंसानों की तरह उसे अपने दिल की आवाज धड़-धड़-धड़ सुनाई दे रही थी, अब उस पर इबलिस की आवाज ने कब्जा कर लिया है, “मार दे… चला चाकू… उसके पेट में घुसेड़ दे… जल्दी कर… इंतजार किस बात का… मार दे, मार…”

इदरीस पर वहशियत छा गई। उसने एक के बाद एक पांच वार दुश्मन के पेट पर किए। हर बार उसने वार करने के बाद चाकू पेट के अंदर ही घुमाया। उसे पता है कि इस तरह चाकू पेट के अंदर घुमाने से तमाम आंतें और पैट की थैली कट जाते हैं। उन्हें सीना दुश्वार होता है। दुश्मन की मौत तय होती है। यह उसे क्यों पता है, उसे भी नहीं पता।

दुश्मन के हाथ से तश्तरी जमीन पर जा गिरी। जिबह होते बकरे की तरह दुश्मन डकराया। उसकी आंखें बाहर की तरफ उबल पड़ीं। जमीन से अचानक फूटे गरम पानी के सोते की तरह उसका खून भलभला कर बह निकला। गर्म चिपचिपा खून जैसे ही इदरीस के हाथ में लगा, उसके हवास वापस आए।

“और मार… मार डाल… छोड़ना मत… गले पर चला दे… सिर काट दे हरामजादे का… ये तेरा जानी दुश्मन है… इसने तेरे खून का खून किया है… तू अगर आज इसे बख्शेगा, तो कल ये तुझे मारने आएगा… मार दे… मार डाल…” इबलिस की आवाज एक बार फिर इदरीस के कानों में भिनभिनाने लगी। इदरीस का हाथ गर्म खून से लथपथ है। अब उसे इबलिस की आवाज सुनाई नहीं दे रही।

इदरीस ने चाकू पेट से बाहर निकाला। पूरा खून से लिथड़ा है। दुश्मन के इलाके में, दुश्मन के वफादार दोस्त, रिश्तेदार, हमदम बहुत होंगे लेकिन कोई इदरीस के पास तक नहीं फटका। इदरीस ने चाकू पॉलिथीन की एक थैली के हवाले किया, जेब में धरा और टहलता हुआ निकल गया।

दुश्मन जमीन पर जा गिरा है। अब कहीं उसके साथ वालों को होश आया। हंगामा बरपा हो गया। कोई चीख रहा है कि गाड़ी लाओ, कोई शोर मचा रहा है कि टैक्सी को आवाज दो। दो लोग उसका हाथ पकड़े तसल्ली दे रहे हैं। किसी ने ये नहीं सोचा कि सामने ही जेजे अस्पताल है। उसके कंपाउंड में जाकर एक स्ट्रेचर ही उठा लाते।

दुश्मन के गले से गों-गों-गों जैसी कुछ आवाजें आ रही हैं। तभी दुश्मन का एक रिश्तेदार कहीं से चादर उठा लाया। छह लोग भारी-भरकम दुश्मन को चादर में किसी तरह उठाए हुए अस्पताल की तरफ भागे। जितना खून बह गया है, उसके बाद दुश्मन का बचना जादू ही होता। जादू नहीं हुआ।

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दुश्मन को मार कर खून सना चाकू लिए इदरीस जब दानिश भाई के दरबार में पहुंचा, तो अपने ‘तख्ते ताऊस’ से उठ कर उन्होंने इदरीस को गले लगा लिया। उनके पास तमाम खबर पहले ही अपने खबरी नेटवर्क से पहुंच चुकी है।

“तू है जिगरबाज… इसे कहते हैं मर्द का बच्चा… तेरे अंदर वो है, जो मुझे देखना था… आज से तू कंपनी में है… बाबू भाई छोकरे में दम है… क्या नाम बोला था तू?” अरे यह आवाज तो दानिश भाई कि नहीं, यह तो इबलिस की है।

इबलिस तो मुझे जानता है फिर नाम क्यों पूछ रहा है? नहीं-नहीं, ये आवाज तो दानिश भाई की ही है।

इदरीस ने धीमी आवाज में कहा, “इदरीस…”

“हां तो आज से तू तैमूर कहलाएगा… तैमूर भाई… बाबू भाई तैमूर को अपने खास इलाके में रखो… इसके पास दुश्मन और ड्रेस वाले[3] नहीं पहुंचने चाहिए… तैमूर तू अपने दुश्मनों की फेहरिस्त बना ले… सब हलाक होंगे… जरूर होंगे… एक-एक को कुत्ते की मौत मारेंगे…” ये तो इबलिस की आवाज है।

‘ये इबलिस क्यों हर वक्त मेरा पीछा करता है!? दिमाग का दही कर डाला है।’ इदरीस ने सिर को झटका दिया।

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कुछ ही देर में इदरीस डब्बे जैसी आठ मंजिला इमारत में मौजूद है। आठ गुना आठ का छोटा सा कमरा है। मुंबई में तो इसे ‘खोली’ कहते हैं, कुछ लोग ‘रूम’ भी कहने लगे हैं।

इसके पीछे 400 साल पुरानी जुमा मस्जिद से मोमिनों के लिए नमाज की पुकार सुनाई दे रही है। इदरीस का मन तो हुआ नमाज के लिए चला जाए।

“जाओ इदरीस… खुदा के सजदे में जाओ… खुदा की पनाह में जाओ… तुम्हें सुकून मिलेगा… तुम्हारे दिल में जो काना[4] बैठ गया है, उससे बाहर आने का रास्ता नजर आएगा… तुम वह नहीं हो, जो तुम कर रहे हो… और जो तुम कर रहे हो, वह तुम बिल्कुल नहीं हो… खुद को पहचानो इदरीस… खुदा के नूर का रास्ता अख्तियार करो… वहीं से तुम्हें जन्नत का रास्ता मिलेगा…” पीर बाबा की आवाज पूरे कमरे में भर गई।

नमाज के लिए जाने की बात दिमाग में क्या आई फौरन पीर बाबा ने उसे मस्जिद जाने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया। एक रोशनी सी कौंध गई। लेकिन यह क्या! इस रोशनी में कमरे में रखी कोई चीज दिखाई क्यों नहीं दे रही! क्या खुदाई नूर के सामने इंसान अंधा हो जाता है?

“नहीं, खुदा के नूर के सामने इंसान अंधा नहीं होता बल्कि उसे सब कुछ साफ दिखने लगता है… इंसान का दिमाग तो कलम-पट्टी[5] की मानिंद है… वक्त ने अगर उस पर बदनुमा वाकयात उकेर दिए हैं, तो इसी नूर से उन्हें मिटाया जा सकता है… खुदा का नूर इंसान की स्लेट-पट्टी का पानी-पोता है, यह समझ लो…” पीर बाबा अभी भी उसी से बात कर रहे हैं।

कमरे में कुल मिला कर एक गद्दा ही तो लगा है। चौखाने की एक चादर बिछी है। उस पर बिना गिलाफ का एक तकिया धरा है।

“न जाने कितने कातिल इस बिस्तर पर सोए होंगे… पर मुझे क्या… मैं तो दानिश भाई की पनाह में आया हूं… वो जैसा रखेंगे, वैसा रहूंगा… मुझे इखलाक भाई के कत्ल का इंतकाम पूरा करना है… वह मैं किसी भी हालत में करूंगा…” इदरीस बड़बड़ाने लगा।

पीर बाबा ने बेबसी सिर हिलाया। वे समझ रहे हैं कि इबलिस ने उसके दिलो-दिमाग, उसके वजूद, उसकी इंसानियत, उसकी सलाहियत और जहनियत पर कब्जा जमा लिया है।

ये ठंडी बेहिस चारदीवारी और सपाट दीवारें इदरीस का दिमाग सुन्न कर रही हैं। नमाज के लिए बुलाहट खत्म नहीं हुई है।

जैसे ही यह बात दोबारा जहन में पैदा हुई, पीर बाबा ने एक बार फिर से जोर मारा, “यह नमाज की पुकार तेरे लिए है… अभी भी वक्त हाथ से गया नहीं है… जा चला जा… अल्लाह-तआला के घर जाकर गुनाहों से तौबा कर ले… कयामत के दिन तू जब अल्लाह-तआला के सामने खड़ा होगा, तो उसे क्या मुंह दिखाएगा? क्या जवाब देगा? जब तेरे आमाल[6] का हिसाब होगा, तब तू क्या कहेगा? जा चला जा…” इदरीस खड़ा रह गया।

रोशनी अभी भी इदरीस की आंखों को चौंधिया रही है। इदरीस ने दाहिना हाथ उठा कर आंखें मलीं, जब हाथ हटाया, आंखें खुली तो मंजर कुछ और पाया।

छोटा बाबू के साथ सूखी लकड़ियों पर चमड़ी मढ़ी हो, ऐसा एक इंसान सामने खड़ा दिखा। कटोरे जैसे गड्ढों में बड़ी-बड़ी दो आंखें हैं, मानो उबले हुए दो अंडे रखे हैं। पतलून-कमीज हैंगर पर लटके हुए से लगते हैं।

“ये सलीम भाई हैं… पूरा नाम सलीम कादरी है… आज से तेरे उस्ताद हैं… ये तेरे को घोड़ा चलाना सिखाएगा…” छोटा बाबू ने परिचय के साथ ही आने का मकसद बताया।

इदरीस को सलीम भाई की शक्ल याद आ रही है। अखबारों में इसकी पुरानी तस्वीर छपा करती है। वो तस्वीर किसी सरकारी कागज से छुड़ाई हुई लगती है। उस पर सरकारी मुहर का एक चौथाई हिस्सा कोने में लगा है।

सलीम भाई को हर तरह के हथियार चलाने में उस्तादी हासिल है। खतरनाक सुपारी हत्यारा है। पहले कसाई था, बकरे-पाड़े जिबह करना काम रहा है। बाद में ये अंडरवर्ल्ड का सुपारी हत्यारा बन गया। सब लोग इसे सलीम हड्डी बुलाते हैं। जिस्म की हर हड्डी ऐसे नुमायां है कि कोई गलती से उनके हाथों से डांडिया ना खेलने लग जाए।

इदरीस ने उन्हें सलाम किया, “सलाम भाईजान…”

“सलाम”, सलीम ने जवाब दिया, “तूने घोड़ा चलाया कबी?”

बाप रे, ऐसे मरगिल्ले से जिस्म में ऐसी खरखराती, पहाड़ों में गूंजती सी, रौबदार आवाज कहां से निकल रही है? कोई गलत स्पीकर तो फिट नहीं हो गया बंदे के गले में?

“नहीं भाई…”

“कोई फिकर नहीं… मैं सिकाएगा तेरे कूं…” सलीम ने पूरे भरोसे से कहा।

“ठीक है भाई…”

“तेरे को कुछ भी मंगता तो बाजू के रूम में जाके बोलने का… एक मारवाड़ी उदर रहता है… अपनाईच आदमी है… तू अपना आदमी है, बोल के बताया उसकूं…” छोटा बाबू ने सूचित किया, “तेरा चाय-पानी, नाश्ता-काना-वीना सब वो टाईम पे करेंगा…”

“जी भाई…” चलो खाने की चिंता तो मिटी। इदरीस सोच ही रहा था कि माचिस की इस डिब्बी में खाने-पानी का इंतजाम कैसे होगा।

छोटा बाबू और सलीम हड्डी चले गए। इदरीस गद्दे पर बिछ गया।

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एक रात सलीम हड्डी एक 407 ट्रक में बैठा कर इदरीस को मुंबई के बाहर ले चला।

पीर बाबा ने इदरीस को रोकने की बहुत ही कोशिश की, उन्होंने समझाया, “क़ुराने पाक में सात चीजों से मुताल्लिक जिक्र है कि वे एक-दूसरे के बराबर नहीं हैं, पहला आलिम और जाहिल बराबर नहीं, दूसरा खबिश और तैयब यानी नापाक और पाक बराबर नहीं, तीसरा दोजखी और जन्नती बराबर नहीं, चौथा अंधा और आंख वाला यानी इल्म-ईमान वाला और इनसे खाली बराबर नहीं, पांचवां जुल्मत और नूर यानी इल्म-ईमान की नूरानीयत और उनसे खाली होने की वजह से हासिल होने वाली तारीकी बराबर नहीं, छठा सर्दी और गर्मी बराबर नहीं और सातवां जिंदे और मुर्दे बराबर नहीं… लिहाजा तू भी तय कर कि तू किस तरफ है… मैं तो कहता हूं कि तू इल्म और ईमान का बन…” लेकिन इबलिस की सिखलाई के सामने एक ना चली।

पांच घंटे का सफर तय करके सलीम हड्डी और इदरीस रायगढ़ जिले के श्रीवर्धन इलाके में जा पहुंचे।

दानिश भाई का यहां के जंगलों और समंदर के किनारे फैली रेत पर अबोली बादशाहत कायम है। तमाम नेता और जनता दानिश भाई से खौफ खाती है। वर्दियों में मौजूद तमाम रूहें दानिश भाई की रिश्वत खाती हैं। मजाल है कि दानिश भाई के बंदों की तरफ किसी की निगाह भी टेढ़ी हो जाए।

यह बताना इसलिए लाजिम है क्योंकि सलीम हड्डी जिस काम से इदरीस को रायगढ़ के जंगलों में लाया है, वह तभी मुमकिन है, जब इलाके पर पूरा कब्जा हो। सही समझे आप। वो इदरीस को पिस्तौल चलाने की तालीम देने लाया है।

महाराष्ट्र में कोकण का इलाका छोड़ दें, तो रायगढ़ की खूबसूरती का मुकाबला कोई और जगह नहीं कर सकती। हरे-भरे घने पेड़ों, चीतों, बाघों, बंदरों, हिरणों जैसे जानवरों से भरे जंगल मीलों तक फैले हैं। दूसरी तरफ मीलों तक पसरा समंदर का किनारा है, जिसके किनारे नारियल और ताड़ के पेड़ों की कतारें जन्नत का नजारा पेश करती हैं। जंगलात के बीच न जाने कितने मकानात दानिश भाई ने बनवा रखे हैं।

इलाके में जगह-जगह शानदार रिसॉर्ट बने हैं। इनमें से कितनों की बेनामी मिल्कियत दानिश भाई की है, कोई नहीं जानता।

सलीम हड्डी जानता है कि उसे कहां जाना है। बीच जंगल एक बंगले में पहुंच सलीम हड्डी ने 407 ट्रक गैरेज के अंदर खड़ा किया। गैरेज के अंदर खड़ी कार बाहर निकाल ली। गैरेज का दरवाजा बंद किया।

बंगले के अंदर और बाहर साफ-सफाई देख कर महसूस होता है कि यहां कोई माली और नौकर जरूर है। खूबसूरत फूल और सजावटी पौधों से सजा और करीने से तराशा हुआ बगीचा किसी अमीर की सैरगाह लगती है।

मुकामी[7] नंबर वाली कार में बैठ सलीम हड्डी और इदरीस फिर सड़क नापने लगे। इस बार अधिक दूर नहीं गए। बमुश्किल 25 मिनट चले होंगे। जंगल में बसे शानदार रॉयल रिसॉर्ट में कार पहुंची। यह कार पहुंची देखते ही चारों तरफ हलचल मच गई। कारिंदे दौड़ते आए। डिक्की से सामान निकाला, कहीं गायब हो गए।

काला सूट-बूट पहने, करीने से कटे बाल, सफाचट दाढ़ी-मूंछ वाला एक अधेड़ बंदा आगे आया। उसने सलीम की तरफ हाथ बढ़ाया।

“कैसे मिजाज हैं जनाब?” वह बंदा बड़ी इज्जत से पेश आया।

इदरीस की निगाह उसके कोटी की ऊपरी जेब पर लगी नेमप्लेट पर गई – संकेत शुक्ला।

इदरीस यह नाम देख कर चौका। एक हिंदू, ऊपर से ब्राह्मण!! कंपनी का मुलाजिम!! दानिश भाई भी कमाल हैं। अभी तो न जाने कितने अचंभे इंतजार कर रहे हैं।

पूरे रिसोर्ट में कुल 11 कर्मचारी हैं। उनके अलावा सलीम और इदरीस ही अब यहां हैं। रिसोर्ट के दो कमरे सलीम और इदरीस के लिए तैयार हैं।

“तू नहा ले भाई, थोड़ा आराम करना है तो कर ले… एक घंटे बाद तेरे कमरे के बाहर मिलता हूं…” सलीम ने इदरीस को उसका कमरा उंगली से दिखाया। कमरा नंबर 10।

इदरीस ने सिर हिलाया और कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे के बाहर हाथ बांधे खड़ा एक बेयरा उसे देख चौकन्ना हो गया। उसने फौरन दरवाजा अंदर की तरफ खोला।

कमरा अंदर से बहुत शानदार है। ऐसे घर और कमरे तो वह फिल्मों में अमीरों के देखता आया है। गुदगुदा पलंग, जिस पर बगुले जैसी सफेद चादर बिछी है। तीन अलग-अलग आकारों के छह तकिए सिरहाने लगे हैं। शानदार सोफा और कुर्सियां हैं। 42 इंच का एलईडी टीवी, दो टन का एसी, चाय-कॉफी बनाने की मशीनें हैं। एक तरफ फ्रिज में किस्म-किस्म की बीयर भरी हैं। पास बनी अलमारी में तमाम किस्म की शराब के मिनिएचर का जखीरा है। रेड और वाइट वाइन से भरा चिलर भी है।

बेयरा उसे हर चीज बता रहा है। यह कमरा क्या है, ऐशो-आराम के तमाम सामान से लबरेज़ जन्नत का टुकड़ा है।

इदरीस की निगाहों में इनका कोई मोल नहीं। शराब की बोतलें जैसे ही इदरीस की निगाहों के सामने आईं, इबलिस एक बार फिर उसके सामने आ नुमाया हुआ।

“आज तो चख ही ले, ये तुझे जन्नत में भी नहीं मिलेगी… अंगूर की बेटी से निस्बत कर ले, ये तुझे जन्नत की सैर यहीं कराएगी… शुरुआत के लिए बस दो बूंद काफी है… दो घूंट में ताजगी आ जाएगी… दो जाम में जिंदगी बन जाएगी…” इबलिस की बातों में इदरीस को बिल्कुल रस नहीं है।

इदरीस सीधे गुसलखाने में जा पहुंचा। फव्वारे के नीचे खड़े होकर देर तक नहाता रहा। वहां रखे खुशबूदार साबुन और शैंपू का इस्तेमाल किया। करीने से सजे झक सफेद तौलिए से बदन पोंछते हुए लगा कि जिस्म से सटे तो शायद बादल भी ऐसे ही लगते होंगे। इदरीस ने साफ धुले कपड़े पहने, कुछ देर कुर्सी पर बैठा सोचने लगा।

“क्या सोच रहे हो इदरीस?” पीर बाबा पास की कुर्सी पर आ बैठे। उसकी समझाई फिर शुरू हो गई। इदरीस उन्हें देखता रहा। बोलता भी तो क्या? बुजुर्गों से बहस तो कर नहीं सकते। उनकी सिखलाई सुनी और अमल की जाती है।

“यह अल्लाह-तआला की ओर से आदम की औलाद में उस इंसान के लिए है, जो सच्चे काम करे, याने कि ऐसे काम जो अल्लाह की किताब और उसके पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि और सल्लम की सुन्नत के मुताबिक हो… चाहे वह मर्द हो या औरत… उसका दिल अल्लाह और उसके पैगंबर में भरोसा करता हो, तो ये वादा है कि अल्लाह उसे दुनिया में बेहतर जिंदगी अता करेगा… बाद दुनिया उसके कामों का सबसे अच्छा बदला देगा… अच्छी जिंदगी में तमाम आराम शामिल हैं… अच्छी जिंदगी याने “हलाल व पाक कामकाज” से है… “क़नाअत[8]“ भी इसका एक हिस्सा है… दुनिया में हलाल कामकाज और इबादत अल्लाह-तआला को बहुत पसंद है… हुक्म की तामील करना और उससे दिल खुश होना ही अच्छी जिंदगी में शामिल है…” पीर बाबा की समझाइश चलती रही, इदरीस सुनता रहा, “जो अच्छे काम करे, जो ईमान से रहे, वही जन्नत में जाएगा… वहां उसे खूब आराम और जिंदगी की तमाम नेमतें बख्शी जाएंगी…”

टनननननन-टन्न…

कमरे में घंटी की आवाज आई। इदरीस का ध्यान टूटा। पीर बाबा गायब हो गए।

इदरीस कुर्सी से खड़ा हुआ। दरवाजे तक पहुंचा। धीमे से खोला। सलीम सफेद रंग के पठानी सूट में बाहर खड़ा है। इदरीस ने घड़ी देखी। एक घंटा बीत चुका है।

“चलें?” सलीम का आवाज गूंजी।

इदरीस ने पूछा नहीं कहां जाएंगे, सिर हिला दिया। दरवाजे के बाहर आया। दरवाजा खींच कर बंद किया।

सलीम आगे हो लिया, उसके पीछे इदरीस। दोनों लंबी बारहदरी पार कर उसी इमारत के अंदर बहुत बड़े कमरे में पहुंचे। इतना बड़ा कमरा कि 500 लोग एक साथ नमाज अता कर लें।

उस कमरे में एक तरफ लगी गोल मेज के इर्दगिर्द पड़ी एक कुर्सी पर सलीम जा बैठा। इदरीस भी साथ वाली किर्सी पर बैठ गया।

सलीम ने कुर्ते के अंदर हाथ डाला, नौ मिमी की शानदार पिस्तौल बरामद की। ये तो काला सोना है, कैसा चमकता है। इठलाता-इतराता अपनी तरफ खींचता है, जैसे चुंबक तैमूर को अपने आगोश में लेने को आतुर हो। इदरीस पिस्तौल की तरफ देखता रह गया। पूरा कमरा इबलिस के कहकहों से भर गया।

“ये स्टार कंपनी का सामान है… इधर अपने इंडिया में नहीं मिलता, बोले तो पानी पार से आता है…” बेवकूफ की तरह पलकें झपकाते इदरीस को देख सलीम समझा कि इस रंगरूट को कुछ पता नहीं।

“पानी पार बोले तो पड़ोसी मुल्क… पहाड़ पार बोले तो चाइना… ये सामान या तो पड़ोसी मुल्क में बनता है या पहाड़ पार मुल्क में… उदर से अपनी कंपनी में आता है… तेरे को खास ये सामान सिखाने को दानिश भाई बोले… इस करके डायरेक्ट येईच सामान निकाला…” उधर सलीम उसे पिस्तौल की खूबियां बता रहा है, उधर इबलिस के ठहाके कम नहीं हो रहे।

इदरीस हैरान है कि आखिरकार इबलिस और पीर बाबा सिर्फ उसे ही क्यों दिखते हैं? दानिश भाई या सलीम भाई या छोटा बाबू को क्यों नहीं? क्या ये वाकई मुझे दिखते हैं!? क्या ये वाकई मुझसे बात करते हैं!? या कि ये मेरा भरम है!? या कि किसी ने मुझ पर कोई अमल किया है!? इदरीस ने सिर को झटका दिया। क्या फायदा ये फजूल बातें सोचने से, काम पर ध्यान देना चाहिए।

****

अगले पांच दिन सलीम ने पिस्तौल खोलने-बंद करने, उसमें आने वाली खराबियां दूर करने, साफ-सफाई और मरम्मत जैसी तमाम बातें सिखाईं।

इदरीस भी अच्छा शागिर्द निकला। उस्ताद की बताई बातें दिमाग में ऐसे दर्ज करता, मानो कैमरा लगा है। जो एक बार बताया, तुरंत जस का तस दोहरा दिया। जो सिखाया, ठीक वैसा करके दिखा दिया। एक नहीं, कई बार सलीम पूछता, वह हर बार पक्का जवाब मिलता। सलीम ने उसी बड़े कमरे में पिस्तौल से निशानेबाजी का अभ्यास भी इदरीस को कराया।

तीन दिन में सौ गज दूर से भी पक्का निशाना इदरीस ने लगाना सीख लिया। पांच फुट से तो ऐसी कयामत बरपाता कि सलीम हड्डी भी देख चौंकता।

इस जगह पर तो अंदर ही टारगेट प्रैक्टिस का सारा तामझाम मौजूद है। खड़ा टारगेट, नीचे से ऊपर आने और गायब होने वाला, बांए से दाएं आने-जाने वाला कागजी टारगेट लगे हैं। इंसानी जिस्म की मानिंद टारगेट भी हैं। एक जगह कार रखी है, जिसमें अंदर इंसानी जिस्म जैसे पुतले रखे हैं। हर टारगेट पर गोलियां दागने की तरकीब अलहदा है। सब सलीम समझाता रहा, इदरीस सीखता रहा।

इसके बाद इदरीस को जंगल में लेकर सलीम कई दफा गया। अलग-अलग इलाकों में इदरीस से चांदमारी करवाई। इदरीस का न तो हाथ हिलता, न कलेजा कांपता, ना आंख सिकुड़ती और ना ही कोई निशाना चूकता।

इदरीस जहां-जहां जाता, इबलिस हर जगह उसके साथ जरूर होता। इदरीस जब चांदमारी कर रहा होता, इबलिस न हंसता, न बोलता। उसकी खामोशी के पीछे भी गहरा राज है। वो चाहता है कि इदरीस बेहतरीन निशानेबाज बने। ऐसा निशानेबाज कि एक गोली और एक जान का लश्करिया सलीका सीख जाए। इबलिस की दुआएं कबूल नहीं होतीं लेकिन इबलिस दुआएं कर रहा है कि ये लड़का दुनिया का सबसे बेहतरीन निशानेबाज बने। उसकी दुआएं तो कबूल हुई नहीं ही होंगी लेकिन इदरीस ने निशानेबाजी में कुल जमा 17 दिनों में जो कमाल हासिल किया, उससे सलीम बड़ा खुश है।

“तेरा सिखलाई पूरा हुआ भाई… वापसी का दिन आ गया…” सलीम ने इदरीस का कंधा थपथपाया। इदरीस को लगा कि उसके जिस्म पर कोई लकड़ी से मार रहा है। एक बार फिर इबलिस के हंसी इलाके भर में गूंज उठी, “चल बाहर गाड़ी इंतजार कर रही है…”

सलीम आगे हो लिया। इदरीस पीछे है। बाहर पहुंचे तो संकेत शुक्ला इंतजार करता मिला। इतने दिनों में इस मरदूद की शक्ल देखने के लिए नहीं मिली थी। आज रुखसती पर एक बार फिर सामने है। कहीं ये भी कोई जिन्न तो नहीं? हो भी सकता है। जिन्नात का क्या है, किसी भी आकार और रूप में रहते हैं।

“जनाब कोई तकलीफ तो नहीं हुई?” ये तो खालिस उर्दू जुबान बोलता है। जरूर जिन्न ही है। इदरीस को अब भरोसा होने लगा।

“सब एकदम चौकस, शुक्रिया…” सलीम ने खुश होकर कहा।

“शुक्रिया कैसा जनाब, जहे नसीब की आपकी खिदमत का मौका मिला… फिर जरूर तशरीफ लाएं…” संकेत ने हाथ आगे बढ़ाया। सलीम ने हाथ मिलाया।

“ये तैमूर भाई हैं… कभी-कभी आपके पास आराम करने आएंगे… दानिश भाई के खास हैं…” सलीम ने इदरीस की तरफ आंख से इशारा किया।

“आप अकेले कार चला कर इन्हें साथ लाए, उसी से समझ गया था… आपका खैरमक्दम है तैमूर भाई…” संकेत ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। इदरीस ने सिर को झटका दिया। संकेत का हाथ अपने हाथ में लिया।

संकेत में उसे इबलिस का साया नजर आया। यह क्या!! इबलिस तो आग से बना है, ये हाथ लाश की तरह ठंडा क्यों है!?

इदरीस ने सिर झटका, ‘मुझे क्या।’

संकेत मुस्कुराया। मुद्दतों बाद आज एक मुस्कान देख, इदरीस के चेहरे पर भी मुस्कान खिली।

“अच्छा संकेत भाई इजाजत…” सलीम ने दाहिना हाथ माथे पर ले जाकर सलाम किया। संकेत ने भी दाहिना हाथ सीने पर रख लिया, हल्का सा झुका।

सलीम बाहर चल दिया। उसकी चमचमाती धुली-पुंछी कार बाहर खड़ी है। चाबी इग्निशन में लगी है। वर्दी में एक लड़का कार के अगले दरवाजे के पास खड़ा है। सलीम को आया देख दरवाजा खोल दिया। अदब से खड़ा हो गया। सलीम अंदर बैठा, तो उसने दरवाजा बंद किया।

इदरीस आगे से घूम कर दूसरी तरफ वाले अगले दरवाजे तक जब तक पहुंचे, तब तक वर्दी वाला लड़का वहां जा पहुंचा। अदब से दरवाजा खोल कर खड़ा हो गया। इदरीस के बैठने पर उसने दरवाजा बंद किया। सलाम ठोंका। इदरीस और सलीम ने सिर हिला कर सलाम का जवाब दिया। सलीम ने चाबी घुमाई, कार का इंजन धीरे से गुर्राया, कार में हल्की सी झुरझुराहट हुई, सलीम ने गियर बदला, कार मुख्य दरवाजे की तरफ दौड़ पड़ी। उनके आने तक चौकीदार ने दरवाजा खोल दिया।

जंगल के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होते कार एक बार फिर डामर की पतली सड़क पर पहुंची। वही 25 मिनट का सफर तय कर दोनों उसी बंगले में जा पहुंचे। इस बार बंगले के दरवाजे पर एक बंदा खड़ा दिखा। कार देखते ही उसने फौरन बड़ा दरवाजा खोला। कार पोर्टिको में पहुंची। दरवाजा बंद कर वह बंदा दौड़ता हुआ पास आया।

“अस्सलाम वालेकुम…”

“वालेकुम अस्सलाम मुन्ना, कोई पैगाम?”

“मलिक साहेब का फोन था, तुम्हारे कूं पूछे…”

“क्या बोला?”

“आपकी आमद कब होंगी, मेरे कूं पता नईं था भाई, मैंई कुच बोला नईं भाई…”

“ठीक है, जा कव्वा ले के आ…”

मुन्ना ने जेब से दो हजार रुपए वाला बाबा आदम के जमाने का डिब्बा सेल फोन निकाल सलीम के हाथों में रख दिया। सलीम उस पर नंबर डायल करते घर के अंदर चल दिया। इदरीस और मुन्ना भी पीछे चल दिए।

सलीम भव्य बैठक में पहुंचा। एक सोफा पर पसर कर बैठ गया। सलीम फोन पर बात करने लगा। उसके सिर्फ होंठ हिलते दिख रहे हैं। आवाज सुनाई तक नहीं दे रही। न जाने कैसी चोर आवाज में बात कर रहा है कि फुट भर पास खड़े इंसान को भी आवाज सुनाई न दे। इससे ज्यादा खामोश आवाज तो हो नहीं सकती, मौत की भी नहीं!

बांए बाजू पड़ी एक शानदार कुर्सी पर बैठा इदरीस सामने लगी आदमकद तस्वीर देख रहा है। बादशाहों जैसे लिबास में नक्काशीदार मियान में रखी हीरे-जवाहिरात जड़ी शानदार मूठ वाली तलवार कमर में लगाए, पठानों जैसी पगड़ी पहने, यह शख्स बहुत कुछ दानिश भाई जैसा लग रहा है। अभी इदरीस उसे देख ही रहा है कि वह शक्ल इबलिस में तब्दील हो गई। इदरीस को अचरज ना हुआ।

इदरीस नजरें हटा कर सलीम को देखने लगा। सलीम की बात खत्म हो चुकी है।

अब तक मुन्ना बड़ी सी ट्रे लिए वहां पहुंचा। खूबसूरत नक्काशीदार कांच के प्यालों में भरे मेवों के साथ पानी भरे कांच के दो गिलास हैं। बीच की मेज पर अदब से ट्रे रख मुन्ना वापस चला गया। सलीम ने मुट्ठी भर बादाम उठा लिए और बेपरवाही से खाने लगा। अचानक उसे याद आया कि इदरीस भी बैठा है।

“तू भी ले इदरीस…”

इदरीस ने किशमिश के चार दाने उठा कर मुंह में रख लिए, पानी का गिलास हाथों में पकड़ लिया। वह सोचने लगा कि जिस तरह यह पिंजर जिस्म मुट्ठी भर कर बादाम खा रहा है, शर्तिया तौर पर इसे दस्त लग जाएंगे।

पानी के गिलास अभी खत्म हुए होंगे कि मुन्ना एक बार फिर ट्रे लिए पहुंचा। ठंडी बियर के साथ दो गिलास। मेज पर ट्रे रख कर उसने ओपनर से बीयर की बोतल का ढक्कन खोला। एक गिलास उठा कर सलीके से बीयर भरनी शुरू की। कमाल कि गिलास में रत्ती भर झाग न बना। उसने दूसरा गिलास भी भरा। मुन्ना ने दोनों गिलास ट्रे में रखे, पहले इदरीस के सामने पेश किया। इसका मतलब हुआ कि वह इस घर में मेहमान है। मेहमान बड़ा हो या छोटा, उसे ही पहले खाना-पीना पेश करने की रवायत है।

“मैं नहीं पीता…”

“तो जीता कैसे है?” सलीम हंस पड़ा।

मुन्ना के चेहरे पर मुस्कुराहट तो आई लेकिन पल भर में गायब भी हो गई।

सलीम का इतना कहना था कि इबलिस बाजू में आ बैठा। वह इदरीस से बार-बार शराब पीने के लिए कहने लगा। परेशान होकर इदरीस ने सिर झटका। इबलिस सामने की कुर्सी पर जाकर बैठ गया। इस इंतजार में कि कुछ देर में इदरीस का मन बीयर पीने के लिए होगा, तब वह खुशी मनाएगा। इदरीस का मन ना हुआ, इबलिस को बड़ी निराशा हाथ लगी।

वह शाम भी बेहतरीन शराब और तरह-तरह के लजीज गोश्त के साथ गुजरी। मुन्ना ने इदरीस के लिए शराब के बदले बेहतरीन पाया सूप पेश किया। ऐसा पाया सूप तो उसने बरसों बाद पिया। क्या तो अम्मी बनाती थीं, क्या बड़ी बी। वे रही नहीं, वे स्वाद भी न रहे।

मुर्गे, तीतर, बटेर, बकरे, खरगोश के गोश्त, चार किस्म की मछलियां, साथ में भुना केकड़ा भी। सलीम ने अब तक सात जाम हलक में उंडेल लिए हैं। मुर्गे की चार टांगें चबाने के अलावा उसने हर तरह का गोश्त चखा। मछलियां और केकड़े भी मजे लेकर खाए।

इदरीस सोचता रहा कि इस अस्थिपंजर को लेने रात में ही एंबुलेंस आएगी।

****

इदरीस गलत साबित हुआ। अगली सुबह सलीम नींबू वाली चाय पीता हुआ बगीचे में बैठा मिला। मुन्ना ने उसे सलाम किया। इदरीस ने सिर हिला दिया।

“चाय भाई जान…” मुन्ना की सवालिया निगाहें उस पर टिकी हैं।

“दूध वाली…”

“दुरूस्त…” मुन्ना ने ट्रे में रखी केतली से भाप छोड़ती चाय कांच के शानदार प्याले में भर पेश की।

अब इदरीस की निगाह ट्रे पर गई। चीनी मिट्टी की डेढ़ फुट गोलाई वाली बेहतरीन तश्तरी में कई किस्म की नानखटाई और बिस्कुट दिखे। घर में बिना नानखटाई या बिस्कुट के चाय कभी अम्मी ने पीने नहीं दी। कहती थीं कि बिना कुछ खाए, चाय नहीं पीते, आतें सड़ जाएंगी।

इदरीस ने ठीक वही नानखटाई उठाई, जिस पर लाल रंग की जेली चस्पा है। बचपन से लाल जेली वाली यह नानखटाई उसकी सबसे पसंदीदा रही है।

अभी उसने नानखटाई मुंह में रखी ही होगी कि पीर बाबा सामने की कुर्सी पर बैठे।

“तू नेक बंदा है इदरीस… खुदा की पनाह में जा… जो बंदा अल्लाह पर ईमान लाता है… अपने सरपरस्त के लिए भरोसे के साथ काम करता है… चुनांचे वह अल्लाह की इबादत में किसी को साझीदार नहीं ठहराता है… अल्लाह की शरीअत पर कायम रहता है… उससे बाहर नहीं निकलता… तो उसे दोनों स्थानों याने दुनिया और आख़िरत में किस्मत, और इस दुनिया और उस जन्नत में कामयाबी हासिल होगी… उसे इस दुनिया की सबसे बड़ी हमदर्दी यह मिलेगी  अल्लाह उसे मन का सुकून, दिल की खुशी और दिल की पाकीजगी अता करेगा… पक्का भरोसा और बेफिकरी के साथ अल्लाह की हुक्म फरमानी पर उसे मुकम्मल तवज्जो कर देगा… बल्कि उस पर यह भी अहसान करेगा कि उसके दिल को पाक, उसके कहन को मुकद्दस[9] और उसके काम को नेक कर देगा… उसे खुले और छिपे हुए फित्नों[10] से बचा लेगा… इन हालात में अगर उसकी मौत होती है, तो उसे कब्र के इम्तिहान से निजात अता करेगा… जब उसे मरने के बाद उठाएगा, तो उसका हिसाब-किताब आसान कर देगा… उसके अज्र व सवाब[11] को कई गुना कर देगा… उसके बुरे कामों को अच्छे में बदल देगा… फिर उसे अपनी मेहरबानी से जन्नत में दाखिला मिल जाएगा… वहां तुम्हें ऐसी खुशी और किस्मत का तजुर्बा[12] होगा कि वह कभी बदखयाल या बदफेल नहीं होगा… यह तज्रबा उसमें जिंदा रहेगा और कभी नहीं मरेगा… और ये तज्रबा उसमें ऐसी चीज़े पाएगा, जिन्हें न किसी आंख ने देखा, न किसी कान ने सुना, और न किसी इंसान के दिल में उसका ख्याल आया होगा… तो इदरीस सुन… तू खुदा की पनाह में जा…” पीर बाबा की सिखलाई का कोई असर होता, तो अब तक इदरीस किसी मसजिद में बैठा तस्बीह फेरता दिखता।

इदरीस ने सिर झटका, कुर्सी से खड़ा हुआ, कमरे की तरफ चल दिया। सलीम उसे जाते एकटक देखता रहा।

“ये छोकरा तेरे को कुछ येड़ा लगता है क्या मुन्ना?” सलीम ने मुन्ना को अर्थपूर्ण निगाहों से देखा।

“मुझे तो दीवाना लगता है भाई… लगता है माशूका गहरी चोट दे गई है…” मुन्ना ने संकित निगाहों से देखते और हल्के से तंज के साथ कहा।

“हूंउउउउउऊ…” सलीम की ‘हूं’ का निकलना हुआ, इबलिस का उसे पकड़ कर इदरीस के पास कमरे तक पहुंचना हुआ।

****

“तू दीवाना है या तू मस्ताना है… क्या है तू? जो भी है, तू मेरा अजीज है… तेरे से बेहतरीन बंदा मेरी शागिर्दगी के लिए कोई हो नहीं सकता… मैं तुझे इस जमीन का मालिक बनाऊंगा… बस तू वैसा ही करता जा, जैसा मैं कहता हूं… एक दिन तू उतनी जमीन का मालिक बनेगा, जितना आसमान से देखने पर आंखें भी नहीं देख पाएंगी… तेरी खिदमत में जमीन की सबसे खूबसूरत औरतें होंगी… जन्नत की हूरें भी जिन्हें देख कर जलन से मर जाती हैं, ऐसी औरतें तेरी खिदमत में होंगी… तू जहां हाथ रखेगा, वह जगह सोने की हो जाएगी…” इबलिस के बोलबच्चन धाराप्रवाह जारी हैं।

इदरीस मानो ख्वाब से जागा, ‘जिसे छू लूंगा, वह सोने का हो जाएगा! क्या बकवास कर रहा है। ये तो मिडास बादशाह वाले वरदान की बात कर रहा है। इसकी बात अगर सच हो गई, तो मैं भूखा मर जाऊंगा। जो खाना छूने जाऊंगा, वो ठंडा पीला पत्थर हो जाएगा। मेरी बीवी और बेटी सोने के बुतों में तब्दील हो जाएंगी। अम्मी की जगह मुझे पालने वाली बड़ी आपा[13] का दामन थामा, तो वो भी सोने की हो जाएंगी। नहीं-नहीं मुझे सोने का कुछ नहीं चाहिए।’

इदरीस आतंकित हो उठा। वह अचकचा कर खड़ा हो गया। इबलिस ने उसका हाल देखा तो फिलवक्त चुप लगाना बेहतर समझा।

वह इदरीस को देखता रहा। इदरीस ने उससे निगाह फेरी, आंख बंद कर कुर्सी की पुश्त से सिर टिका लिया।

इबलिस इसके बावजूद सामने बैठा इदरीस पर नजरें गड़ाए रहा। इबलिस इतना भी बेशर्म न हो तो उसे शैतान मानेगा कौन।

****

पांच माह, 16 खून।

यही आंकड़ा इदरीस का बना।

इनमें छह दुश्मन, बाकी दानीश भाई के शिकार। हर खून के बदले इदरीस को कभी 30, तो कभी 40, तो कभी 75 हजार, तो कभी एक लाख रुपए खर्चे के दानिश भाई देते।

इदरीस रकम खुद पर खर्च नहीं करता। पांच या सात हजार पास रख बाकी रकम परिवार को भेज देता। परिवार को पता नहीं कि इदरीस कहां है? किस हाल में है? क्या करता है? फोन से बात भी नहीं करता है। रकम पहुंच जाती है, वे जान लेते हैं कि इदरीस जिंदा है। इसी में घर वालों का सुकून है, इसी में इदरीस का।

डीबी कंपनी में इदरीस का मुकाम छोटे से वक्फे में बहुत ऊंचा हो गया। दानिश भाई उस पर इतना भरोसा करने लगे कि सीधे उसे काम सौंपने लगे। दानिश भाई जो कह दें, वह पत्थर की लकीर है। जिसे मारने का काम मिला, उसके जिंदा बचने का कोई सबब ही नहीं। घोड़ा लगाया कमर में, बाहर निकल गया। शिकार की तरफ टिपर ने इशारा किया, अगले मिनट शिकार के सर में दहकता सीसा पैबस्त हो जाता। खून के रेले फूट पड़ते। इदरीस के चेहरे पर शिकन ना आती। वह बेहिस चेहरा लिए वापस ठिकाने लौट आता। उसके लौटते वक्त सारे रास्ते इबलिस के ठहाके और खिलखिलाहट गूंजती रहती।

हर बार तैमूर का काम दानिश अपने खास मुखबिरों के जरिए अखबारों और टीवी के सहाफियों[14] तक पहुंचाता। उनके जरिए दुनिया के सामने यह खौफ फैलता जाता।

दानिश कहता है कि जितना तैमूर का खौफ छाएगा, उतना कंपनी को फायदा होगा। हम भी तो आखिरकार खौफ के सौदागर हैं, खौफ बेचते हैं। हमारा खौफ कायम है, तो लोग हमें हफ्ता देते हैं। हमारे पास सुपारी लाते हैं। हर सिर की कीमत मनमर्जी की लेते हैं। जिसकी चाहे जान निकलवा लो, कीमत हमारी चुका दो। जिस जमीन पर हमने कदम रख दिया, वह हमारी हो गई। हम उसे किसी बिल्डर के लिए हथिया लें या कब्जाने के बाद किसी को बेच दें, हमारी मर्जी। यही है खौफ का बाजार, यही है खौफ का मुनाफा। खौफ का दूसरा नाम  तैमूर हो गया।

****

हर महीने या दो महीने में इदरीस ठिकाना बदलता रहा।

कुछ नहीं बदला, तो उसका काम, किस्मत और कज़ा[15]

जो बदला, वो उसकी पिस्तौल, हुलिया और आदतें।

बहुत जल्द इदरीस ने कोल्ट और बेब्ले स्मिथ पिस्तौलों से ‘काम’ किए।

एक दिन किस्मत से उसके हाथ ऊज़ी आ लगी। 20 पेटी सामने वाले ने मांगे, उसने कहा कि 16 अभी हैं, नकद, इस हाथ माल, उस हाथ सामान।

सामने वाले को सौदा जंच गया। वो हफ्ते भर से सामान निपटाने की कोशिश में रहा है। उसने असल तो धोखा खाया था। जिसने सामान मंगाया, वो गायब हो गया। सामान उसके ही गले पड़ गया।

मुंबई क्या पूरे मुल्क में ऐसे सामान की परख करने वाला सिर्फ एक बंदा उसने देखा है। मुंबई अंडरवर्ल्ड का रावण कहलाने वाला सूरज बापट ठीक ऐसे ही दो सामान रखता है।

वो सूरज बापट को तलाशते हुए एक दलाल के जरिए इदरीस से जा टकराया। मनमुआफिक फायदा नहीं हुआ लेकिन खरीद के ऊपर कुछ रकम तो निकल ही आई। सबसे बड़ी बात यह कि खतरा सर से टल गया।

ऐसा सामान मुंबई में बेचने के लिए बड़ा जिगरा चाहिए। न जाने कब कौन मुखबिरी कर दे। क्राइम ब्रांच वाले आएं और सामान समेत धर दबोचें। उसके बाद ऐसी कुटाई होगी कि सात पुश्तें[16],  बिना पुश्तों[17] के ही पैदा होंगी।

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यह दिलो-दिमाग के बीच कशमकश रही या बुजुर्गों-इबलिस की हजारों साल पुरानी दुश्मनी का नतीजा, इदरीस कभी चैन से न जी पाया। उसने इखलाक के हर कातिल को चुन-चुन कर बुरी मौत दी। इतनी बुरी कि ‘कुत्ते की मौत मारने’ का मुहावरा ओछा हो गया।

एक को उसने गले में फांसी का फंदा पहना कर 12वीं मंजिल पर छज्जे से बाहर लटका दिया। लाश दो दिनों तक वहीं लटकी रही। चील-कौव्वे मंडराने लगे, तब कहीं लोगों का ध्यान गया कि ऊपर एक बेजान जिस्म लटका है। आज इबलिस खुश हुआ।

दूसरे को इदरीस ने रंडी के साथ चद्दर बदल लॉज के कमरे में जा पकड़ा। खौफजदा लड़की कमरे के कोने में घुटनों के बीच सिर देकर बैठ गई। इदरीस ने दुश्मन के हाथ-पांव बांधे, मुंह में कपड़ा ठूंसा, चाकू से जिस्म की थोड़ी-थोड़ी खाल उतारता रहा। दुश्मन तड़पता – चीखता रहा। आंखों से दया की भीख मांगता रहा। इदरीस को दया आनी तो है नहीं। उसके सिर तो इबलिस सवार है। आज इबलिस फिर हंसा।

तीसरे को इदरीस ने पहली गोली गले में मारी। वो जमीन पर गिरा, तो पैखाने की जगह में पिस्तौल का दहाना धंसा दिया। एक के बाद एक पांच गोलियां उसके जिस्म में उलटे रास्ते से अंदर पहुंचाता गया। गोलियां अंदर जाती रहीं, लहू के रेले बाहर आते रहे। आज इबलिस खूब हंसा।

चौथे को ठीक निकाह के वक्त तब मारा, जब सुर्ख जोड़े में सजी खूबसूरत दुल्हन के सामने सुरूर भरी आंखों के साथ उसने कहा – ‘कबूल है।’ सिर में धंसी पहली गोली ने उसे दूसरा ‘कबूल है’ कहने भर की मोहलत दी। लाश में तब्दील दुश्मन जमीन पर गिरा। चिलमन में दुल्हन के साथ दर्जन भर लड़कियां-औरतें भी बेहोश हो गईं। खिलखिलाते माहौल में मातम भर गया। इबलिस आज पेट पकड़-पकड़ कर हंसा।

पांचवे को कार में जाते वसई-विरार के जंगलों की तरफ घेरा। उसे जंगल के अंदर ले गया। एक पेड़ पर उसके दोनों हाथ ऊपर कर हथेलियों में कीलें ठोंक दी। दुश्मन रोता रहा, जांबख्शी की भीख मांगता रहा। इदरीस को रहम ना आया। तब तक सामने बैठा रहा, जब तक वो मर न गया। इबलिस आज जमीन पर लोट-लोट कर हंसा।

छठे दुश्मन को मारने के लिए इदरीस ने दानिश भाई के दर्जन भर साथियों की मदद ली। किले जैसे घर में छुपे दुश्मन को मारने के लिए सीधा हमला किया। दोनों तरफ से गोलीबारी हुई। न जाने क्या चमत्कार हुआ कि इदरीस का एक भी साथी, बिना खरोंच खाए वापस लौटा लेकिन दुश्मन खेमे में लाशों के अंबार लग गए। एक इंसान को बचाने में 17 लाशें गिरीं। इबलिस ने आज इदरीस को अपना वारिस करार दिया।

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इस खूनी होली ने पूरे मुल्क की रूह झंझोड़ कर रख दी। गैंगवार के इतिहास में ये सबसे बड़ा नरसंहार साबित हुआ।

इस खून-खराबे ने दानिश भाई को अंडरवर्ल्ड का बेताज बादशाह बना दिया।

इन हमलों के अगुवा इदरीस को कंपनी में ऊंचा मुकाम मिला। उसकी दहशत पूरे देश में पसर गई।

इदरीस का असली नाम कोई नहीं जानता। वो सबके लिए तैमूर भाई बना रहा। अखबारों ने उसे खूनी दरिंदा, नरपिशाच, दानव, इंसानियत का दुश्मन जैसे नाम दिए।

तीन दुश्मन मुंबई से ऐसे गायब हुए कि खोजे ना मिले। न जाने जमीन खा गई या आसमान निगल गया! पुलिस से बचने अपराधियों को फरार होते सुना था, गैंगवार में पहली दफा दुश्मनों को मुंबई से ही पलायन करते पाया।

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इदरीस ने जो हाहाकार मचाया, उसका बुरा असर भी हुआ। मुंबई पुलिस कमिश्नर डी शिवामणि पर दबाव पड़ने लगा कि किसी भी हाल में अंडरवर्ल्ड के सुपारी हत्यारों का आतंक खत्म करें।

डी शिवामणि ने एक क्रैक टीम तैयार की। एसीपी वसंत मंगले को इस क्रैक टीम का सदर बनाया। एसीपी मंगले को उन्होंने खुली छूट दी।

“गो एंड किल… होम मिनिस्टर ही चुईंग माई बॉल्स… मेरा को सिटी में पीस देखना है… तुम लाओ… कैसा भी लाओ… समजा वसंत?”

“सर…”

“तुम्हारा रहता ये लोग पांव पर खड़ा कैसा रहना सकता?”

“सर…”

“सर-सर बोल के मेरा सर नईं खाना… जाओ… रिजल्ट दो…”

एसीपी मंगले ने क्राइम ब्रांच के दर्जन भर छंटे हुए अफसर अलग-अलग यूनिटों से जमा किए। जी हां, ‘छंटे हुए’ क्योंकि जरायम से निपटना आम इंसान के बस का कहां। एक से एक खुराफाती दिमाग और दबंग। सब ऐसे कि वर्दी पहने हैं, तो पुलिस वाले दिखेंगे। पुलिस में आए न होते, तो पुलिस इनका पीछा कर रही होती। इनके अंदर का अपराधी वर्दी में खुश रहता है। कत्लोगारत, मारपीट, तोड़-फोड़ इनका भी पेशा है। फर्क है तो बस इतना कि इसके लिए सरकार ने कानूनी ढाल मुहैय्या कराई है। सरकारी खजाने से इसके लिए वेतन मिलता है।

एसीपी मंगले ने सबके साथ बैठक की। सीआईयू और एमओबी से तमाम गुंडों की फेहरिस्त और तस्वीरें हासिल किए। टॉप ट्वेंटी की पहली फेहरिस्त बनाई। तैमर भाई का नाम सबसे ऊपर है। उसके नीचे सलीम हड्डी है। दानिश और छोटा बाबू के नाम तो कहीं नीचे हैं।

अब क्रैक टीम एक्शन मोड में आ गई। एसीपी मंगले ने मुखबिरों का जाल बिछाया। हर दिन, हर पल, सूचनाएं आने लगीं। एक के बाद एक लाशें गिरने लगीं। कल तक जिन हत्यारों से जनता पनाह मांग रही थी, आज वही हत्यारे बाढ़ आने पर बिलों से निकल सुरक्षित ठिकानों की तरफ भागते चूहों जैसे दिखने लगे। मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, गोवा, केरल, तमिलनाडु, असम, कश्मीर तक वे छुपने गए। एसीपी मंगले की क्रैक टीम वहां भी जा पहुंचती। उन्हें मांद से निकाल कर हलाक करती।

एक तरफ देश भर में एसीपी मंगले सेना का गुणगान होने लगा, तो दूसरी तरफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, पत्रकारों, हलाक हुए गुंडों के रिश्तेदारों का जत्था उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज करवाने लगा। उनके खिलाफ बयानबाजी और धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिए।

एसीपी मंगले इन सबसे बेखबर अपनी हरकतों में लगे हैं। वे एक के बाद एक चूहे दबोचते-मारते घूम रहे। 20 की फेहरिस्त घट कर जब 10 रह गई, तो उन्होंने नए 10 उसमें भर लिए। वे मारते जाते, फेहरिस्त में नई भर्ती करते जाते। अफसोस तो यही कि ये तैमूर भाई उन्हें नहीं मिल रहा है।

छह महीने की कड़ी मशक्कत के बाद एक दिन उनकी लॉटरी खुली। इदरीस के दुश्मन खेमे के एक बंदे ने उन्हें टिप दी कि तैमूर का असली नाम इदरीस हैदर है।

बस, इतना पता चला कि बाकी बातें भी सामने आ गईं। इदरीस का कच्चा चिट्ठा एसीपी मंगले के हाथों में आ गया।

कुछ ही दिनों में उन्हें यह भी पता चल गया कि तैमूर उर्फ इदरीस का कूलिंग पीरियड कहां गुजरता है।

वही रायगढ़ का रॉयल रिसॉर्ट।

****

शहर के हालात खराब हैं। सेक्शन गरम है। बावजूद इसके दानिश भाई ने हिंदूवादी राजनीतिक दल के नेता और मुंबई कोषाध्यक्ष राजदेव को मारने की सुपारी पांच करोड़ में उठा ली।

वह नेता मुंबई का सबसे बड़ा वसूलीबाज है। महानगरपालिका में बैठ कर बिल्डरों, ठेकेदारों, उद्योगपतियों और कारखानादारों के खिलाफ अर्जियां और खत लिख-लिख कर हफ्ते में करोड़ों रुपए कमाता है।

उसने 50 एकड़ में फैली एक खाली जमीन पर बनने जा रहे बाजार और रिहाईशी कॉलोनी के खिलाफ अर्जियां लिख-लिख कर उसने बिल्डर को हलाकान कर दिया। बिल्डर से उसने काम में अड़ंगा न लगाने के एवज 50 करोड़ मांगे। राजदेव ने बिल्डर से कहा कि जब 50 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है, तो उसका वन परसेंट पार्टी फंड का बनता है।

बिल्डर ने सोचा कि इस बेताल को बार-बार कांधे पर लदने और जवाब मिलने पर पेड़ पर जा लटकने का शौक है। इसका यह शौक एक ही बार में पूरा कर देते हैं।

बिल्डर का पांच करोड़ में दानिश भाई से सौदा तय हो गया। दानिश भाई ने काम तैमूर कौ सौंप दिया।

इदरीस को एक सुबह टीपर ने अंधेरी एक्सप्रेस हाईवे पर राजदेव की एसयूवी आते दिखाई। सिग्नल पर खड़ी गाड़ी के पास एक बाईक के पीछे सवार इदरीस पहुंचा। उसने कांच पर घन के दो वार किए। बुलेटप्रूफ कांच खील-कील होकर बिखर गया। पल भर में उसकी ऊजी ने आठ गोलियां उगलीं, राजदेव ने नाक-कान-मुंह से खून और आत्मा उगल दिए। राजदेव का पुलिस गार्ड अपनी कार्बाईन लिए कार में बैठा ही रह गया।

काम फतह। बाईकर ने ऐसी तेजी से बाईक भगाई कि हवा को भी शरम आ गई। अगले मोड़ से यू-टर्न लेकर वह पास की गली में जा घुसा। तनहाई में खड़े फुल कवर बॉडी ट्रक के पिछले हिस्से में बाईक घुसा दी।

दोनों बाईक से उतरे। कपड़े बदले। ट्रक से बाहर निकले। पैदल कुछ दूर तक आए।

एक बंदा कार लिए उनके इंतजार में मिला। वे दोनों उसमें बैठ गए।

उन्हें लेकर कार सीधे रॉयल रिसॉर्ट पहुंची।

वही कमरा, सेवादार, संकेत शुक्ला… वही इबलिस और पीर बाबा की मौजूदगी।

****

पीर बाबा ने रात इदरीस से एक बार फिर कहा कि खुदा की पनाह में आ जाए। गुनाहों से तौबा कर ले, तो अभी भी उसे मुआफी मिल जाएगी।

आज इबलिस सीधे पीर बाबा से भिड़ गया। दोनों में जबरदस्त जुबानी लड़ाई हुई। कुछ देर इदरीस सुना किया, आखिर उनसे हैरान होकर सिर पर तकिया रख सो गया। दोनों सारी रात एक-दूसरे से भिड़े रहे। कोई दूसरे से कमतर नहीं।

****

खट-खट-खट…

दरवाजे पर दस्तक से इदरीस की नींद खुली। रॉयल रिसॉर्ट में आते-रुकते कितना समय हो गया, पहली दफा दरवाजे पर दस्तक हुई है! ऐसी तो यहां की रिवायत नहीं। इदरीस के हाथों में पिस्टल आ गई।

इबलिस की कुटिल हंसी आसमान से आती लगी, पीर बाबा के चेहरे पर अफसोस की गहरी परछाइयां नाचने लगीं।

“कौन?” इदरीस ने सावधानी से पूछा।

“जरूरी पैगाम जनाब…”

ये तो संकेत शुक्ला की आवाज है! ये नामुराद इस वक्त दरवाजे पर क्यों आया!? शायद दानिश भाई ने जरुरी पैगाम भेजा हो।

इदरीस ने पिस्तौल तकिए के नीचे रखी। कुर्ता पहन पलंग के नीचे रखी चप्पल पहनी। दरवाजे तक आया। दरवाजे में लगे तीन ताले-सिटकनियां खोले। जैसे ही दरवाजे का एक पल्ला खुला, गोलियों की बौछार ने उसका जिस्म छलनी कर दिया।

गोलियों की तड़तड़ाहट से परिंदे बेचैन होकर पंख फड़फड़ा कर उड़े। कुछ छत के ऊपर, तो कुछ आसपास के पेड़ों पर जा बैठे। कुछ हवा में दूर उड़ते आंख से ओझल हो गए।

इदरीस को बाहर एसीपी मंगले एके 56 हाथों में थामे दिखा। उसकी नाल से अभी भी धुंआ निकल रहा है। एसीपी के चेहरे पर जीत की चमक है।

अंदर इदरीस और बाहर संकेत शुक्ला के जिस्म रक्त से लथपथ जमीन पर गिरे।

जमीन पर धराशाई होने के पहले इदरीस ने खुले दरवाजे के बाहर देखा। संकेत को भी बाहर एक बंदा गोलियों का निशाना बना रहा है। इदरीस को नौ, संकेत को तीन गोलियां लगीं।

पीर बाबा ने अफसोस में सिर हिलाया, हवा में उड़ते हुए आसमान में एक तरफ चले गए।

इबलिस की हंसी रॉयल रिसॉर्ट में गूंजती रही। वह अभी भी वहां कहीं बना हुआ है। न जाने क्या चाहता है। क्यों वह दुनिया छोड़ कर जाता नहीं।

इंसानी जिस्म में पलते दिल और दिमाग के बीच की कशमकश का एक और अध्याय खत्म हुआ।

अच्छाई और बुराई के बीच की जद्दोजहद का एक और सिलसिला खत्म हुआ।

जिंदगी और मौत के बीच लगातार जारी रस्साकशी का एक और खेल खत्म हुआ।

नेकी और बदी के बीच चुनाव करने-करवाने की तरतीब खत्म हुई, इबलिस और पीर बाबा की कशाकश का एक और दौर खत्म हुआ।

कुल मिला कर इदरीस का जाना, उसके अंदर मचे घमासान और अंतर्द्वंद का सदा के लिए खत्म होना हुआ। बुराई का हासिल अच्छा कैसे हो सकता था, बुरा ही रहा।

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अगले दिन अखबारों के पहले सफे पर मोटे-मोटे हर्फों में खबर शाया हुई:

डीबी कंपनी के खूनी शैतान समेत 14 मुठभेड़ में हलाक, इतिहास की सबसे बड़ी मुठभेड़, दानिश बादशाह का छुपा अड्डा ध्वस्त।

तमाम अखबारों में दानिश, छोटा बाबू, तैमूर के बारे में पन्ने के पन्ने रंगे हुए हैं। उनकी रंगीन और स्याह-सफेद तस्वीरें भी शाया हुई हैं। सारी दुनिया भौंचक है कि आखिरकार एसीपी मंगले ने यह कारनामा कैसे कर दिखाया!

कमिश्नर शिवामणि ने ऐलान किया कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड की कमर तोड़ने वाले एसीपी मंगले को राष्ट्रपति पुरस्कार दिया जाएगा। उनकी टीम को भी पुलिस मेडल से नवाजा जाएगा।

उस रात पुलिस ऑफीसर्स मेस में कमिश्नर शिवामणि ने क्रैक टीम के लिए जोरदार दावत दी।

स्कॉच का गिलास थामे एसीपी मंगले के करीब एक बेयरा स्कॉच की ट्रे लिए आया। एसीपी मंगले ने पिस्तौल निकाल कर बेयरे के सिर पर सटा दी। क्रैक टीम के बंदे करीब ही हैं। उन्होंने फौरन बेयरे की मुश्कें कस लीं। उसकी बेयरे की वर्दी के नीचे कमर में लगा पिस्तौल बरामद कर लिया।

कमिश्नर शिवामणि का भी हलक सूख गया। ये कैसे हो सकता है? इतनी सेफ और सिक्योर जगह में अंडरवर्ल्ड के कॉंट्रेक्ट किलर कैसे पहुंच गए?

“ये इकराम है… इदरीस का छोटा भाई…” एसीपी मंगले ने बताया।

एसीपी मंगले का दिमाग कहां तक चलता है, यह देख कर सब दंग हैं। उन्होंने इदरीस के पूरे खानदान की तस्वीरें पहले से जमा कर ली थीं। वे जानते हैं कि ये कौम खून के बदले खून मांगती है। उनकी सावधानी और चतुराई का ही नतीजा है कि पुलिस क्लब में खून नहीं बिखरा। पुलिस की बड़ी बेईज्जती होती।

अब इकराम के सिर पर इबलिस सवार है। वह कब यहां आ पहुंचा? जो लोग इबलिस की कारस्तानियों और हरकतों को कमतर आंकते हैं, वे भी एक दिन इसी इबलिस का शिकार होंगे। सावधान।

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इबलिस एक बार फिर दानिश के दफ्तर में आ बैठा है।

यह तो उपजाऊ जमीन है। इदरीस यहां पैदा होते ही रहते हैं। ऐसे इदरीस आते हैं, जिनकी आत्माएं और नेक बंदों की बद्दुआएं ही तो शैतान इबलिस की खुराक हैं। इबलिस को नए इदरीस का इंतजार है। इबलिस को इकराम का इंतजार है।

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