कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 05: जाल
यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक
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जाल
“तुम उन लड़कियों जैसी नहीं लगतीं…” ग्राहक ने एलीना के कमरे में घुसते हुए कहा।
“तो किन लड़कियों जैसी लगती हूं?” एलीना ने बड़ी-बड़ी आंखें फैला कर सवाल किया, तो युवा ग्राहक पल भर के लिए सम्मोहित सा हो गया।
“तुम एजुकेटेड, बुद्धिमान, संयत और सभ्य लगती हो…” ग्राहक एक-एक शब्द तौल कर बोल गया।
“उससे क्या फर्क पड़ता है?” एलीना लापरवाह बन गई।
“पड़ता है… अनपढ़ लड़कियों की बातचीत और कामों से भी वो सब झलकता भी है…” ग्राहक ने फर्क गिनाया।
“आप जानते नहीं हैं, वेश्याएं बहुत बुद्धिमान होती हैं… उन्हें पता होता कि उनके पास आने वाले मर्द मन से बीमार होते हैं… उनके साथ हमारी लड़कियां बहुत सावधान रहती हैं, नहीं तो धोखा खाएंगी… ऐसे बीमार मर्दों को मौका मिल गया, तो जाल में फंसाते देर नहीं करते… लड़की एक बार भावुक होकर फंस गईं, तो वे अधिक चिपकते हैं…” एलीना का फलसफा खुल कर सामने आया।
“तो क्या कभी कोई नहीं फंसती है?”
“हमारी लड़कियां मन से इतनी कमजोर नहीं होती हैं कि कोई भी फंसा ले, इसके बावजूद कई औरतें जाल में फंसी भी हैं…”
“आपको नहीं मिला कोई फंसाने वाला?”
“बहुत मिले, रोज ही मिलते हैं… मैं बहुत कंट्रोल्ड और स्ट्रांग हूं… मेरे से खेलना बहुत मुश्किल है…”
“आपको यहां काम करना ठीक लगता है?” ग्राहक ने एलीना की आंखों में सच टटोलना चाहा।
“लगता तो नहीं है लेकिन मेरे पास कोई और रास्ता भी नहीं है… मां का कर्जा चुकाने के लिए इस काम में उतरी हूं…” एलीना ने सच बताया।
“मुझे लगता है कि आपने शिक्षा का सही इस्तेमाल नहीं किया… आप कुछ बेहतर कर सकती हैं…”
“जिस सभ्य समाज की आप बात कर रहे हैं, वहां एक वेश्या की बेटी को भी वेश्या ही मानते हैं… वही मांग आपके सोकॉल्ड सभ्य समाज में भी होती है… सब हमें बार-बार दुत्कारते हैं… अपमानित करते हैं… हमारे पास डरने के लिए ना कुछ है, ना खोने के लिए… यहां सब कुछ सहज है…” एलीना की आवाज में कुछ कड़वाहट घुल गई, जो ग्राहक के मन तक भी पहुंची।
“तो आप कमाठीपुरा के कोठों को किस तरह लेती हैं?” उसने बात दूसरी तरफ मोड़ी।
“कमाठीपुरा सिर्फ जिस्म की भूख मिटाने वाली जगह नहीं है…” एलीना के मन की कड़वाहट दूर हो गई। वो दोबारा सहज, सरल, उन्मुक्त है।
“तो?” ग्राहक हैरान है।
“ये कामोत्तेजना मिटाने की जगह भी है… यहां मर्द दिमागी तौर पर ठीक होने के लिए आते हैं… वे अपनी कल्पनाओं में बहुत अतरंगी काम करते हैं… हम भी उनका साथ देती हैं… वे खुश और संतुष्ट होकर जाते हैं… यही हमारा भी संतोष है…”
“ओह, ऐसा है क्या!? ठीक है, मैं चलता हूं…” ग्राहक खड़ा हो गया।
“क्यों!!? ऐसे ही जाएंगे!!?” अब हैरान होने की बारी एलीना की है।
“हां, मेरा भी दिमाग ठीक हो गया, इसी के लिए तो आया था… मेरी फैंटेसी थी, अब रियलिटी में आ गया… थैंक्स…” ग्राहक कमरे के बाहर चला गया।
एलीना नीरव निगाहों से कमरे का परदा हिलते देखती रही। आज उसके अंदर कोई तार छेड़ गया है। आज खुद को कमजोर पा रही है। आज जाल में फंसा पा रही है।
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