माफ़ करें ‘साहब’, आपदा में अवसर तो आप भी ढूंढ रहे!
निरुक्त भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार, उज्जैन
महाकालजी कि कृपा से मैंने भी अपनी जीवन यात्रा के 50 बसंत देख लिए हैं, इसीलिए अर्ज है कि मेरे मत में श्री कमल नाथ एक सुदृढ़, परिपक्व, अनुभवी और गंभीर राजनेता हैं. वे काफी अरसे तक केंद्र (दिल्ली) में महत्वपूर्ण पदों / मंत्रालयों को बहैसियत काबीना मंत्री सुशोभित कर चुके हैं और मध्य प्रदेश की इमदाद करने में उन्होंने कभी पार्टी लाइन नहीं ली! उनके हस्तक्षेप के चलते प्राय: समूचे राज्य को समय-समय पर बहुतेरे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट मिले हैं.
ये भी एक स्थापित तथ्य है कि कुटिल राजनीतिज्ञ श्री दिग्विजय सिंह के फेर में आकर वे सत्ता समीकरण की बिसात पर बार-बार पिटते रहे और श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे भीड़-खेंचू नेता को भी गँवा बैठे!
15 वर्ष का वनवास काट चुकी कांग्रेस पार्टी और उसके ‘निष्ठावान’ लोगों के लिए ये सब कल्पना से परे था कि जितने जोर-शोर के साथ वल्लभ भवन में उनकी वापसी हुई, वो “बड़े साहब” यानी कमल नाथ के नेतृत्व में झट-से काफूर हो गई!
कहावतें बहुत-सी हैं, इस पोस्ट के समर्थन में, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि मेरा ये सोचना गलत है कि खुद को राजनीतिक रूप से ‘संलग्न’ दिखाने के लिए 75 साल के कमल नाथ जी इन दिनों फिर सक्रियता दिखा रहे हैं? या फिर मेरा ये सोचना एकदम ठीक है कि उनपर बचे-खुचे अवसरों को भुनाने की सनक सवार हो गई है?
सब जानते हैं कि उनके पास बेशुमार संपत्तियां हैं, तभी-तो आलाकामन ने उन्हें जेब खोल कर खर्च करने के लिए 2018 में चुनावी रथ को दौड़ाने का काम दिया! 15 माह बाद सत्ता खोने से औंधे मुंह जमीन पर गिरे नाथ अब फिर से धरती तलाश रहे हैं! शायद (?) उनके लिए कोरोना की दूसरी लहर कुछ आशा और सांत्वना-भरे संदेशे लेकर आई है! पहली कोरोना लहर का नाम सुनते ही उनके हाथ से तोते उड़ जाते हैं क्यूंकि वो सब उनके लिए एक काला इतिहास साबित हुआ!
कांग्रेसी बड़े चतुर होते हैं, संघर्ष का दौर आता है तो सत्ता में प्रभावशील लोगों के भक्त बन जाते हैं और अपनी ही जड़ों में सरेआम कुल्हाड़ी मारने से नहीं चूकते! मगर, उनके नाक और कान बजने लग जाते हैं जैसे ही कांचन और कामिनी की सुगंध उनको रिझाने लगती है!
जनसामान्य में जोरों से चर्चा है कि संभवत: कमल नाथ जी के कानों में उक्त मतलबी प्रकार के लोगों ने फुसफुसा दिया है कि अपन जीत रहे हैं! तभी-तो कमल नाथ जी इन दिनों अपना उड़न खटोला उड़ाकर यहां-वहां पहुंच जाते हैं!
उनके पास समय का अभाव तो शुरू से ही रहा है और उन्होंने जाने कहां से ऐसी सेना बना रखी है जो फिजिकल दूरी कायम रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है! बावजूद इसके कोई शाणा व्यक्ति उनका सामीप्य पा भी ले तो दिन में ही टुन्न कथित स्थानीय नेता “बड़े साहब” के प्रोटोकॉल के नाम पर क्या-क्या करते हैं, अब ये भी सब को मालूम हो ही चुका है!
तो, वे उज्जैन भी आए, बाकायदा हवा से! आस्था और रिश्तों के हवाले से जो करना था, वो भी किया! विपक्ष के नेता के नाते जो भी बात कहनी थी, कही! मगर, मैं तो कमल नाथ जी को ढूँढता ही रह गया…
(छवि: श्री कमल नाथ का उज्जैन हेलीपैड पर आगमन के दौरान अभिवादन करते विधातागण और हाथों में दस्ताने पहने कांग्रेस कार्यकर्त्ता को उनके आशीर्वाद लेने से वंचित करते काले वस्त्रों वाले सज्जन पुरुष)
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लेखक उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकार हैं। विगत तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। संप्रति – ब्यूरो प्रमुख, फ्री प्रेस जर्नल, उज्जैन
(उक्त लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)