भारत यात्रा के बाद चंद्रशेखरजी के विचार
पूरा देश इस समय विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है। कोरोना वायरस के फैलाव ने इन परिस्थितियों को और जटिल बना दिया है। ऐसे समय में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी की याद आती है।
चंद्रशेखरजी में देश को लेकर बड़ी छटपटाहट थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की स्थिति सुधारने के उपाय खोजने में लगाया। देश में आपातकाल लगने पर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
तब उन्होंने कहा था – कोई यह दावा कैसे कर सकता है कि किसी एक व्यक्ति पर देश का भविष्य टिका है। इतनी अधिक चापलूसी और ऐसा ओछापन मेरी फितरत नहीं।
देश की बुनियादी समस्याओं की प्रत्यक्ष जानकारी हासिल करने के लिए उन्होंने 1983 में 06 जनवरी से 25 जून तक कन्याकुमारी से दिल्ली तक अखंड पदयात्रा करते हुए आठ राज्यों की सामाजिक स्थिति निकट से देखी थी। बाद में इस पदयात्रा को भारत यात्रा कहा गया।
भारत यात्रा के समापन के बाद चंद्रशेखरजी ने कहा था- 25 जून 1983 को दिल्ली पहुंचने तक लगभग छह महीने की यह अखंड यात्रा थी। लोगों के स्वयं शामिल होने के कारण इस यात्रा को अद्भुत सफलता मिली। पहली बार लोगों को लगा कि कोई तो ऐसा है जो उनकी समस्याओं को समझने के लिए उनके घरों तक आने के लिए तैयार है। जब हमने यात्रा प्रारंभ की तो संदेहपूर्ण था कि लोग भारत यात्रा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया करेंगे या इसे एक राजनीतिक नाटक के रूप में लेंगे। परंतु पूरी यात्रा के दौरान ग्रामीण लोग, जो निरक्षर थे, अशिक्षित थे, असहाय थे, आने वाले स्वयंसेवकों का स्वागत करने के लिए भारी संख्या में कतार में खड़े थे। लगभग सभी गांवों में, जहां तक कि गरीब लोग भी यथासंभव अच्छे से अच्छे तरीके से स्वागत की व्यवस्था करते थे। भाषा की कठिनाई तो अवश्य रही होगी परंतु दिल की भाषा, जो अधिक शक्तिशाली थी, भावनाओं की अभिव्यक्ति में सहायक रही। हम स्वयं यह बात समझ गए कि यदि हम उनके पास जाते हैं तो लोग सहयोग करने को इच्छुक रहते हैं।
उन्होंने कहा था -इस संबंध में महात्मा गांधी ने लोगों की नब्ज को पहचाना था। यह अपने आप में एक साहसिक कार्य था और यह स्वयं की शिक्षा में साहसिक कार्य था।
चंद्रशेखरजी ने कहा था – भारतीय समाज एक अनोखा समाज है। यह एक ऐसा लोकतंत्र है जिसकी लगभग आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे या हाशिए पर जीवन यापन कर रही है। लगभग दो तिहाई भारतीय अशिक्षित हैं। भारत की एक चौथाई से अधिक जनसंख्या भूमिहीन श्रमिकों की है। भारत की जनसंख्या में साठ प्रतिशत लोग अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के हैं। शहरी और ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर में अंतर बढ़ता जा रहा है। कृषि क्षेत्र की औसत प्रति व्यक्ति आय में कमी आ रही है। बेरोजगार लोगों की संख्या लगभग बत्तीस मिलियन है और इतने अधिक निष्क्रिय लोगों की संख्या न केवल बढ़ रही है अपितु देश की सामाजिक और राजनीतिक अखंडता के लिए एक चुनौती भी बनकर उभर रही है।
उन्होंने कहा था, हमारे सभी आदर्श प्रशंसनीय हैं, सभी अच्छे इरादे हैं और अच्छी भावनाएं व्यक्त की गई हैं। लेकिन इन भावनाओं के बाद भा हमें हमारा लक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है। हम सोच सकते हैं कि हमने एकाधिकार खत्म किए बिना और आर्थिक शक्ति का केंद्रीयकरण किए बिना गरीबी को दूर कर दिया है। यह एक हास्यास्पद संतुलन है क्योंकि गरीबी मिटाने का अर्थ सारे समाज का पुनर्निमाण करना है।
चंद्रशेखरजी कहते थे – भारत के हर जगह के बच्चे कुपोषण के शिखार हैं। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिल पाता। यहां तक कि उन्हें जीवित रहने का अवसर भी नहीं मिल पाता। पैदा होने वाले हर बच्चे को जीवित रहने का अधिकार है। उनके स्वस्थ शारीरिक विकास हेतु हमें उन्हें स्वच्छ पेयजल, आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करना चाहिए और आज के आधुनिक विश्व में उन्हें प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिए। सदियों तक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोग उपेक्षित महसूस करते रहे हैं। इस भेदभाव को दूर करने के लिए हमें पूरी सामाजिक संरचना को अवश्य बदलना चाहिए। महिलाओं को पर्दा प्रथा से बाहर निकालने के प्रयत्न के बावजूद उन्हें समाज में उनका उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है। वे अभी भी असुरक्षित महसूस करती हैं। हमारे संविधान में इसके लागू होने के पंद्रह वर्षों के भीतर निरक्षरता का उन्मूलन करने का वायदा किया गया था, परंतु आज भी साठ प्रतिशत से अधिक व्यक्ति निरक्षर हैं।
चंद्रशेखरजी कहते थे – भारत में ऐसी कोई औद्योगिक नीति नहीं हो सकती जिसमें देश के सुनियोजित विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका का उल्लेख न हो। सुनियोजित विकास में सार्वजनिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को समझे बिना उसकी आलोचना करना एक फैशन बन गया है। यह सत्य है कि भारत में सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के समक्ष अनेक समस्याएं हैं। निजीकरण की वकालत करके और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आमंत्रित करके उसके कार्य क्षेत्र को सीमित बनाने का प्रयास करने की बजाय सार्वजनिक उपक्रम के निष्पादन में सुधार लाने और इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को मजबूत बनाने की मंशा से कार्य करने की आवश्यकता है। इसके गंभीर आर्थिक प्रभाव होंगे।
देश की राजनीतिक परिस्थिति के बारे में चंद्रशेखरजी ने कहा था – राजनीतिक विचारों में अंतर होने के कारण हम एक दूसरे से छुआ – छूत का व्यवहार करने लगे हैं। एक दूसरे से घृणा और नफरत करने लगे हैं। कोई भी व्यक्ति इस देश में ऐसा नहीं है जिसे आज या कल देश की सेवा करने का मौका न मिले या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसकी देश को आवश्यकता न पड़े , जिसके सहयोग की ज़रुरत न पड़े। किसी से नफरत क्यों? किसी से दुराव क्यों ? विचारों में अंतर एक बात है, लेकिन एक दूसरे से नफरत का माहौल बनाने की जो प्रतिक्रिया राजनीति में चल रही है , वह एक बड़ी भयंकर बात है।
– श्रषिकेश राजोरिया
Rishikesh Rajoria FB post on April 4 at 1:43 PM
लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक