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हथियारों का कुटीर उद्योग – भाग 6

सिकलीगरों का संकट – न घर के, न घाट के

वे न तो घर के हैं, न घाट के। यह दर्द है उन सिकलीगरों का जिनको न तो सिख समाज अपना मानता है, न सरकार ने उनको अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया, न ही उनको मिलती है सरकारी या निजी कंपनियों में नौकरियां। उनके लिए तो जिंदगी का अर्थ ही अंधेरा है। इंडिया क्राईम के लिए देश के ख्यातनाम खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल ने इस इलाके के अंदर तक जाकर पूरी पड़ताल की। इंडिया क्राईम की यह बेहद खास और एक्सक्लूसिव रपट –

 

सिकलीगर भले ही अमृत छक कर सिख बने हों, उनकी सबसे बड़ी विडंबना यही है कि उन्हें न सिख समाज स्वीकार करता है, न उन्हें अन्य समाज अपने बीच का मानते हैं। इसके मूल में सबसे बड़ा कारण यही है कि ये सिकलीगर हथियार बनाते हैं। हथियार बनाते रहना उनकी सबसे बड़ी मजबूरी भी है क्योंकि इसके अलावा उन्हें कोई और काम आता भी तो नहीं है।

इस बारे में एक सिकलीगर का कहना है कि हमें दूसरा काम आता नहीं है, और पैसे भी नहीं जिससे हम कोई होटल बना लें या दुकान ही खोल लें, इसके कारण हम यही काम करते रहते हैं। दूसरे सिकलीगर का कहना है कि रोजगार करने के लिए पैसे चाहिए, और पैसे हमारे पास हैं नहीं। इस काम में हमे पैसे तो मिलते नहीं हैं, क्योंकि इसमें तो हमें बस मजदूरी मिलती है। पैसे तो अधिक बचते नहीं हैं कि हम धंधा बदल दें। ये धंधा हमें भी अच्छा नहीं लगता है क्योंकि बार-बार पुलिस आती है, बार-बार हमें भागना पड़ता है।

 

सिकलीगरों के पिछड़े होने की एक और बड़ी वजह सरकारी उदासीनता और लापरवाही भी है। वे पिछड़े वर्ग, दलित, एससी या एसटी कैटेगरी में भी नहीं रखे गए हैं। इसके कारण सरकार द्वारा इन वर्गों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता है।

 

जवाहर सिंह कहते हैं, “सरकार से हमने कर्ज हासिल करने की कोशिश की, हम गए मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी से मिले, उन्होंने हमें आश्वासन दिया। कागज पर उन्होंने भी घोड़े दौड़ाए लेकिन वो कागज भी वहीं तक सीमित रह गए। कलेक्टर के पास ही ये कागज सीमित रह गए। उसके बाद दिग्विजय सिंह जी की सरकार चली गई। उसके बाद हम उमा भारती जी से मिले, जब वे मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने भी कागज पर काम करवाने चाहे लेकिन कुछ नहीं करवा सकीं। बाद में उनकी भी कुर्सी चली गई। हम बाद में किसी मुक्यमंत्री के पास नहीं गए। हम सरकार से चाहते हैं कि हमें कुछ मदद करे।”

 

सिकलीगरों के साथ-क्या किया जाए, यह न तो सभ्य समाज तय कर पाया है, और न ही इसके बारे में सरकार के पास ही कोई तयशुदा योजना है। यही कारण है कि पिछले पांच सौ वर्षों से सिकलीगर अपराधी होने का लेबल लगाए जी रहे हैं। आगे भी न जाने कितने वर्षों तक उनको यह दंश झेलना होगा, कोई नहीं कह सकता।

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