हथियारों का कुटीर उद्योग – भाग 4
जोर, जबर, जुल्मो-सितम से बेहाल सिकलीगर
उपेक्षा ने ही सिकलीगरों को बागी बना रखा है। हमारी पड़ताल में यह साफ हो गया कि समाज का यह हिस्सा कथित सभ्य समाज के ठेकेदारों और देश के नेतृत्व द्वारा इस कदर उपेक्षित और काट कर रखा गया है कि वे अब इसमें बारूद की फसल बोने से परहेज नहीं करते हैं। वे खुद को इस दुनिया के लिए पूरी तरह अवांछित पाते हैं। ऐसे में वे अपराध करते भी हैं तो उन्हें कोई दुख नहीं होता। इंडिया क्राईम के लिए देश के ख्यातनाम खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल ने इस इलाके के अंदर तक जाकर पूरी पड़ताल की। इंडिया क्राईम की यह बेहद खास और एक्सक्लूसिव रपट –
सिकलीगरों का संसार बड़ा विचित्र है। वे समाज में घुले-मिले नहीं दिखते हैं। उनसे हर व्यक्ति दूर भागता है क्योंकि पुलिस की निगाह हमेशा उन पर बनी रहती है। उधर सिकलीगर खुलेआम आरोप लगाते हैं कि पुलिस खुद उनसे हथियार लेती है ताकि अपराधियों से बरामदगी दिखा सके। और तो और उनको भी जबरन किया जाता है ताकि पुलिस अपनी फाईलों के पेट आंकड़ों से भर सके।
जिस सिकलीगर से आप बात करें, वह एक शिकायत जरूर करेगा कि पुलिस उनके साथ घोर अन्याय करती है। अपराधियों को ही नहीं बल्कि बेगुनाहों को भी फंसाने के लिए बनवाती है उनसे ही हथियार। जब उनको हथियारों की जब्ती के रिकार्ड बनाने होते हैं तो उनको ही पकड़ कर ले जाती है, और करती है ब्लैकमेल कि हथियार बना कर जब्ती न करवाई तो जेल में सड़ा डालेंगे।
दीवान सिंह, सिकलीगर समाज के नेता हैं, जो इन हालात से बेहद नाराज नजर आते हैं। वे कहते हैं कि पुलिस को जब भी अपराधियों को पकड़ना और फंसाना होता है, वे हमारे ऊपर धावा बोलते हैं। हमारे जवान बच्चों को पकड़ ले जाते हैं। उनसे हथियार मांगते हैं। हथियार न दिए तो उनके साथ जोर-जुल्म करते हैं।
सिकलीगर समाज के नेता प्रेम सिंह पटवा भी दीवान सिंह से सहमत हैं। उनके मुताबिक सिकलीगर समाज के माथे पर कलंक का टीका लगाने वाले और बनाए रखने वाले, पुलिस के ही अफसरान हैं। वे क्यों नहीं हमें सुधारने की कोई राह बनाते हैं। हम तो कभी नहीं चाहते हैं कि ऐसी बुरी जिंदगी जिएं, लेकिन पुलिस वाले हमें सुधरने दें तो ना।
ये भी आरोप लगते हैं कि कई बार पुलिस ने सिकलीगरों को पकड़ा है और उनको न केवल सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है, उनका जुलूस भी निकाला है। एक सिकलीगर कैलाश सिंह का दावा है कि पुलिस वालों का साथ न देने पर वे इनके साथ मारपीट और हिंसा से भी बाज नहीं आते हैं। उनकी तरह ही सिकलीगर समाज के एक युवक रंगील सिंह का कहना है कि पुलिस अधिकारी उनके समाज के लोगों से बेहद खराब व्यवहार करते हैं। वे न केवल उन पर सदा संदेह करते हैं, उन्हें कहीं भी देखते हैं तो पीछे पड़ जाते हैं। कहीं कोई हत्या हो जाए, कोई डकैती हो जाए, जहां किसी पिस्तौल या कट्टे का इस्तेमाल होता है तो पुलिस वाले सबसे पहले हमारे गावों की तरफ दौड़ पड़ते हैं। वे यही मान कर चलते हैं कि वो हथियार हमारे घरों से ही निकला होगा। बिहार या उत्तरप्रदेश से वो हथियार आया होगा, यह क्यों नहीं सोचते हैं।
सिकलीगरों के आरोपों को पुलिस सही नहीं मानती। अधिकारी कहते हैं कि सिकलीगर आज भी खुलेआम हथियार बनाते हैं, लेकिन अब वे अधिक सतर्क और चालाक हो गए हैं। बुरहानपुर के तत्कालीन एडीशनल एसपी, श्री जैन का मानना था कि ये समाज अब आधुनिक साधनों का इस्तेमाल कर रहा है। वे काफी समझदार और चालाक हो चले हैं। वे अपने बचाव में कानून से लेकर मीडिया तक, सभी का इस्तेमला बखूबी करने लगे हैं।
मुसीबत तो यह है कि पुलिस सिकलीगरों की समस्या समझ नहीं पा रही है, और सिकलीगर हैं कि अपना पुश्तैनी काम छोड़ कर कुछ और करने के लिए पूंजी न होने का रोना रोते हैं। राजनीतिक इच्छा-शक्ति का अभाव अपनी जगह है। ऐसे में लगता है कि सिकलीगर पुलिस अत्याचारों की दुहाई देते रहेंगे, और यह समस्य यथावत जारी रहेगी।