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हथियारों का कुटीर उद्योग – भाग 3

आदिवासी बने हथियार कैरियर

सिकलीगरों के लिए हथियारों की तस्करी कर रहे हैं स्थानीय आदिवासी। गरीबी और भूख के मारे ये आदिवासी सिकलीकगरों के सबसे करीबी और प्राकृतिक सहयोगी बन कर उभरे हैं। कई बार ये गिरफ्तार हुए हैं, न केवल मध्यप्रदेश में बल्कि पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, राजस्थान से लेकर असम और केरल तक जैसे सुदूर राज्यों में भी। आखिर क्या कारण हैं कि ये आदिवासी अपराध की इस धारा की ओर प्रवृत्त हुए। इंडिया क्राईम के लिए देश के ख्यातनाम खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल ने इस इलाके के अंदर तक जाकर पूरी पड़ताल की। इंडिया क्राईम की यह बेहद खास और एक्सक्लूसिव रपट –

 

सिकलीगरों के बारे में एक नई बात सामने आई। मध्यप्रदेश पुलिस का दावा है कि सिकलीगरों ने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के आदिवासियों को उनके हथियारों की तस्करी के लिए कैरियर बना लिया है। इसके कारण पुलिस को उनका पीछा कर गिरफ्तारी करने में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता रहा क्योंकि ये आदिवासी जंगलों के रास्ते कहीं भी आसानी से पहुंच जाते हैं। पिछले कुछ दिनों में हुई गिरफ्तारियों के कारण यह राज फाश हुआ।

पिछले कुछ समय से एक तरीका सिकलीगरों ने इस्तेमाल करना शुरू किया है। महाराष्ट्र के गांवों से मुंबई तक हथियार बेचने के लिए वे खुद जाने के बदले मध्यप्रदेश के गरीब आदिवासियों को कैरियर बनाते हैं। ऐसा ही एक आदिवासी कैरियर पिछले दिनों इंदौर में पकड़ा गया। उससे पुलिस ने हथियार भी बरामद किए।

 

इंदौर पुलिस की अपराध शाखा के एक अधिकारी बताते हैं कि छोटी सी रकम के लिए इन कैरियर का इस्तेमाल होता है। वे महज पांच सौ से एक हजार रुपए की छोटी सी रकम के लिए भी हथियारों की तस्करी करते हैं। उन्हें यह पता नहीं होता है कि असल में ये हथियार किससे लिए हैं, किसे पहुंचाने हैं। दोनों ही छोर पर एक-एक देने वाला और लेने वाला होते हैं। आदिवासी को पकड़ने पर भी असली हथियार तस्कर तक पहुंचना संभव नहीं होता है।

 

थाने में ही एक आदिवासी हथियार कैरियर से भी मुलाकात हो गई। उसने बताया कि बुरहानपुर में उसे एक व्यक्ति ने आकर हथियार दिया था। यह हथियार उसे मुंबई में पहुंचाना था। इसके लिए वह बुरहानपुर से ही एक ट्रक वाले को कुछ पैसे देकर मुंबई तक जाने वाला था। पुलिस को किसी ने मुखबिरी कर दी, जिसके फलस्वरूप वह गिरफ्तार हो गया। अब उसके पास इतने पैसे भी नहीं है कि वह जमानत हासिल करने के लिए वकील कर सके। उसने बताया कि इस काम के लिए उसे एक हजार रुपए मिलने वाले थे।

 

आदिवासियों का इस्तेमाल कर हथियारों की खेप महाराष्ट्र भेजने का तरीका सामने आने से पुलिस के लिए सिकलीगरों को पकड़ना भी मुश्किल हो चला है, यह बात भी पुलिस अधिकारी मानते हैं। तत्कालीन एसएचओ, गणपति थाना, बुरहानपुर, दिनेश शर्मा के मुताबिक इन आदिवासियों के साथ सबसे बड़ी समस्या यही होती है कि उन पर सख्ती भी काम नहीं आती है। वे जेल में कुछ समय रहने के लिए भी तैयार होते हैं। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है कि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। जेल में ही सही, उन्हें खाना-पीना तो मिल ही रहा है।

 

इस बात से ठीक उलट सिकलीगरों का कहना है कि पुलिस आदिवासियों के जरिए हथियारों की महाराष्ट्र में तस्करी की बात फैला कर उनको निशाना बना रही है। सिकलीगर समाज के नेता प्रेम सिंह पटवा कहते हैं कि पुलिस उन्हें जबरन अपराधी बनाए हुए है। उन्हें किसी जरायम पेशा को गिरफ्तार करना होता है तो सिकलीगरों के पास आकर सस्ते हथियार खरीद कर ले जाते हैं। वे कहते हैं कि हथियार बना कर न दो पुलिस वाले उनके साथ बेहद खराब बरताव करते हैं। कैलाश सिंह भाटिया नामक एक सिकलीगर का कहना है कि पुलिस के दबाव में वे आज भी भी हथियार बनाते हैं। पुलिस पकड़ कर ले जाती है और उन्हें हथियार न बनाने पर काफी तंग करती है। एक सिकलीगर ने नाम बतान से साफ इंकार कर दिया। उसने कहा कि पुलिस वाले ही उनके हथियारों के सबसे बड़े ग्राहक होते हैं।

 

महाराष्ट्र पुलिस ने कई बार आदिवासियों से हथियार बरामद किए हैं। उसने मध्यप्रदेश पुलिस से हथियार बेचने वाले सिकलीगरों की शिनाख्त करके गिरफ्तारी के लिए भी कहा है। जनवरी के पहले ही सप्ताह में ऐसा फिर से हुआ। चूहे-बिल्ली का यह खेल जारी है, और आगे भी जारी रहेगा, ऐसा ही लगता है।

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