Litreture

शांतिप्रिय जंगलाधीश

जंगलाधीश अपने आसन पर

मुखमंडल पर निर्मल मुस्कान लिये

ध्यान में लीन थे,

शिकार के विरोध में

जंगल में कबूतरों ने विरोध मार्च निकाला।

गुटुरगूं के शोर से

पूरा जंगल गूंज उठा,

एक आंख टेढ़ी कर

जंगलाधीश ने उन्हे घूरा,

झाड़ियों की ओर इशारा मारा।

भक्त लोमड़ियों ने शह पाकर

कबूतर का मास्क लगाया

और

कबूतरों के झुंड पर टूट पड़े,

बड़ा उत्पात मचाया

कईयों को नोंचा-खसोटा,

कबूतरों के मुखिया का सर तोड़ा,

कईयों को लहूलुहान कर

ज़ख़्मी कर डाला

और फिर जंगलाधीश के पीछे

जा छुपे।

जंगलाधीश ने उन तड़पते कबूतरों को

अपनी ख़ूनी आंखों से घूरा

और फ़रमान सुनाया,

न्याय होगा।

किसी को बख्शा नही जाएगा।

और फिर

जंगल की शांति भंग करने के जुर्म में

उन उत्पाती कबूतरों को उलटा लटका दिया

और इस प्रकार

जंगलाधीश ने न्याय की देवी की

आंखों की पट्टी

उतरने न दिया।

– डॉ. एम. शहबाज

व्यंग्य लेखक एवं कार्टूनिस्ट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Web Design BangladeshBangladesh Online Market