CrimeDrugsExclusive

Drugs: मौत की म्यांऊ-म्यांऊ – 4 : म्यांऊ-म्यांऊ हो गई ‘बुक’ और ‘रवा’

विवेक अग्रवाल
मुंबई, 4 मई 2015
जांच और खुफिया एजंसियों से बचाव करने के लिए अब नशा तस्करों और विक्रेताओं ने मिल कर अपना माल बचाने की नई जुगत भिड़ाई है। उन्होंने अब एमडी या म्यांऊ-म्यांऊ का नाम ही बदल दिया है।

नशा तस्करों और विक्रेताओं के संसार में अपना काला कारोबार जांच व खुफिया एजंसियों से बचाने के लिए यह पुराना नुस्खा है कि नशीली दवाओं का नाम बदल दें।

रवे जैसा दिखता है एमडी या म्यांऊ-म्यांऊ

म्यांऊ-म्यांऊ हो गई “बुक”
पता चला है कि इन दिनों मुंबई के बाजार में म्यांऊ-म्यांऊ का नाम बदल कर बुक रखा जा चुका है। इसके पीछे की कहानी इतनी ही है कि म्यांऊ-म्यांऊ नशा छात्रों में सबसे अधिक चलन में है। पहले वे तस्कर के पास जाकर पाऊडर या एमडी की मांगते थे। अब उनकी सहजता और सहूलियत के लिए तस्करों ने ये नाम बदल दिए हैं।

अब नशेड़ी छात्र किसी के भी सामने बड़े मजे में कहते हैं कि वे तो “बुक” लेने जा रहे हैं। वे भरे बाजार में यदि किसी से यह कहें कि उन्हें “बुक” चाहिए, तो भी कोई समझ नहीं पाएगा कि असल में यह छात्र एक खतरनाक और जानलेवा नशा एक-केट या एमडी या म्यांऊ-म्यांऊ खरीदने जा रहा है।

“रवे” में तब्दील म्यांऊ-म्यांऊ
दूसरी तरफ म्यांऊ-म्यांऊ के थोक बाजार में इन खतरनाक नशे का नाम “रवा” हो गया है। यह नाम मुंबई से दुबई जाने वाले कैरियरों के बीच प्रचलित है। दिखने में कुछ हद तक “रवा” जैसा होने के कारण म्यांऊ-म्यांऊ को ये कैरियर भारत व दुबई के कस्टम्स अधिकारियों को भरमाने और चकमा देने के लिए “रवा” ले जाने की बात कहते हैं।

एमडी या म्यांऊ-म्यांऊ है बेहद खतरनाक रासायनिक नशा

एक कस्टम्स अधिकारी ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि “रवा” ले जाने पर चूंकि कोई प्रतिबंध नहीं है, और म्यांऊ-म्यांऊ की मात्रा भी बहुत अधिक नहीं होती है, जिसके चलते अन्य खाद्य सामग्री के साथ रखा यह नशा भी “रवा” के नाम पर आसानी से कस्टम्स से निकल जाता है। इसके बारे में कुछ पता ही नहीं चल पाता है।

वे बताते हैं कि कस्टम्स में तभी किसी के सामान की तलाशी ली जाती है या उसके सामान को नशा पता करने वाली मशीन से जांचा जाता है। एमडी से निकलने वाली वाष्प या अणुओं की जांच यह मशीन आसानी से करती है। यह मशीन महज चंद सेकंडों में ही किसी भी नशे के बारे में अधिकारियों को बता देती है।

यह भी पता चला है कि फिलहाल खोजी कुत्तों को एमडी का पता लगाने का प्रशिक्षण नहीं मिला है, जिसके चलते ये नशा तस्कर आराम से कस्टम्स अधिकारियों को चकमा देकर निकल जाते हैं। कस्टम्स अधिकारी अब इस दिशा में अधिक सतर्क हो चले हैं और वे कोशिश कर रहे हैं कि इस जानलेवा नशे के भारत से बाहर जाने पर रोक लगाई जा सके।

1 का माल 35 में
बता दें कि भारत में एक तरफ जहां एमडी थोक बाजार में 5 से 7 लाख रुपए में उपलब्ध है, वहीं खुदरा बाजार में पहुंच कर यह 12 से 15 लाख हो जाता है, दुबई के बाजार में पहुंच कर यही माल 25 से 35 लाख की मोटी कमाई करवाता है। सड़कों पर इसकी एक ग्राम की छोटी सी पुड़िया बड़े मजे में 2,500 से 3,500 रुपए की बड़ी रकम में बिकती है।

पता चला है कि यह जानलेवा नशा दुबई और आसपास के अन्य खाड़ी देशों में रहने वाले भारतीय, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी मजदूरों और कर्मचारियों में काफी हद तक फैलता जा रहा है।

कस्टम्स अधिकारियों का तो यह भी मानना है कि दुबई से यह नशा कुछ और देशों में भी फिर से तस्करी के जरिए जाता होगा। वे दुबई को महज एक ट्रांजिट पॉईँट के रूप में ही देखते हैं। वहां पर इस नशे की अधिक खपत होने की संभावना उन्हें कम ही नजर आती है।

++++
TAGS
4-METHYLEPHEDRONE, 4-METHYLMETHCATHINONE, 4-MMC, DRUGS, MCAT, MD, MEPHEDRONE, NARCOTICS, VIVEK AGRAWAL, एम-कैट, एमडी, नशा, विवेक अग्रवाल, मादक पदार्थ, ड्रग्स, नशीली दवाएं, मेफेड्रोन, मिथाईल एफेड्रोन, मुंबई, भारत, Mumbai, India,
++++

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Web Design BangladeshBangladesh Online Market