Drugs: मौत की म्यांऊ-म्यांऊ – 5 : मुंबई में नशा सौदागरों ने फैला दिया म्यांऊ-म्यांऊ
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 5 मई 2015
मुंबई में ‘म्यांऊ-म्यांऊ’ की पहुंच हर छोटे-बड़े तक आसानी से हो रही है, जिसके पीछे न केवल संगठित अपराधी गिरोहों का हाथ है बल्कि कुछ पुराने अपराधियों ने भी अपना पुराना काम-धंधा छोड़ कर इस नए नशे की तिजारत से करोड़ों की कमाई शुरु कर दी है। ऐसे ही कुछ पुराने अपराधियों को पुलिस ने मुंबई से लेकर मुंब्रा तक गिरफ्तार भी किया था।
हैरत की बात तो यह है कि एनडीपीएस एक्ट में शामिल होने के बावजूद एमडी के मामलों में गिरफ्तार होने वाले विक्रेता और तस्कर बड़ी आसानी से 15 से 60 दिनों में ही जमानत पर छूट कर बाहर आ रहे हैं। वे जमानत पर छूट कर भी फिर एमडी की तस्करी या खरीद-फरोख्त में जुट जाते हैं।
जेबकटी से म्यांऊ-म्यांऊ : तसलीम हलीम
पिछले दिनों एमडी का एक बड़ा तस्कर तसलीम हलीम मुंब्रा में गिरफ्तार हुआ था। मुंब्रा के अमृत नंगर दरगाह निवासी इस तस्कर के पास से महज 15 ग्राम एमडी ही निकलने की बात से इलाके के तमाम लोग तौंके थे। उनका कहना था कि जो व्यक्ति हर दिन दो से तीन किलोग्राम एमडी के सौदे करता हो, उससे महज 15 ग्राम मात्रा का बरामद होना बड़े आश्चर्य की बात है।
तसलीम की गिरफ्तारी फरवरी माह में हुई थी। अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह में वह जमानत हासिल कर वापस मुंब्रा लौट आया।
पता चला है कि वह पहले एक नामचीन जेबकतरा था। मुंबई व नवी मुंबई की लोकल ट्रेन और शहरी इलाकों में वह जेबकतरी करता था। उसके खिलाफ जेबकटी के कई मामले पहले से ही दर्ज हैं। उसके खिलाफ हत्या के प्रयास का एक मामला आग्रीपाड़ा थाने में भी दर्ज हुआ था, जिसमें वह गिरफ्तार हुआ, अदालत में मामला चला तो वह दोषी साबित हुआ, अदालत ने उसे बाकी आरोपियों के साथ आजीवन कारावास भी सुना दिया था। उसने सजा के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट में अपील कर दी, जिससे उसे जमानत हासिल हो गई। उसके बाद से ही वह जानलेवा नशे एमडी की खरीद-फरोख्त में लग गया था।
चरस से म्यांऊ-म्यांऊ : रफीक जर्मन
घाटकोपर निवासी रफीक जर्मन मार्च 2015 में एक दिन मुंब्रा पुलिस के हत्थे तब चढ़ गया, जब वह 450 ग्राम एमडी स्थानीय विक्रेता को देने आया था।
घाटकोपर और आसपास के इलाकों में उसके खिलाफ चरस खरीद-फरोख्त के कई मामले पहले से ही दर्ज हैं। उसे अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह में ही जमानत भी मिल गई और वह फिर से इस काले कारोबार में सक्रिय हो चला है।
म्यांउ-म्यांऊ का चिकना परिवार
इस खतरनाक नशे के सौदागरों का प्रथम परिवार यदि किसी को कहा जा सकता है तो वह चिकना परिवार है। खानदानी रूप से इस परिवार का कारोबार जेबकटी ही रहा है। अब यह पूरा परिवार ही एमडी के काम में जुट गया है। पहले मुंबई के डोंगरी इलाके में रहने वाले अजीज पाकेटमार उर्फ अजीज चिकना के दो बेटे नदीम चिकना और तबरेज चिकना एमडी के खेल में सबसे ऊंचे खिलाड़ी बन चले हैं।
1992 में अजीज को मुठभेड़ में पुलिस ने मार गिराया था। तब तक अजीज चिकना ने भी चरस बेचने का कारोबार शुरू कर दिया था। अजीज की मौत के बाद नशे का पूरा कारोबार उसके छोटे भाई यूसुफ चिकना ने हथिया लिया था।
अजीज का परिवार 1997 में मुंब्रा चला आया। वे यहां पर बांबे कॉलोनी, अमृत नगर में रहते हैं। उनके खिलाफ इतने मामले मुंबई में दर्ज हुए हैं कि पूरा चिकना परिवार मुंबई से पुलिस ने तड़ीपार कर दिया है।
यहां पहले नदी और चिकना मिल कर चरस बेचने लगे थे। पूरी मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई जिलों में नशा सौदागरों के रूप में चिकना भाईयों का नाम चलता है। ये दोनों आज इन तीन जिलों में सबसे अधिक मात्रा में नशा बेचते हैं। मुंब्रा में रेतीबंदर पर लगभग इन्हीं का कब्जा है। वहां पर उनकी हुकूमत चलती है।
पता चला है कि नदीम ने आलम खान पर मुंब्रा में गोलीबारी भी की थी। इसका एक और भाई है, जिसका नाम है अल्ताफ चिकना। इस पर टाडा के तहत एक मामला भी हथियार जब्ती का दर्ज है। वह अजीज चिकना का सबसे बड़ा बेटा है। नदीम पर हत्या, हफ्तावसूली, हत्या प्रयास, गोलीबारी, पुलिसवालों की पिटाई जैसे कई मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं। तबरेज पर भी हत्या का मामला दर्ज है।
अजीज से युसुफ तक म्यांऊ-म्यांऊ
अजीज की मौत के बाद नशे का सारा कारोबार यूसुफ चिकना ने हथिया लिया था। वह अजीज का छोटा भाई है। अजीज के बेटे अरशद चिकना, शारिक चिकना और दानिश चिकना भी इसी काम में लगे हुए हैं। इस परिवार को भी एमडी बेचने में महारत हासिल है।
बता दें कि युसुफ पर एमडी की बरामदगी के कई मामले हैं। उस पर बार-बार पुलिस मामले बनाने लगी तो अब उसने पुलिस के ही खिलाफ शिकायतें दर्ज करनी शुरू कर दी हैं कि कुछ अधिकारी जानबूझ कर उसके खिलाफ मामले बना कर झूठे मुकदमों में उसे फंसा रहे हैं।
एक मुखबिर के मुताबिक इस परिवार का हर सड़का कम से कम आधा किलो सोने के जेवरात शरीर पर पहन कर बाजार में घूमता है।
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