मुंभाई किताब का खुलासा – कौन होगा डी-कंपनी का अगला वारिस?
पिछले काफी दिनों से एक सवाल बार-बार सामने आता रहा है कि डी-कंपनी का अगला वारिस कौन होगा? पुस्तक मुं’भाई के लेखक व खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल से भी लगातार ये सवाल पूछा जाता है। उन्होंने हमेशा यही कहा है कि जब तक दाऊद जिंदा है, यह सवाल बेमानी है। यह बात और है कि उसकी आंख बंद होने के बाद गिरोह पर वर्चस्व की लड़ाई नहीं होगी। डी-कंपनी का आपराधिक साम्राज्य परिवार के किसी बंदे के पास नहीं जाएगा। वह दाऊद के सबसे करीबी और गिरोह के सिपहसालार छोटा शकील के सक्षम हाथों में जा सकता है।
शकील की चुनौती खत्म
ये संकेत साफ मिलने लगे हैं कि डी-कंपनी का अगला वारिस छोटा शकील होगा। इसका सबसे प्रबल कारण यही है कि गिरोह में शकील को चुनौती देने वाली दूसरी कोई शख्शियत दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है। जो गिरोहबाज उसे चुनौती दे सकते है, उनमें एजाज पठान और अबू सालेम मुख्य थे। एजाज पठान को तो छोटा शकील ने पहले ही इस स्थिति में पहुंचा दिया कि वह दर-दर की ठोकरें खाता हुआ अंततः भारतीय पुलिस के हाथों पड़ा और बीमारी से आर्थर रोड जेल की सलाखों के पीछे ही मर गया। अबू सालेम का पुर्तगाल से प्रत्यर्पण में नूरा और शकील का हाथ था। वह फिल्म तारिका मोनिका बेदी के साथ गिरफ्तार होकर लिस्बन में सजा काट कर भारत प्रत्यर्पित हुआ। अब उसके मुकदमे यहां चल रहे हैं, जिनके जल्द खत्म होने के आसार नजर नहीं आते। वह अभी और दस साल तक जेल में ही रहेगा।
भाई नहीं हैं काबिल
यह भी कहा जाता है कि दाऊद का एक भी भाई इस योग्य नहीं है जो गिरोह की कमान संभाल सके। नूरा कासकर में कुछ हद तक तो गिरोह के तौरतरीकों से कामकाज करने की ताकत थी लेकिन उसकी कुछ समय पहले मौत हो चुकी है। अनीस जरूर गिरोह में कुछ कामकाज करता है लेकिन उसकी नेतृत्व क्षमता पर तो गिरोह के ही सदस्यों को भरोसा नहीं है। इकबाल कासकर मुंबई में है। उसके बारे में भी यही बात गिरोह और जांच व खुफिया एजंसियों के अधिकारी तक कहते हैं। हुमायूं और मुस्तकिन का भी कमोबेश यही हाल है।
क्या नया सरदार होगा मुस्तकिन?
नूरा की मौत से बुरी तरह दहले गिरोह सरगना दाऊद के लिए सन 2009 में सबसे बड़ा सवाल यही था कि आखिर उसका वारिस कौन होगा? नूरा उसकी कुर्सी संभालने के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति हो सकता था। उसके सामने अपने दो भाई अनीस और इकबाल के अलावा गिरोह के सेनापति छोटा शकील ही ऐसे लोग थे, जिन्हें गिरोह संभालने का पूरा-पूरा अनुभव है और वे गिरोह को बखूबी संभाल भी सकते थे लेकिन सबकी कोई न कोई कमजोरी है जिसके कारण दाऊद उनमें से किसी को भी गिरोह की कमान नहीं देना चाहता था। अनीस और इकबाल के खिलाफ कई मामले कई देशों में दर्ज हैं। अनीस और इकबाल में उस तरह की दीदादिलेरी भी नहीं है कि पूरा गिरोह संभाल सकें। छोटा शकील के लिए सबसे नकारात्मक बिंदु एक ही था कि वह परिवार का सदस्य नहीं है। दाऊद चाहता है कि लाखों करोड़ रुपए का डी-कंपनी का विश्वव्यापी साम्राज्य किसी गैर के हाथों में न जाए, यही कारण है कि उसने अपने गिरोह में किसी को भी इस कद तक नहीं पहुंचने दिया जो कि उसके बराबर हो जाए और उसकी कुर्सी पर बैठ सके। ऐसे में उसकी नजर परिवार के एक चेहरे पर टीकी बताई जाती है, जो बेदाग है और ठंडे दिमाग से कामकाज करने के लिए पहचाना जाता है।
दाऊद ने की मुस्तकिन की ताजपोशी
यह नाम मुस्तकिन है। वह दाऊद का छोटा भाई है। मुस्तकिन के नाम पर दुबई और कई देशों में कारोबार हैं। उसके खिलाफ भारत समेत किसी देश में एक भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं है। यही कारण है कि दाऊद ने अनीस, इकबाल और सबसे विश्वसनीय सहयोगी व गिरोह सेनापति छोटा शकील के मुकाबले मुस्तकिन को वारिस घोषित किया। इसकी पुष्टि मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के तत्कालीन मुखिया संयुक्त पुलिस आयुक्त राकेश मारिया ने की थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान से पक्की खबर आई कि मुस्तकिन को दाऊद ने गिरोह का सरदार बनाया था। गिरोह को शकील और फहीम मचमच सरीखे कई सिपहसालार मिल कर संभालते रहेंगे लेकिन निगरानी मुस्तकिन रखेगा। इकबाल भारत में कामकाज देखेगा, अनीस हमेशा की तरह नशे व अन्य कामकाज संभालेगा।
क्या टूटेगी डी-कंपनी?
दाऊद गिरोह की कमान संभालने के लिए क्या मुस्तकिन सही पसंद है? यह सवाल भी उन दिनों खड़ा हुआ था। गिरोह ही नहीं बल्कि खुफिया और पुलिस अधिकारी भी मान कर चल रहे हैं कि इससे गिरोह में फूट पड़ेगी और सन 1993 की तरह एक बार फिर गिरोह दो फाड़ होगा। एक हिस्सा अनीस के साथ जाए, एक हिस्सा मुस्तकिन के साथ रहे। हो सकता है कि इकबाल भी गिरोह की उन संपत्तियों पर कब्जा कर अलग हो जाए, जिनकी कीमत तकरीबन 4 हजार करोड़ रुपए है। वही इन्हें भारत में संभाल रहा है।
हुमायूं को कैंसर
दाऊद का सबसे छोटा भाई हुमायूं भी कैंसर का मरीज है और पारिवारिक कारोबार संभालता है। उसके बगावत करने या गिरोह की बागडोर हासिल करने के लिए कोई कोशिश करेगा, इसकी संभावना न के बराबर है।
बेटा मोईन है खूनखराबे से दूर
वाणी प्रकाशन से छप कर आई इस पुस्तक मुं’भाई में खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल ने लिखा है कि सबसे बड़ी बात यह कि दाऊद ने अपने बेटे मोईन को खूंरेजी की इस दुनिया से बाहर ही रखा है। मोईन कुरान हाफिज है। वह पूरी तरह कारोबार पर ध्यान देता है। दाऊद ने हमेशा ही अपने इकलौते बेटे को अपराधों से पूरी तरह दूर रखा है। उसे अच्छी तालीम दी है ताकी वह अपना कारोबार ठीक तरह से संभाल सके।
शकील की गिरोह पर पुख्ता पकड़
शकील ही पूरे गिरोह की कमान संभाल रहा है। उसके बाहर जाना गिरोह के किसी सिपहसालार या सदस्य के लिए संभव नहीं है। शकील को पाक खुफिया एजंसियों का भी पूरा सहयोग मिल रहा है। गिरोह के आपराधिक साम्राज्य पर शकील ने ऐसी पकड़ बना ली है कि उसके बिना अब वहां पत्ता भी नहीं हिल सकता है।
मुंबई अंडरवर्ल्ड पर हिंदी में देश की पहली पुस्तक मुं’भाई में खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल ने कई खुलासे किए हैं, उनमें से एक यह भी है कि छोटा शकील के जरिए ही नकली नोटों की तस्करी से आतंकवादी हरकतें करने के लिए आईएसआई अधिकारी काम कर रहे हैं। शकील के कुछ सहयोगी अभी भी दक्षिण मुंबई में अवैध इमारतें तामीर करने के कारोबार में बड़े पैमाने पर लगे हुए हैं। वे कई किस्म के सामान की तस्करी भी चीन से भारत के लिए, या फिर भारत से हांगकांग, सिंगापुर, थाईलैंड के लिए करते हैं। इससे उन्हें अच्छा मुनाफा भी हो रहा है।
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