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हमें डरने की जरूरत है क्या!

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदा।

आगमापायिनो अनित्यास्तांस्तितिक्षस्य भारत।।

अर्थ – सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत, उनको तू सहन कर।

क्या वर्तमान संदर्भ में इस श्लोक का कोई अर्थ नहीं है?

इस समय कोरोना वायरस का प्रकोप फैला हुआ है। भारतीयों में भय फैला हुआ है। वे इस विपत्ति को अनित्य नहीं मान रहे हैं। व्याकुल हो रहे हैं। उनसे कहा जा रहा है कि डरो और अपनी जान बचाओ। जान बचाने का उपाय सिर्फ यह है कि घरों में रहो। कर्म करना बंद कर दो।

सूचना है कि इक्कीस दिन के लॉकडाउन से काम नहीं चलेगा। यह सिलसिला लंबा चलेगा। दिसंबर तक जा सकता है। तब तक कर्म नहीं करने वाले मनुष्यों का क्या होगा? क्या कोरोना से भी भयानक अवसाद, चिड़चिड़ापन, अकर्मण्यता जैसी बीमारियां नहीं फैलेगी? लोगों को सहन करने की प्रेरणा क्यों नहीं दी जा रही है? स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने का काम क्यों नहीं हो रहा है?

श्रषिकेश राजोरिया

Facebook post on 2020 April 9 at 1:20 PM

लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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