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निठल्लेपन की पराकाष्ठा

इस समय पूरा देश निठल्लेपन की पराकाष्ठा के दौर से गुजर रहा है। यह दौर लंबा खिंचने के आसार हैं।

कोरोना वायरस की आड़ में सरकार की ताकत दिखाने और लोगों की जेब खाली करवाने का काम हो रहा है।

इस धर्मप्रधान देश में प्रत्येक नागरिक को कर्मशील होने की प्रेरणा मिलती है। लोग अपने कर्म को धर्म से जोड़ते हैं। कर्म से जीविकोपार्जन होता है।

भारत अकेला देश नहीं है, जहां कोरोना वायरस का प्रवेश हुआ है। और भी देश हैं। चीन, इटली, स्पेन आदि देशों में तो हजारों लोग मर चुके हैं और अमेरिका में भी इसका प्रकोप भारत से बहुत ज्यादा है। ब्रिटेन में तो प्रधानमंत्री तक इस वायरस से ग्रस्त हो गए। इसके बावजूद पूरे देश को इस कदर निठल्ला बना देने की खबरें कहीं से नहीं आ रही है।

यह कमाल का देश है। यहां लोगों को निठल्ला बनाने में पुलिस का इस्तेमाल हो रहा है। लोगों से अपील की गई है कि घर में ही रहो। घर से बाहर मत निकलो। यह संकट का समय है। क्या संकट इतना घनघोर है?

देश पर जब भी कोई संकट आता है, लोगों को सक्रिय होना पड़ता है। बीमारी से बचने के लिए भी सक्रियता जरूरी है। सक्रिय रहने के लिए बीमारी से बचने के उपाय किए जाते हैं।

यहां क्या किया जा रहा है?

कहा है कि कुछ मत करो।

किस धर्म में, किस संस्कृति में यह दिशनिर्देश है कि संकट से बचने के लिए कुछ नहीं करना चाहिए। क्या अब इस देश में धर्म की परिभाषा भी एक ही व्यक्ति के वचनों से तय होगी?

श्रषिकेश राजोरिया

Rishikesh Rajoria

A Post by Rishikesh Rajoria on April 9 at 11:53 AM at Facebook

लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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