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कोरोना क्या है? वायरस या भारत के खिलाफ एक साजिश?

कोरोना महामारी भयानक है, या इसे भयानक बना दिया गया है? क्या यह धरती पर मनुष्यों की जनसंख्या कम करने का प्लान तो नहीं है? जिस तरह सिर पर बाल बढ़ जाने पर उनकी छंटनी होती है, क्या उसी तरह किसी हज्जाम ने धरती पर मनुष्यों की छंटनी करने का काम शुरू कर दिया है? जो लोग धर्म को मानते हैं, उन्हें मालूम है कि प्रकृति का अपना अनुशासन है और मनुष्य उस अनुशासन को भंग करते-करते इस स्तर पर पहुंच गया है कि मनुष्य ही सर्वेसर्वा है। ऐसे कई खतरनाक लोग धरती की डिजाइन बदलने के इरादे के साथ इस समय मौजूद हैं और वे मनुष्यों को संकट में डालने वाली तरह-तरह की तरकीबें खोजते रहते हैं। यह हरामी जानलेवा कोरोनावायरस इसी तरह की एक तरकीब है।

मनुष्य अपने जन्म, मरण और परण तक किसी न किसी की कठपुतली के रूप में जीवन गुजार देता है। हर जगह मानव समाज की इकाई के रूप में परिवार मौजूद है। जीवन गुजारना हर परिवार का उद्देश्य है। इतना लंबा जीवन गुजारने के लिए एक ठिकाना सभी को चाहिए, जहां स्त्री-पुरुष अपनी शारीरिक स्वतंत्रता के साथ रह सकें और बच्चे पैदा कर सकें। उन्हें बड़े कर सकें। बच्चों को परिवार से, समाज से शिक्षा मिलती है, सरकार के स्कूल भी बच्चों को शिक्षा देते हैं। हर परिवार की अपनी दास्तां है। अपनी आस्था है। मानव जाति हमेशा से इसी तरह रहती आई है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मौत भी तय है। पहले चिकित्सक नहीं होते थे। एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं होती थी। ज्यादातर लोग वायरस और बैक्टीरिया के बारे में इस तरह नहीं जानते थे, जैसा इस समय बताया जा रहा है।

बैक्टीरिया या जीवाणु जीवन का मूल तत्व है। इसके बगैर जीवन की कल्पना असंभव है। इनमें परजीवी बैक्टीरिया नुकसान पहुंचाते हैं। उनकी वजह से हैजा, टीबी, न्यूमोनिया जैसी बीमारियां होती हैं। इन्हें खत्म करना ही डॉक्टरों के इलाज का आधार है। बैक्टीरिया की कोशिका होती है। वे एक कोशीय प्राणी होते हैं। वायरस या विषाणु की कोशिका नहीं होती। वह अन्य कोशिकाओं पर निर्भर होता है। वायरस न्यूक्लियर एसिड और प्रोटीन से बनते हैं। ये लंबे समय तक निष्क्रिय रह सकते हैं। सक्रिय होने पर नुकसान कर सकते हैं। एक कोशिका में वायरस पहुंचने के बाद उसके माध्यम से संक्रमित कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है। इसी तरह वायरस फैलता है। कोरोना वायरस भी इसी तरह फैल रहा है।

पिछले तीन-चार सौ सालों से मेडिकल साइंस के तहत बीमारियों के कारण-निवारण का काम वैज्ञानिक कर रहे हैं। इसके तहत सबसे पहले 1796 में डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने पता लगाया था कि चेचक की बीमारी वायरस से फैलती है। बाद में चेचक के टीके बने। 1897 में तंबाकू में मोजेक बीमारी की जांच करते हुए वायरस का पता चला। सभी वायरस घातक नहीं होते। जीवित कोशिकाओं पर ही इनका आश्रय होता है। इस तरह बैक्टीरिया, वायरस आदि मनुष्य के जीवन के सहचर हैं। ये मनुष्य को खत्म नहीं करते हैं, क्योंकि मनुष्य के जीवित रहने से ही इनका अस्तित्व है। यह मनुष्य की क्षमता होती है कि वह जीवन भर असंख्य बैक्टीरिया और वायरस को अपने शरीर में रहने देता है। प्रकृति के तहत यह प्रत्येक जीव का परस्पर अन्योन्याश्रित संबंध है।

मनुष्य ने अपने दिमाग से प्रकृति के महत्व को अपनी आधुनिक विचारधारा से बेदखल कर दिया है और इस समय विश्व में गैर प्राकृतिक वातावरण का जोर ज्यादा है। मशीनें बन गई हैं, काम करने के कई उपकरण बन गए हैं। मनुष्य अपने घर की चारदीवारी में अपने हिसाब का तापमान रख सकता है। धर्म-अधर्म का कोई भेद नहीं है। जो अंग्रेजी पढ़ा-लिखा नहीं है, वह असभ्य, अशिक्षित और भारत में जीवित रहने योग्य नहीं है। धर्म के नाम पर जो कुछ है, वह पाखंड है। आस्था का प्रदर्शन बहुत है, लेकिन भय इतना कि लोगों को एक वायरस से डराता हुआ सरकारी फरमान जारी होता है और धर्म स्थलों पर ताले लग जाते हैं। नियमित पूजा-पाठ रुक जाता है। लोगों तक संदेश पहुंचता है कि ईश्वर से ज्यादा शक्तिशाली देश का प्रधान है, जो लोगों को मरने से बचा रहा है। उसने यमराज से कह दिया है कि भारत की तरफ मत झांकना।

वायरस को दुनिया में फैलाने की रूपरेखा चीन में बनी। कई वायरसों का परीक्षण करते हुए एक खतरनाक और म्यूटेंट होने वाला वायरस तैयार हुआ। नवंबर 2019 में इसे बड़े पैमाने पर मार्केट में लाया गया। कई लोग चीन में इस वायरस से संक्रमित होने के बाद यूरोप अमेरिका पहुंचे। यह वायरस कोविड-19 ऐसा था कि इससे जुड़ा कोई पिछला रिकॉर्ड डॉक्टरों के पास नहीं था। इसके इलाज में डॉक्टरों की बुद्धि फेल थी। यूरोप, अमेरिका के लोग जो डॉक्टरों पर निर्भर होते हैं, अपने स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखते हैं, वहां इस वायरस का गलत इलाज होने से बड़ी संख्या में लोग मरने लगे और इस तरह इस वायरस को प्रतिष्ठा मिली। भारत में इसे बहुत तरीकों से फैलने का अवसर दिया गया। भारत के साधारण लोग किसी भी नजरिए से इतने गए-गुजरे नहीं हैं कि वे किसी बीमारी के भय से अपना नियमित जीवन स्थगित कर दें। पिछले 2 वर्षों से उन्हें बहुत ही गया-गुजरा साबित किया जा रहा है।

अगर किन्हीं दुष्ट ताकतों का धरती पर जनसंख्या को अपने हिसाब से संतुलित करने का प्रयास चल रहा है, तो यह वायरस फैलेगा। लोगों को डरकर रहना पड़ेगा। भारत सहित तमाम विकासशील देशों में इसी ढर्रे पर पिछले दो साल से वायरस से मुकाबला चल रहा है। लोगों को जबरन मास्क पहनने के लिए विवश किया गया। सेनीटाइजर का धंधा बढ़ाया गया। सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए समाज में लोगों के लिए दूरियां बनाई गईं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को महामारी घोषित किया, और भारत सहित तमाम सरकारों ने बगैर बुद्धि का इस्तेमाल किए बगैर उसे मान लिया। कोरोना से निबटने की गाइडलाइन घोषित हुई। भारत सहित तमाम देशों ने इसके तहत लॉकडाउन किया। मास्क पहनना अनिवार्य किया। डॉक्टर पीछे छूट गए। सरकार के प्रशासनिक तंत्र ने लोगों को कोरोना से बचाने की जिम्मेदारी संभाल ली।

कोविड-19 वायरस अपनी गति से बढ़ रहा है और म्यूटेंट होकर ज्यादा खतरनाक बन रहा है। इस तरह की जानकारी प्रचार माध्यम दे रहे हैं। पिछले साल पहली लहर थी, इस साल दूसरी लहर है और तीसरी लहर की भविष्यवाणी हो चुकी है। मतलब शेर की दाढ़ में खून लग चुका है। तमाम थानेदार, कलेक्टर, मुख्यमंत्री, मंत्री, संतरी वगैरह-वगैरह जी जान से लोगों को कोरोना से बचाने में लगे हुए हैं। जगह-जगह कर्फ्यू लगा दिया गया है। जैसा पिछले साल का अप्रैल-मई का समय था, उससे ज्यादा खराब इस वर्ष को बना दिया है। लगातार मास्क लगाने से सांस संबंधी क्या तकलीफें हो रही हैं? बाहर खेलने-कूदने का मौका नहीं मिलने से बच्चों को क्या नुकसान हो रहा है? छोटे-छोटे घरों में एकसाथ कई लोगों के बंद रहने से कैसी समस्याएं पैदा होती हैं? इन सब बातों का कोई विचार नहीं है।

इस समय बहुत से लोग मर रहे हैं। ज्यादातर कोविड से मर रहे हैं और अस्पतालों में मर रहे हैं। घरों में मरने वालों की संख्या बहुत कम है। कोविड संक्रमण और उससे मरने वालों की संख्या लगातार जारी हो रही है। सरकार और मीडिया के पास इस समय मरने वालों की संख्या गिनने के अलावा और कोई काम नहीं है। अगर कोरोना को कायम रखने का हिडन एजेंडा है, तो यह बहुत खतरनाक है। दुष्ट ताकतों का लक्ष्य जनसंख्या नियंत्रण है। उन्हें इस धरती पर अपने हिसाब की जनसंख्या चाहिए। वे चाहते हैं कि धरती पर एक-दो अरब से ज्यादा लोग नहीं होने चाहिए। वे धरती पर मौजूद जिन मनुष्यों को बोझ मानते हैं, उनमें भारत के गरीब, मजदूर, किसान प्रमुख हैं। इस समय भारत में ऐसी बुद्धिहीन लोकतांत्रिक सरकार बैठी हुई है, जिससे ऐसी दुष्ट ताकतों का काम आसान हो रहा है। वायरस है तो रहेगा, उसे कोई रोक नहीं सकता, उसके कारण कुछ लोग अगर मरते हैं तो मरेंगे, इसमें कोई कुछ नहीं कर सकता। फिर भी सरकार का तरीका देखिए।

कोरोना से निपटने की जिम्मेदारी कलेक्टरों पर है। लोगों को कोरोना से बचाने के लिए पुलिस तैनात है। जो मास्क नहीं लगाए, जो कर्फ्यू में कहीं सड़क पर दिखे, उसके साथ बदतमीजी करने का अधिकार पुलिस को सौंप दिया गया है। कोरोना के नाम पर अस्पतालों से लेकर सड़क तक लोगों की जेब खाली करवाने सिलसिला बन गया है। श्मशान, कब्रिस्तान, दवाओं की दुकान, प्राइवेट अस्पताल आदि इस समय अत्यंत व्यस्त हैं और यहां लोगों से जमकर वसूली जारी है। जरूरी दवाओं की कालाबाजारी हो रही है। वायरस का कुछ नहीं बिगड़ रहा है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र का बहुत कुछ बिगड़ रहा है, देश बर्बाद हो रहा है। क्या कोई इस तरफ विचार कर रहा है?

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