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कोरोना महामारी नहीं, कुकरी कांपीटीशन हो गया…

कोविड 19 के सामुदायिक संक्रमण को रोकने हेतु अकस्मात घोषित लाकडाउन के बाद पूरे देश में आपातकाल जैसी स्थितियां पैदा हो गई है।

करोड़ों लोगों अपनी आजीविका खो चुके है। कईयों के पास खाने को एक दाना भी नहीं है।

भयवश, गरीब और असंगठित वर्ग के लोग अपने छोटे छोटे बच्चों सहित भूखे प्यासे अपने अपने स्थाई आशियाने की ओर पैदल ही निकाल पड़े हैं, जिनका कोई भविष्य निश्चित नहीं है।

उनमें से कई संक्रमित भी हो सकते हैं। उनमें से कई प्राण त्याग चुके हैं, कई मरणासन्न हैं।

ट्रुक ड्राइवर ,सेवाप्रदाता, के साथ जगह-जगह घूम कर काम करने वाले लोग घरों से दूर फंसे हुए हैं। उन्हें भोजन तो दूर पानी भी मुश्किल से मिल पा रहा है 

दूसरी ओर समाज का एक शिक्षित वर्ग जो सर्वसुविधा सम्प्पन्न होने के साथ  तालाबंदी के आगामी कुछ दिनों के साथ-साथ भविष्य के लिए भी सुरक्षित है।

फेसबुक, WhatsApp आदि पर तो जैसे कुकरी कॉम्पीटीशन की बाढट आ गई है।

इस विकट परिस्थिति में इस वर्ग का  प्रतिदिन निरंतर नित नए-नए पकवान घरों में बना कर उसे सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पर प्रदर्शित करना विकृत मानसिकता का द्योतक है। आवश्यकता से अधिक भोजन करना उनके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।

ये माना कि मध्यम और उच्च वर्ग साधन संपन्न हैं, आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं, बाजार से सब कुछ खरीद सकता है, परन्तु इस देश के संसाधन सीमित है।

कई परिवारों ने तो तालाबंदी को मज़े का साधन मानते हुए इस ‘उत्सव’ के लिए अत्यधिक राशन व अन्य जीवन उपयोगी वस्तुओं का भंडारण भी किया है, जिसका सीधा असर बाज़ार में इन वस्तुओं की कालाबाजारी और मुनाफाखोरी में हो रहा है। ये वस्तुएं बेसहारा, दिहाड़ी मजदूरों और निम्न आय वर्ग की पहुंच से बाहर हो चली हैं।

इन संसाधनों पर जितना अधिकार मध्यम एवं उच्च वर्ग का है, उतना ही निर्धन देशवासियों का भी है।

एक तरफ बेरोजगारी और अन्य कारणों से आर्थिक परेशानी, ऊपर से आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमत और कमी से इस वर्ग के हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं।

शासन, स्वयंसेवी संगठनों एवं व्यक्तिगत तौर पर की जाने वाली सहायता भी इनकी पूर्ति एक निश्चित सीमा तक ही कर पा रहे हैं।

इन कारणों से सरकार को सुरक्षित अन्न भंडारों का उपयोग करना पड़ रहा है लेकिन श्रमिक-कर्मचारी वर्ग के अभाव में वह भी सीमित है। साथ ही सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ डाल रहा  है ।

खाद्य पदार्थ व आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सरकार के लिए बड़ी चुनौती है, जो कोरोना संकट के बाद भी आने वाले कुछ दिनों तक निरंतर रहने वाली है।

इस संकट काल में संसाधनों का उपयोग, जितना कम से कम और सोच-समझ कर हो, उतना ही स्वयं के साथ देश के लिए भी हितकर होगा। इस संकट के बाद आने वाली आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयों से देश तेजी से उबर कर पुनः आत्मनिर्भर बन सकेगा।

खेतों में फसलें काटने को  तैयार हैं या कट चुकी हैं लेकिन श्रमिकों के अभाव के साथ ही भंडारण व आवागमन  की समस्या भी उतनी ही विकराल बन चली है ।

समुदाय संक्रमण के दृष्टिगत कल-कारखानों में भी उत्पादन बंद या नगण्य है जो तालाबंदी के बाद की स्थितियों पर भी गहरा असर डालेगा।

संकट काल में यदि सभी सक्षम देशवासी अपनी आवश्यकताओं में थोड़ी भी कटौती करते हैं, तो आने वाले समय के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध होगा। ऐसा नहीं हुआ तो लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी मांग और आपूर्ति का बड़ा अंतर, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार के साथ ही अभावग्रस्त, बेरोजगार, बेसहारा निर्धन लोगों को लूटपाट सहित अन्य अपराधों की ओर धकेलेगा।

– मृत्युंजय सिंह हाड़ा

लेखक उज्जैन निवासी हैं।

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