Vivek Agrawal Books

Books: कोड्स / कोड्स डीकोडेड: दिल्ली की एक सत्य घटना पर आधारित: कोड्स सिरीज के दो भाग

कोड्स: दिल्ली की सत्य घटना पर आधारित उपन्यास

दिल्ली की एक सत्य घटना पर आधारित उपन्यास, जो स्पेशल सेल और आतंकवादियों के बीच चूहे-बिल्ली के खेल का रोमांचक नजारा पेश करता है। आतंकवादियों के दिल्ली दहलाने की योजना एक कोड शीट में छुपी थी, जिसे डिकोड किया स्पेशल के जांबाज डीसीपी प्रताप सिंह और उनकी टीम ने। दिमाग चकरा देने वाला उपन्यास जांच टीम को दिल्ली से बैंकॉक तक दौड़ाता है। हर पल नए रहस्योद्घाटन उपन्यास को नवीनता देते हैं।

दिल्ली से एक खबर आती है। एक मुस्लिम युवक को संसद के पास से पुलिस ने पकड़ा। इस युवक की जेब से कोडवर्ड की एक पर्ची के अलावा दो सेट आईडेंटीटी कार्ड्स मिले। पुलिस ने उसे फौरन आतंकवादी मान गिरफ्तार कर लिया। कुछ अतिउत्साही अज्ञानी पत्रकारों-संपादकों ने उसे दिल्ली पर हमला करने आए राक्षसी, दानवी, रक्तपिपासु आतंकी बता बजरिए खबर परोसना शुरू कर दिया।

उस युवक का बाद में क्या हुआ, यह अलग बात है। सच तो यह है कि पुलिस ने जैसे पूरा मामला संभाला, प्रेस-मीडिया ने जो सरकस किया, वह क्षुब्धकारी साबित हुआ।

कई सवाल उठते हैं। माजिद अगर पागल नहीं है, तो ऐसा क्यों कर रहा है? क्या माजिद प्रशिक्षित आतंकवादी है? क्या माजिद को बचाने आए उसकी मां और वकील का भी कोई ऐसा राज है, जिसका पर्दाफाश करने में स्पेशल सेल कामयाब होगा? क्या माजिद की मौत हो जाती है? यदि हां, तो उसे किसने और क्यो मारा? मंगत को चाकू लगा है लेकिन क्या वह बच पाया? माजिद को पकड़ने में स्पेशल सेल कामयाब हुआ या नहीं? माजिद और उसके आसपास का गहराता रहा रहस्य कभी खुल पाया या नहीं?

पुलिस ने कोई कसर न छोड़ी। सब कुछ किया, लेकिन काम आसान नहीं रहा। माजिद के चक्कर में स्पेशल सेल के अधिकारियों को दिल्ली, मध्यप्रदेश, जम्मू-कश्मीर, नेपाल और थाईलैंड तक की खाक छाननी पड़ी। एक अदना सा पागल इंसान पूरी दिल्ली पुलिस को नचाता रहा। स्पेशल सेल बेबस तो नहीं लेकिन कुछ परिणाम सामने न आने की बेबसी बड़ी कचोटती है।

स्पेशल सेल लगातार कोशिशें करती है लेकिन माजिद से हर वक्त पीछे ही रहती है। आखिरकार ऐसा क्या है, जिससे माजिद स्पेशल से एक कदम आगे ही बना रहता है? लश्करे-तैय्यबा से माजिद के क्या रिश्ते हैं? क्या वह इस पाक पोषित आतंकी गिरोह के साथ जुड़ा है? क्यों वह भारत विरोधी गतिविधियां करने लगा है?

दूसरी तरफ खब्ती और दीवाना सा पत्रकार विशद कलम की धार से स्पेशल सेल और आतंकियों, दोनों को छलनी किए रहता है। उसकी खोजी पत्रकारिता कभी स्पेशल सेल को फायदा पहुंचाती है, कभी नुकसान भी। उनकी जांच प्रभावित करती है, लेकिन सकारात्मक रूप से। विशद ऐसा क्यों करता है, यह भी अपन आप में बड़ा ही अजूबा विषय है।

‘कोड्स डीकोडेड’ के जरिए भारत में पसरे आतंकवाद के रहस्यों से परदा उठाने की भरपूर कोशिश लेखक ने की है।

कोड्स डीकोडेड: दिल्ली की सत्य घटना पर आधारित उपन्यास

उपन्यास कोड्स इस पुस्तक का पहला खंड है।

इस खंड में पाठकों को पता चलता है कि माजिद की मौत नहीं हुई तो क्या हुआ?

कैसे माजिद की मां शबनम को पता चला कि वह लाश उसके बेटे माजिद की नहीं है?

जिसकी लाश निकली, वह औरत कौन है?

क्या प्रताप और उसकी टीम मिल कर उस औरत के बारे में पुख्ता जानकारी निकालने में सफल रहे?

माजिद असल में है कौन?

वह आखिर किस इरादे से दिल्ली आया था?

आखिरकार क्यों प्रताप जैसा ईमानदार, समझदार, तेजतर्रार पुलिस अफसर भी माजिद के मायाजाल में जा फंसा?

क्या वाकई माजिद के संबंध लश्कर-ए-तैयबा जैसे खतरनाक आतंकी गिरोह से हैं?

माजिद पागल था या नहीं?

क्या प्रताप वापस स्पेशल सेल में लौट कर उसी दमखम के साथ यह छानबीन कर पाया?

जब आगाज ऐसा सिर घुमाने वाला था, तो क्या अंजाम भी वैसा ही  हुआ?

हिंदुस्तान में कत्लेआम मचा रहे जिहादियों के खिलाफ प्रताप की मुहिम क्या रंग लाई?

क्या वह आतंकवादियों का पूरी तरह से दिल्ली में सफाया करने में कामयाब रहा?

दोनों किताबों में इन सवालों के जवाब हासिल होते हैं।

BOOK LINK: Codes

BOOK LINK: Codes Decoded

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Web Design BangladeshBangladesh Online Market