Litreture

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मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया – मजरूह सुल्तानपुरी

बे तेशा-ए-नज़र न चलो राह-ए-रफ़्तगां हर नक्श़-ए-पा बुलंद है दीवार की तरह ‘तेशा’ यानी पत्थर काटने का हथियार। ‘राह-ए-रफ़्तगां’ यानी

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