Vivek Agrawal Books

Books: पुस्तक अंश – अगले जनम बेड़नी ना कीजो: अध्याय 5 : प्रोफेसर माया

दुनिया के पहले सेक्सोलॉजिस्ट या वैज्ञानिक हम निर्विवाद रूप से ऋषि वात्स्यायन को मानेंगे। वे कामशिक्षा की शिक्षक गणिकाओं को निरूपित करते हैं। मुंबई में भी कुछ गणिका शिक्षिकाएं हैं, जिनमें से एक माया से मुलाकात हुई।

प्रोफेसर

“पूछना तो पड़ेगा ही कि आपके अनुभव क्या हैं?”

“हमारे धंधे में बड़े गजब-गजब की बातों होती हैं… मेरे ऐसे भारी, गदराए और भरे-पूरे शरीर के चाहने वाले कम उम्र के लड़के होते हैं… ये लड़के मानते हैं कि अनुभवी लड़कियां जिस्मानी सुख अच्छा दे सकती हैं… नाबालिग या कच्ची उमर वाली लड़कियों की मांग जवानों और अधेड़ पुरुषों में अधिक होती है…” माया (नाम परिवर्तित) जब यह बताती है, तो महसूस होता है कि उसका अनुभव पूरा हो चुका है। वह एक विशेषज्ञ की मानिंद उनका बखान कर रही है।

“ऐसा क्यों?” बात आगे बढ़ानी हो, ऐसा ही बेकार सा सवाल पूछा जाता है, सो पूछ लिया।

“कच्ची – कुंवारी लड़कियों की मांग खास किस्म के मर्द करते हैं… लोग मानते हैं कि कच्ची लड़कियों के साथ सोने से अंदर वाली बहुत सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं… कुछ मर्दों का यह भी मानना है कि कच्ची उमर वाली कच्ची कुंवारी लड़कियों के साथ बैठने पर उनकी उम्र बढ़ती है…” माया खिलखिलाई।

“आपकी इस हंसी के पीछे कोई राज पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं…”

“है ना…” माया ने हंस कर सिर ऊपर से नीचे हिलाते हुए कहा, “बहुत आसान राज है… जैसे नरक का डर दिखा कर पंडित लोग खूब रुपया लूटते हैं, उसी तरह कच्ची कुआंरी लड़कियों के साथ बैठने वाली बात से धंधे में खूब नोट बरसते हैं… लोग जानते नहीं कि कच्ची लड़की बिस्तर पर वो मजा नहीं दे सकती, जो एक समझदार खेली-खाई लड़की देगी… पर उनका क्या, वो तो अपना दिमाग चलाते हैं… रुपया पानी की तरह बहाते हैं…”

सारा माजरा साफ हो गया। सारा खेल पैसों का है। यहां भी बाजार ही तो लगा है। जिस माल की जितनी कमी होगी, जिसकी आपूर्ती कम होगी, उतनी ही उसकी मांग होगी, उतनी ही वह ‘कमोडिटी’ मंहगी होगी। लिमिटेड एडीशन का यही तो खेल है।

“अच्छा माया, एक बात बताएं, आपकी नथ उतराई की रस्म हुई थी?”

“हुई थी… मेरी एमसी (मासिक धर्म) तो बहुत जल्दी हो गई थी…

“कब?”

“होगी उमर 14 साल की…”

“ये तो उम्र नहीं होती…”

“नहीं होती होगी, पर मेरी तो हुई ना…”

“हम बात कर रहे थे नथ उतराई की…”

“नथ उतराई के लिए मुंबई में आराम से तीन से दस लाख रुपए तक की बोली लग जाती हैं…”

“अपने जीवन में आपने सबसे बड़ी बोली कितने की सुनी या देखी है?”

“अब तक मैंने नथ उतराई के लिए सबसे बड़ी बोली 25 लाख की एक लड़की के लिए एक गुजराती व्यापारी को देते हुए देखा है…” नीली आंखों वाली इस छोटी सी लड़की को देख के लगता था कि उसे बहुत फुर्सत में ऊपर वाले ने बनाया होगा… नजाकत और नफासत से भरी इस लड़की की मां ने अपनी बेटी की नथ उतराई का सौदा किया था… इससे बड़ी रकम किसी की नथ उतराई के लिए कभी किसी को मिली होगी, तो बोल नहीं सकती…”

“ओह!!! अच्छा कभी ऐसा हुआ है कि आपके काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ा… या कई मर्दों के साथ बैठना पड़ा हो?”

“आजकल तो रेव पार्टी और ओर्गी पार्टियों में बारबालाओं की बहुत डिमांड है…” माया ने जिस आसानी से रेव और ओर्गी का इस्तेमाल किया, उसने मुझे अचंभित कर दिया। वह आगे कहती है, “रेव और ओर्गी में बारबालाओं को बुलाने का खास कारण है कि वे बिंदास होती हैं… उनको कपड़े उतार के नाचने में शरम नहीं आती… एक साथ दस-बीस लोग ‘काम’ में लगे हों, तो भी ‘साथ’ देने में शरम नहीं होती…”

“कैसी लड़कियों की मांग रहती है ओर्गी और रेव में?”

“पढ़ी-लिखी और अच्छी दिखने वाली फैशनेबल बारवालियों को पार्टियों के लिए खास करके बुलाते हैं… सेक्सी कपड़े पहन के नाचने और मस्ती करने के लिए भी दिन के पांच हजार तक पार्टी ऑर्गेनाइजर से मिल जाते हैं… किसी के साथ ‘बैठती’ हैं, तो रकम का आधा-आधा हिस्सा बंटता है…” माया आगे बताती है, “ओर्गी में बहुत अजीबो-गरीब अनुभव लड़कियों को होते हैं…”

“आप कभी गई हैं रेव या ओर्गी में?”

“कई बार… मुंबई के एक प्राईवेट बंगले की पूल ओर्गी मे गई थी… पूरा स्विमिंग पूल बिना कपड़ों के लड़कियों और मर्दों से भरा था… बारबालाओं को पार्टी में शामिल होने के लिए पहले ही मुंहमांगी रकम मिल चुकी थी… शर्त थी कि पूल में जितनी देर रहेगी, उतनी देर उनके साथ कितने भी मर्द, कितनी भी बार ‘काम बजा’ सकते हैं…”

माया को यह सब बताते हुए शर्म महसूस हो रही हो, यह तो नहीं लगा। उसके लिए तमाम बातें करना ऐसा लगा, मानो घर-दुआर की बातें कर रही है। वह मुझसे झिझक भी नहीं रही क्योंकि उसकी एक खास बारबाला सहेली, जो मेरी मुखबिर रही है, ने हमारा परिचय करवाया था। उसे बताया था कि छापे में उसकी कहानी लिखने के लिए बात करना चाहता हूं। मैं जब उससे मिला तो तो कहा कि नाम और पहचान गोपनीय रखी जाएगी, तो वह निश्चिंत हो गई।

अब माया की बातें खुलती जा रही हैं, “उस दिन 35 लड़कियां पूल में थीं… मर्द 50 के ऊपर होंगे… इसके बावजूद वहां न मारकाट मची, न हंगामा हुआ… पूरी रात शराब-शबाब का खेल चलता रहा… किसी को बाहर कानों-कान खबर नहीं लगी… जो एक बार अंदर आ गया, उसको बाहर जाना बैन था… बंगले के कमरों में सब सेटिंग थी… जिसको उधर जाके मजे करने के हों, जाने के लिए ओके था…”

यह तो माया से पूछना बेकार था कि बंगला कहां था और मालिक कौन था।

माया ने बताया कि इस पूल ओर्गी में शामिल होने के लिए उसे एक रात के एक लाख रुपए मिले थे। मजा भी बहुत आया। हर मर्द-औरत पूरे नंगे थे। सबके जिस्म एक-दूसरे से रगड़ खाते-टकराते लेकिन किसी को किसी से मुआफी मांगने की दरकार नहीं। बस, आंखों में शरारत भर कर मुस्कुरा दो, थोड़ा सा इठला कर, इतरा कर चल दो, सामने वाला खुश हो जाता है। शराब और बीयर तो इतनी बही कि क्या कहें। खाने के लिए ऐसे-ऐसे पकवान की छप्पन भोग भी ओछा लगे।

माया ने यह भी बताया कि उसके साथ वाली रोजी और ट्विंकल को ओर्गी पार्टी के लिए डेढ़-डेढ़ लाख रुपए मिले थे। दोनों उससे कम उम्र की हैं। वो दोनों अंग्रेजी में बात भी करती हैं। इस करके उनको पैसे भी अधिक मिलते हैं।

“लेकिन आप भी अच्छी लगती हैं…”

“क्या तुम भी मेरे को लाईन दे रहे हो क्या?”

“आपको ऐसा लगता है?”

“नहीं, मजाक की… देखो, अच्छा लगना ही सब कुछ नहीं है… मैं अच्छा नाचती हूं इसलिए मेरे ऊपर ज्यादा पैसे उड़ते हैं… वो दोनों बातें बनाने में अच्छी हैं इसलिए ग्राहक उनको ज्यादा पैसे देते हैं… वो फैशन अच्छा करती हैं… अंग्रेजी में बात करती हैं… ग्राहक के साथ क्लब में जाती हैं, तो पता नहीं चलता कि बारवाली हैं…”

“आपके जीवन में किस उम्र के लोग अधिक आए हैं?” यह ऐसा सवाल है, जो माया के जीवन का नया आयाम सामने ला सकता है।

माया ने बेझिझक कहा, “अब तक जितने लोगों के साथ सोई, उनमें कम उम्र लड़के अधिक थे। लड़कों को हमेशा बिस्तर पर लड़कियों को काबू करने के तरीके सीखने होते हैं। उनको लगता है कि कॉलेज में साथ पढ़ने वाली छोकरियों को उनके साथ बिस्तर पर खेल कर मजा आएगा। छोकरे नहीं जानते कि लड़कियों को लड़कों की बॉडी में नहीं, उनके अच्छे और बुरे होने से फरक पड़ता है। नई उमर के लड़कों को सेक्स सीखना होता है, जो मैं सिखाती हूं।”

“ये तरीके सिखाने वाली मैं तो मास्टरनी बन गई हूं।” माया ने हंसते हुए कहा, “मास्टरनी नहीं, मैं तो प्रोफेसर बन गई हूं।”

माया की खिलखिलाहट में कितने दर्द भरे बरछे उसके सीने में चुभ रहे हैं, यह सामने बैठने पर ही पता चलता है। वह ऊपर से जितनी बिंदास और बेलौस दिखती है, अंदर से है नहीं। उसकी आंखों से पीर का नीर बहता है, आवाज में छुपा आर्तनाद सुनाई देता है, हृदय से उठती हूक आप तक पहुंचती है, तो आपका भी उसके सामने बैठे रहना संभव नहीं रह जाता है।

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