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बारबालाओं के अंतस से डांस बार में झांकने की कोशिश है किताब बांबे बार

मुंबई का डांस बारों पर हंगामा सभी ने खूब मचाया। सरकार ने दादागिरी दिखा कर मुंबई के डांस बारों पर पाबंदी लगा ली। बार मालिकों ने हजारों करोड़ रुपयों के नुकसान और मुंबई की नाईट लाईफ खराब होने का डर दिखा कर खूब छाती पीटी। खबरनवीसों ने बारबालाओं के आंसू कलम में भर कर ढेरों पन्ने रंग दिए। इसके बावजूद डांस बारों के कोलाहल भरे माहौल में सैंकड़ों निगाहों के बीच भी तनहा सायों की तरह जिंदगी जी रहीं बारबालाओं की सुध किसी ने नहीं ली।

 

खोजी पत्रकार और लेखक विवेक अग्रवाल ने मुंबई के डांस बारों की कालिमा से कुछ ऐसी जिंदगियां खोज निकालीं, जिनका जिस्म और जीवन, दोनो ही छलनी था… जिनका तन और मन दोनों ही दमित था… जिनका शरीर और शै दोनों ही सताए हुए थे।

अपराध जगत के सबसे दमदार दास्तानगो विवेक अग्रवाल ने इस किताब बांबे बार – चिटके तो फटके’ में इन जख्मी रूहों के बहते मवाद साफ कर उन पर मरहम लगाने की कोशिश की लेकिन हुआ उलटा ही। उनके मन से रिसाव कुछ और अधिक ही बह निकला। विवेक कहते हैं, “जब भी किसी बारबाला से मिलता, मन पर बोझ सा लिए उठता। भले ही उनमें से कुछ ऐसी लगें कि पुरुषों को ठग कर अपना और बार मालिकों का घर भर रही हों, बावजूद इसके उनका जीवन बड़ा ही एकाकी और जिंदगी के लिए तरस गया सा होता है।”

 

विवेक आगे कहते हैं, “इन लड़कियों का जीवन कितना संघर्ष भरा और भयावह होता है, वह उनके जीवन में चंद मिनट झांक कर ही पता नहीं चलने वाला। उनके साथ कई-कई दिनों तक वक्त बिताने पर वह महसूस किया जा सकता है। इस किताब में मैंने उनके साथ बिताए वे पल और क्षण संजोने की कोशिश की है, जिसमें उनके हृदय की चित्कार सुनाई देगी। उनकी आंखों में उमड़ते सवालों के बादलों से बह निकले पानी के खारेपन ने मेरा मन रीता कर दिया। लिखता गया, हैरान होता गया।”

 

इंसानियत के गुनहगारों ने इन लड़कियों के साथ क्या-क्या किया, वह सब समटते हुए सच के सहाफी विवेक अग्रवाल कहते हैं, “इन लड़कियों के जीवन में झांकना बड़ा मुश्किल था। मुझे तो लगता था कि ये आदतन देहजीवाएं हो चली हैं। यह तो सच न था। मुझे समझ आया कि वे तो मजबूरन ऐसी हैं। घर भले ही भर गए, मन के जख्म कौन भरता? उनके जीवन में ऐसा तो कोई होता ही नहीं।”

 

बांबे बार – चिटके तो फटके’ पुस्तक में कुल 12 जीवंत कथाए हैं। उनमें से एक, न तो देहजीवा है, न ही बारबाला। वह एक कलाकार है लेकिन उसे धोखे से दुबई ले जाकर जिस तरह घिनौने दलदल में धकेलने की साजिश हुई, जिस तरह उसने विद्रोह किया, जिस तरह उनके खिलाफ रणभेरी बजाई, उसकी कहानी इस पुस्तक में शामिल करना हमारी भी मजबूरी हो गई। यह है शर्वरी सोनावणे।

 

इस पुस्तक के जरिए मुंबई के डांस बारों की कालिख और उसके इर्द-गिर्द चल रही हर हरकत रेखांकित करने का प्रयास किया है। बांबे बार – चिटके तो फटके’ में तबस्सुम की कहानी भी है। जी हां, वही तबस्सुम जो क्रिकेट खिलाड़ियों के सामने चारा बना कर पेश की गई। जिसे सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग के चलते पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वह अब सहाफियों से बच कर भागती है। इस लेखक की पहुंच से भी वह दूर ही रही। उसकी जिंदगी के हर राज फाश उन लोगों ने किए, जो उससे या तो जुड़े रहे हैं, या उसे निजी तौर पर किसी न किसी कारण से जानते रहे हैं।

 

राजकमल प्रकाशन के अध्यक्ष अशोक माहेश्वरी कहते हैं, “विवेक अग्रवाल की पत्रकारिता और सच्चाई के लिए आवाज उठाने की क्षमता से हम पहले से वाकिफ थे। अब उनकी कलम की ताकत से भी रूबरू हो चले हैं। जब इस विषय पर काम करने की बात चली तो यह तय था कि वे सत्य का उद्घाटन करने में पीछे नहीं रहेंगे लेकिन उन्होंने तो हर जिंदगी को एक कहानी में ही तब्दील कर दिया है।”

 

राजकमल प्रकाशन के निदेशक (संपादन) सत्यानंद निरूपम ने बताया, “यह पुस्तक बांबे बार – चिटके तो फटके’ जिंदगी की कठिन सच्चाईयों से सीधे सामना करवाती है। आपको इसके हर हिस्से में बेहद ईमानदार कोशिश नजर आएगी। पिछले दिनों छपे शब्दों में ईमानदारी का जो अभाव देखने में आ रहा था, छपे शब्दों की विश्वसनीयता रसातल में चली गई थी, उसे फिर स्थापित करने का यह महती प्रयास है।”

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