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बड़ा खेल हो गया, लोगों को मालूम ही नहीं

इस देश के लोगों को बिलकुल नहीं मालूम कि उनके साथ कितना बड़ा खेल हो गया है। सपना दिखाया गया था कि अच्छे दिन आएंगे, लेकिन अब लोग पुराने दिनों को याद करते हैं कि वो भी क्या दिन थे, जब लोकतंत्र की बगिया हरी-भरी थी। जैसे भी हो, देश आगे बढ़ रहा था। भारतीय लोग विदेश में कामयाबी के झंडे गाड़ रहे थे। पूरी दुनिया भारतीय प्रतिभाओं की कायल हो रही थी। गरीबों की संख्या कम हो रही थी। मध्यम वर्गीय लोगों की संख्या बढ़ रही थी। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी सरकार ने कारगर योजनाएं बनाई थीं, जिससे उन्हें न्यूनतम रोजगार मिल सके। बेतरतीब ही सही, लेकिन देश का विकास हो रहा था और लोग हंसते-खेलते हुए देश को आगे बढ़ा रहे थे।

नरेन्द्र मोदी ने नारा दिया, अच्छे दिन लाना है, विदेशों में जमा काला धन वापस लाना है, भ्रष्टाचार मिटाना है, वगैरह-वगैरह। इन नारों के साथ सरकार बनने के बाद क्या किया? नोटबंदी कर दी। राज्यों की होने वाली आमदनी केंद्र की तरफ ट्रांसफर करने के लिए जीएसटी लगा दिया और उसके बाद पाकिस्तान को धौंसपट्टी दिखाकर दुबारा लोकसभा चुनाव जीत लिया।

अब क्या हो रहा है? सरकार बनते ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता संशोधन विधेयक के बहाने भयंकर सामाजिक उथल-पुथल मचाने की जमीन तैयार की गई। दिल्ली में दंगे हुए। उसके बाद कोरोना महामारी घोषित हुई और प्रधानमंत्री मोदी ने भी अंतरराष्ट्रीय प्रशंसा के फेर में अचानक लॉकडाउन लगाकर देश की हालत अस्त-व्यस्त कर दी। यह सब देशवासियों को कोरोना से बचाने के लिए हुआ।

कोरोना के बहाने मोदी सरकार ने कई निशाने एकसाथ साध लिए और बहुमत के दम पर पूरे देश की तस्वीर अपने हिसाब से बदलने का प्लान बना लिया। कहीं स्मार्ट सिटी। कहीं किसानों को दो महीने में 2000 रुपए की खैरात, कहीं हिंदू-मुसलमान तो कहीं राहुल गांधी पप्पू। कहीं नया संसद भवन तो कहीं राम मंदिर। इस बीच लोग कई महीने कोरोना महामारी के अद्भुत प्रचार में उलझे हुए रहे और मोदी सरकार ने धीरे से 3 कृषि व्यापार कानून बना दिए, जिनके खिलाफ सात महीने से आंदोलन चल रहा है और उसे रोकने के लिए सरकार की तरफ से बहुत तमाशे हो गए हैं, लेकिन मोदी सरकार किसान नेताओं से कई् दौर की बातचीत के बाद भी कानून बदलने के लिए तैयार नहीं है।

मोदी सरकार देश को जिस दिशा में ले जा रही है, उसका नतीजा यह है कि संपन्न लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं और मध्यम वर्ग की सीमा में प्रवेश कर रहे करोड़ों लोग एक झटके में गरीबी के धरातल पर पहुंच गए हैं। स्कूल, कॉलेज, इंस्टीट्यूशन, सबकुछ बंद। महत्वपूर्ण परीक्षाएं तक रद्द और प्रचार यह कि देश के लोगों को कोरोना से बचाया जा रहा है।

जनता का जीवन-क्रम रोककर मोदी सरकार हर चुनाव में भाजपा को जिताने के उपक्रम करती रही। मोदी सरकार की किसी भी राजनीतिक तिकड़म में कोरोना आड़े नहीं आया। बहुत पैसा खर्च कर चुनाव लड़े गए और विरोधियों के खिलाफ हर तरह के पैंतरे अपनाए गए।

मोदी सरकार यह मानती है कि नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन के साथ ही उसके सख्त प्रशासन से देश बहुत आगे बढ़ रहा है और जनता का क्या है, वह तो हर हाल में रोती रहती है। क्या सरकार ने सबका ठेका लिया है?

लोगों को संतुष्ट रखने के लिए किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए, हर महीने 5 किलो अनाज और सपने दिखाने वाली घोषणाएं। दूसरी तरफ बड़े-बड़े घोटालेबाज विदेश में ऐश कर रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिए मोदी सरकार का सकारात्मक प्रचार तो निरंतर होता ही रहता है, मोदी स्वयं भी किसी अन्य को कुछ बोलने का मौका नहीं देते। देश के बारे जो भी बोलना है, वह स्वयं बोलते हैं और करोड़ों लोग उनके प्रवचन आस्था के साथ सुनते हैं। ताली-थाली बजाओ, बज गई। दीए जलाओ, जला दिए। जो मोदी कर रहे हैं, सही कर रहे हैं, बिलकुल सही कर रहे हैं। जो विरोध करता है, वह राष्ट्रद्रोही, वामपंथी, कांग्रेसी, पाकिस्तान परस्त आदि इत्यादि।

यह प्रामाणिक तथ्य है कि मोदी सरकार बनने के बाद विरोधियों को प्रताडि़त करने का सिलसिला बढ़ा है। जो सभ्य और संपन्न हैं, उनके खिलाफ सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स जैसे हथियार हैं और जो सामान्य लोग विरोध कर रहे हैं, उनको चमकाने के लिए पुलिस है। यूएपीए कानून है। राजद्रोह की धाराएं है। मोदी सरकार के दौरान किसी भी साधारण व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर महीनों जेल में रखना सामान्य बात है। ऐसे आरोपियों को अदालतें कुछ महीनों या वर्षों के बाद बेगुनाह बाइज्जत बरी करती हैं, लेकिन जो तकलीफ हुई, उसका जिम्मेदार कौन? ऐसे कितने लोग जबरन जेलों में जीवन बिताने के लिए विवश हैं, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। यदा-कदा अदालतों के फैसले की खबरें मीडिया में आती रहती हैं कि आरोपी बेगुनाह बरी हुए। क्या इसका मानवाधिकार से कोई संबंध नहीं है?

क्या प्रधानमंत्री बनने का यह मतलब होता है कि जनता के भले-बुरे की चिंता किए बगैर अपनी मर्जी से कुछ भी किया जाए? मोदी से पहले इस तरह की सोच किसी भी प्रधानमंत्री की नहीं रही। सभी ने जनमत का सम्मान किया। आम जनता के जीवन को तहस-नहस कर देने वाली नीतियां बनाने के बारे में किसी ने सोचा तक नहीं। सरकार की बड़ी-बड़ी कमाऊ कंपनियां, रेलवे, यूनिवर्सिटी, स्कूल, कॉलेज, तकनीकी संस्थान, चिकित्सा संस्थान, देश का पूरा प्रशासनिक सेट-अप, सबकुछ मोदी की मर्जी की भेंट चढ़ रहा है। मोदी पिछले 7 वर्षों में सैकड़ों घोषणाएं कर चुके हैं। उनकी कुछ घोषणाएं महामारी से ज्यादा घातक साबित हुई हैं, अभी यह लोगों के अनुभव में नहीं आ रहा है।

मोदी सरकार को मनमानी करने के लिए किसी तरह का आपातकाल लगाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि लोग इतने डरे-सहमे रहते हैं, कि वे कुछ भी करने की स्थिति में नहीं हैं। चाहे वे कांग्रेसी हों, समाजवादी हों, बहुजन समाज पार्टी के हों या और किसी पार्टी के हों। जहां जो ज्यादा खर्चा करता दिखेगा, वह आसानी से पकड़ लिया जाएगा। इस समय चुनावों में अपनी मर्जी से खर्च करने का अधिकार सिर्फ भाजपा को है। भाजपा को जिताने के लिए भारत सरकार की पूरी ताकत लग जाती है, चाहे वह हैदराबाद नगर निगम चुनाव हो या पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव।

मोदी सरकार और भाजपा संगठन का सर्वेसर्वा बन जाने का भाव देश के बने-बनाए लोकतांत्रिक ढांचे की बखिया उधेड़ रहा है। मोदी को लगता होगा कि वह एक कुशल शासक हैं, लेकिन पूरी दुनिया देख रही है कि वह देश का विकास करने के नाम पर आम जनता के विकास को तिलांजलि दे रहे हैं। उनके कार्यकाल में बेरोजगार युवाओं की जो फौज तैयार हो गई है, उनकी ऊर्जा कहां खर्च होगी? स्कूल, कॉलेज, शिक्षण, प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं होने से वे क्या करेंगे? उनके परिवार उन्हें क्या संस्कार दे रहे हैं? यह देश किस रास्ते पर बढ़ चला है? 

नफरत और हेकड़ी का एक ऐसा वातावरण हम देख रहे हैं, जिसमें सहिष्णुता की कल्पना नहीं की जा सकती। राजनीति एक ऐसा मैदान बन चुका है, जहां लोग तलवारें लिए कत्ले-आम मचाने के लिए तैयार हैं। हमें चुनाव जीतना है। हम ही जीतेंगे। अगर नहीं जीतेंगे तो जो जीतने लायक दिखेगा, उस पर डोरे डाल लेंगे। साम, दाम, दंड, भेद से सब काम होते हैं।

बड़े-बड़े जजों का हाल लोगों ने देख लिया है। उत्तर प्रदेश के जिला प्रमुख चुनाव में भी यही हो रहा है। अगले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव है। क्या कोई बता सकता है कि चुनाव जीतने के लिए भाजपा का प्रति सीट कितना बजट है? यह खर्च उससे ज्यादा होगा, जो पश्चिम बंगाल में हुआ।

क्या नोटबंदी के बाद देश की पूरी आर्थिक शक्ति भाजपा के हाथों में नहीं सिमट गई है? क्या मोदी सरकार किसी को भी पर्याप्त रूप से कमाने-खाने का अवसर देने के पक्ष में नहीं है? भ्रष्टाचार हटाने के नाम पर शासन में आए मोदी की सरकार का कार्यकाल क्या भ्रष्टाचार से अछूता है? क्या उनके शासन में सच्चाई और ईमानदारी के डंके बज रहे हैं?

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