CYBER SLAVES 003: कैसे चलता है कंबोडियाई साईबर गुलाम केंद्रों में ठगी रैकेट?
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 09 अप्रैल 2024
कंबोडिया के साईबर गुलाम केंद्रों में ठगी रैकेट कल तक तो बेहद सावदानी और गोपनीयता के साथ चल रहे थे लेकिन भारतीय और कंबोडियाई एजंसियों के छापों के बावजूद पूरी बेशर्मी के साथ अधिक ताकत से ये काम कर रहे हैं। उन पर रोकथाम नहीं लग रही है।
हर दिन दर्जनों युवकों को बहला फुसला कर कंबोडिया के साईबर स्लेव केंद्रों में भेजा रहा है। इन साईबर ठगी केंद्रों से बच कर आए कुछ लोगों ने आपबीती साझा की है, जो रोंगटे खड़े कर देती है।
ऐसे हैं बेस कैंप
दुबई, हांगकांग, चीन, कंबोडिया आदि देशों में विदेशी साइबर जालसाज भारतीय लोगों को निशाना बना रहे हैं।
पुलिस से बचने के लिए इन चीनी गिरोहों ने कंबोडिया में बेस केंप बनाए हैं। इन कंबोडियाई बेस कैंप में भारतीय आईटी पेशेवरों को साईबर गुलाम बना कर ऱखा जाता है। उनके द्वारा किए जा रहे तमाम कामों और शिकारों का पूरा डाटा कंबोडियाई सर्वर में ही रखा जाता है।
कंबोडिया के इन बेस कैंप से वर्चुअल नंबर का इस्तेमाल करके शिकारों को फोन किया जाता है।
जब इन गिरोहों का नेटवर्क और आमदनी बढ़ जाती है, तो एनसीआर या भारतीय के कुछ शहरों में फर्जी कंपनियों के नाम से अपनी ब्रांच या कॉल सेंटर खोले जाते हैं। यहां भर्ती हुए युवा आईटी पेशेवरों को बेहतर वेतन का लालच देकर कंबोडिया के बैस कैंप में भी भेजा जाता है।
कैसे काम करता है रैकेट?
कंबोडिया से बचाए आईटी पेशेवर स्टीफन ने मीडिया को बताया कि वे आईटीआई से स्नातक हैं। कोरोना महामारी के दौरान कुछ कंप्यूटर कोर्स किए। इसके आधार पर उन्हें नौकरी का एक एजंट ने लालच दिया।
रैकेट के बारे में स्टीफन ने बताया कि एक एजेंट ने मंगलुरु में मुझे कंबोडिया में डाटा एंट्री की नौकरी की पेशकश की। वहां आंध्रप्रदेश के बाबू राव समेत हम तीन लोग थे।
स्टीवन बताते हैं कि पहली बार मुझे तब संदेह हुआ, जब इमीग्रेशन के दौरान एजेंट ने कहा कि हम पर्यटक वीजा पर जा रहे हैं।
स्टीफ़न के मुताबिक तीनों को कंबोडिया के एक कार्यालय में ले गए, जहां इंटरव्यू हुआ। इंटरव्यू के दौरान हमें उन लोगों ने बताया कि दो ही बंदे पास हुए हैं।
स्टफीन के मताबिक उनका बॉस चीन मूल का नागरिक था जबकि एक मलेशियाई ने उसके लिए अनुवादक का काम किया था।
स्टीफ़न का कहना है, “उन्होंने हमारी टाइपिंग स्पीड का भी टेस्ट लिया। हमें बाद में पता चला कि हमारा काम फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने शिकार के प्रोफाइल ढूंढना था। ऐसे लोगों की पहचान करना होती थी, जिन्हें आसानी से ठगा जा सके।”
सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल
कंबोडिया में चीनी गिरोहों के शिकार बने आईटी पेशेवरों को सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल और फर्जी तस्वीरों के साथ बतौर महिला खुद को पेश करने के लिए मजबूर किया जाता था।
स्टीफन कहते हैं कि , “हमें विभिन्न प्लेटफार्मों से ली महिलाओं की तस्वीरों के साथ नकली सोशल मीडिया प्रोफाइल बनाने होते थे। हमें तस्वीरें चुनते समय सावधानी बरतने के लिए चीनी गिरोह के ट्रेनर ने कहा था।
इन आईटी पेशेवरों को चीनी गिरोहों द्वारा हर दिन का टार्गेट दिया जाता था। अमूमन यह टार्गेट पांच लाख रुपए प्रतिदिन होता है।
स्टीफन ने कहा कि “साइबर गुलाम” अपने दैनिक टार्गेट पूरा करने में विफल रहे, तो उन्हें उस दिन खाना नहीं मिलता था। इतना ही नहीं वे लोग टार्गेट पूरा न करने वाले को सबके सामने पीटते भी थे ताकि सब लोग इससे सबक लेकर अपना टार्गेट पूरा करें।
डेटिंग ऐप्स से फ्रॉड
डेटिंग ऐप्स पर महिलाओं के नाम और तस्वीरों के साथ स्कैमर्स लोगों को संपर्क करते हैं। वे संभावित शिकार से पहले महिला बन कर चैट करते हैं। कुछ समय बाद, ये आईटी पेशेवर शिकार को क्रिप्टोकरंसी ट्रेडिंग और इनवेस्टमेंट के लिए पटा लेते हैं। इसी तरह से दर्जनों भारतीयों को भी ठगा जा चुका है।
राऊरकेला पुलिस के मुताबिक एजंटों ने लोगों को अक्टूबर 2023 में निवेश घोटालों पर केंद्रित एक कंपनी में ग्राहक बनाया। इस कंपनी ने शिकारों को नकली शेयरों में निवेश करने का लालच दिया। उन्होंने एक नकली ऑनलाइन ट्रेडिंग ऐप भी बना रखा था।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक धोखाधड़ी करने वाली कंपनियों के स्थान, संचालकों, काम करने के तरीके और प्रबंधकों समेत काफी जानकारी जमा की है। उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है।
पुलिस ने भारतीय मूल के तीन उच्चस्तरीय अपराधियों और नेपाली मूल के एक उच्चस्तरीय अपराधी की पहचान भी कर ली। पुलिस अधिकारियों का दावा है कि “हम इंटरपोल के जरिए इस घोटाले के मुख्य खिलाड़ियों को गिरफ्तार करने की कोशिश में लगे हैं।”
विदेशों में अधिक ठगी
लोन एप, गेमिंग एप, मार्केटिंग, जॉब पोर्टल, फर्जी टेलीफोन एक्सचेंज, फर्जी कॉल सेंटर, शॉपिंग साइट, नौकरी के कॉल सेंटर, लकी ड्रा में कार, गिफ्ट ठगीबीमा फ्रॉड, शेयर मार्केट निवेश जालसाजी, क्रिप्टो करंसी निवेश ठगी, कंप्यूटर के पॉपअप वायरस या मॉलवेयर समेत कोई भी मरम्मत के नाम पर ठगी की जा रही हैं।
लोन ऐप का मायाजाल
लोन ऐप ने तो भारत में तबाही मचा दी है। बेहद आसानी से मिलने वाले कर्ज के चक्कर में लोग फंसते हैं। वे जैसे ही अपने मोबाईल फोन पर ये फर्जी लोन ऐप इंस्टॉल करते हैं, उनका पूरा डाटा इन लोन ऐप देने वाली कंपनियों के सर्वर में स्टोर हो जाता है। उनके तमाम सोशल मीडिया के पासवर्ड समेत तमाम जानकारी गिरोहों के पास जा पहुंचती है। एक तरह से शिकार को मोबाईल उनके नियंत्रण में चला जाता है।
जब शिकार द्वारा लोन ऐप लिया कर्ज पूरा चुका दिया जाता है, तब भी और ब्याज वसूला जाता है। कई बार तो कर्ज की रकम से दस या बीस गुना अधिक ब्याज की वसूली की जाती है।
इनकी शिकायत करने पर कुछ होता भी नहीं है। ये लोन ऐप इस तरह सर्वर की मास्किंग करते हैं कि उनका सही ठिकाना पता नहीं किया जा सकता है।
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