Books: रक्तगंध: अंडरवर्ल्ड के रक्तरंजित शब्दचित्र
हर दिन समाज के बीच बिखरी किरदारों को समेटे सैंकड़ों कहानियां सामने आती हैं लेकिन ऐसा क्या है कि कहानी संग्रह रक्तगंध इस भीड़ में अलग महसूस होता है? वजह है इसका कथानक, परिवेश, किरदार और भाषा। ये कहानियां समाज के उस हिस्से की हैं, जो लुप्त है। उस तक सबकी पहुंच नहीं है। यहां तक जिसकी पहुंच है, वही इन्हें बता भी सकता है।
यही प्रकटन पत्रकार लेखक विवेक अग्रवाल की कहानियों में बेद सच्चाई और ईमानदारी से हुआ है। बिना मिर्च-मसाला लगाए और भाषा को बीहड़ या दुरूह बनाए लेखक हर किरदार को आपके सामने पेश करता जाता है।
विवेक अग्रवाल की कहानियों में अपराध जगत का वो चेहरा दिखता है, जो खून से लिथड़े नकाब के पीछे कहीं छुपा रह गया था। हम जिसे देख ही नहीं पाते हैं। परिवार, समाज, देश, रिश्तों, धर्म वगैरह से दूर दिखती काली दुनिया में क्या-क्या होता है, सबका उदघाटन करते हुए विवेक अग्रवाल की कहानियां आगे बढ़ती हैं। जब उनके किरदारों से आप रूबरू होते हैं, तो उनके अंदर समाए भय, क्रोध, क्षोभ, दया, प्रेम, मोह जैसे भावों के साथ आप भी बहने लगते हैं।
विवेक अग्रवाल की किताब रक्तगंध के किरदार निश्चित तौर पर उनकी अपराध पत्रकारिता के दौर में रूबरू होते रहे होंगे। ऐसा नही होता, तो उनके विचार, व्यवहार, परिवार, परिवेश, मनोभावों तक उनकी पहुंच ना हुई होती। इन किरदारों के बारे में, खून की बू की बात कहने में, उनके आसपास का माहौल समझने में कोई आज तक सफल नहीं हुआ है।
विवेक अग्रवाल कहते हैं कि ये कहानियां उनके उस अनुभव पर आधारित हैं, जो तीन दशक लंबी खोजी अपराध पत्रकारिता में दौर में सामने आईं। ये तमाम किरदार उनके लिए अजाने नहीं लेकिन पाठकों के लिए जरूर थे। थे का मतलब क्या है? विवेक अग्रवाल बताते हैं कि कल तक अंधेरे में दफन ये किरदार और उनकी कथाएं अब रौशनी में आ चुके हैं। अब उनका रहस्य का पर्दा तार-तार हो चुका है। अब वे अज्ञात कहां रह गए हैं?
विवेक अग्रवाल की कहानियां राजस्थान, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, बिहार जैसे राज्यों में सफर करती हैं। वहां की भाषा, संस्कृति, पहनावे, खानपान के दर्शन कराती हैं। वे आखिर मुंबई अंडरवर्ल्ड तक ही सीमित क्यों नहीं रह जाती हैं? इसका कारण शायद ये भी हो कि अंडरवर्ल्ड भी किसी एक राज्य के बंदों ने नहीं बनाया है। पूरे देश से आए लोगों का हुजूम मुंबई को महानगर में तब्दील करता है, उनके बीच का एक हिस्सा अंडरवर्ल्ड का निर्माण करता है। तो तय है कि प्रवासी मजदूरों की तरह ये रक्तजीवी भी अपने देस लौटते हैं, तो उनके साथ-साथ लेखक भी हो लेता है।
भाषा और क्राफ्ट के स्तर पर विवेक ने वह काम किया है, जिसकी उम्मीद इस तरह की कहानियों के साथ कभी की नहीं जा सकती है। वे हर कहानी में, उस कारोबार या किरदार का पूरा संसार भी उकेरते चलते हैं। पत्रकार प्रलय भले ही एक खबर के लिए परेशान होता, संपादकों की छिछोरी राजनीति का शिकार दिखता है, असल में तो वह मुंबई में मिलों की जमीनों पर कब्जे के लिए मचे घमासान का पर्दाफ़ाश करते जाता है। जिस विषय को छूने का साहस विवेक ने किया है, वो बिरला ही कर सकेगा। ये गहरे नीले समंदर में मिलने वाले सफेद मोतियों की भीड़ में भी काले मोती चुन लाने का हुनर है। सबसे गहरा गोता अंधकार तक लगाना, वो सीप चुनना, जो कोई ना देख सके, उससे अनमोल काला मोती निकाल कर पेश करना ही विवेक की असली बाजीगरी है।
उनकी कहानियों में गजब की धार और बुनावट है। वे पाठक को बांध लेती हैं। इनका सम्मोहन ऐसा है कि एक कहानी पढ़ने के बाद प्यास बुझती नहीं, बढ़ जाती है।
‘कशाकश‘ कथा की बुनावट समांतर सिनेमा सरीखी है। एक पात्र के साथ कहानी खुलती है, अपने साथ पूरा संसार रचती जाती है। बदले की आग में जलते एक छोटे भाई के एक सुपारी हत्यारे में बदलने की दास्तान जीवंत होती है। इदरीस के पीछे पड़े शैतान इबलीस के जरिए विध्वंसक प्रवृत्ति का पूरा मनोविज्ञान उधेड़ कर धर दिया है। दूसरी तरफ पीर बाबा के जरिए उसके धर्मभीरु मन का प्रकटन भी होता जाता है। इस्लाम की उन बारीकियों को लेखक ने बखूबी उकेरा है, जो अमूमन हिंदी कथाओं में सामने आती नहीं हैं। इंसान के मन में अच्छाई और बुराई को दर्शाने के लिए लेखक ने नायाब तरीका अख्तियार किया है। मुंबई अंडरवर्ल्ड में पिस्तौल को ‘घोड़ा’ कहा जाता है, जिसकी तुलना चेतक से करके लेखक ने कमाल ही कर दिया है।
‘बुल्सआई‘ कहानी का धनसिंह गजब का पात्र है। गांव में बोरवेल लगा कर बहुतों में लिए ईर्ष्या का पात्र बन गया। उसकी कमाई से भी जलाने वालों की कमी नहीं। वो लंगोट का भी पक्का है, इरादों का भी धनी है। कहानी में ध्वनियों का खेल है, रिश्तों का मेल है। एक पिता, पति, बेटे के रूप में धनसिंह का पात्र ना जाने कहां तक जाता दिखता है। राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित इस कहानी के पात्र धनसिंह का डैनी में तब्दील होना, मुंबई के सरमायादारों के संसार के अंदर तक झांकने का सच्चा प्रयास है। कहानी में यह किरदार अपनी मजबूरी का फायदा किसी को नहीं उठाने देता है। वो गुस्सैल है लेकिन असावधान या बेवकूफ नहीं।
‘नन्नी मां‘ में प्रकृति, परिवार और पशुओं से जीवंत रिशते की पड़ताल है। एक सुपारी हत्यारा अपने परिवेश में आकर चैन से दिन गुजारता है। वो अपनी नदी, चिड़िया, कौव्वे, कुत्ते, बच्चे, घर के साथ रिश्ता जीता है। बस तभी तक, जब तक कि उसके घर भी दुश्मन का खूनी फेरा नहीं पड़ जाता है।
‘पानी बादशाह‘ कहानी में कच्ची उम्र में मम्मू का घर छोड़ कर निकलना, अपराध जगत में दुर्दांत महमूद भाई बन कर गिरोह सरगना एमडी बनने तक का रोमांचक सफर, जिस बारीकी से सामने आता है, अनूठा है। मुबंई के खूंखार डॉन से सीधे टकराने की हिम्मत किसी में नहीं होती है लेकिन महमूद ऐसा कर पाता है क्योंकि वो खुदमुख्तार है। उसकी दुनिया की सैर एक कश्ती गरीबनवाज के जरिए होती है। तेल की तस्करी का काला खेल समंदर के सीने पर कैसे होता है, बारीक से बारीक जानकारी इस कहानी के जरिए सामने आती है।
‘नरक का राजा‘ में अहमदाबाद के एक डॉन के जेल जीवन के जरिए देश की जेलों का काला सच परत दर परत खुलता जाता है। कैसे जेलों के भीतर एक और काली दुनिया बसती है, जिसे धरती का नरक भी कहा जाता है। इसका राजा होना भी किसी के लिए फख्र की बात हो सकती है, ये अनहोनी सी बात कहानी बयां कर जाती है।
‘काला खून‘ में गर्म गोश्त के सौदागरों से लड़ते एक पुलिस अफसर की कहानी के पीछे छुपा सच पढ़ते हुए, उस दर्द से गुजरना हो जाता है, जो एक लड़की कोठे पर हर दिन – हर पल भोगती है। एक लड़की पर क्या बीतती है, जब वह हर दिन दर्जन भर मर्दों के लिए अपना जिस्म बिछाती है।
‘लाल नदी‘ कहानी में अपराध संवाददाता प्रलय का जीवन और कामकाज अंडरवर्ल्ड के बीच गोते लगाता है। लाल नदी का भवंर उसे जकड़ कर डुबोने की कोशिश करता रह जाता है। प्रलय बार-बार उसके पंजों से बच कर निकल आता है। लाल नदी और भंवर अपराधियों का नहीं बल्कि पत्रकारिता जगत का गैंगवार बन कर सामने आता है। तो क्या सचमुच एक साहसी अपराध संवाददाता को वो सब झेलना पड़ता है, जो विवेक अग्रवाल का ये जांबाज़ किरदार झेलता है? व्यंजनाएं, प्रतीक और बिंब इस कहानी में पूरे शबाब पर हैं। ये कहानी संगठित अपराध जगत की रंगों में दौड़ती और संपादकों के दिमागों में भरी राजनीति व भ्रष्टाचार की कलई उतारते जाती है।
‘पानी बादशाह‘ कहानी में छोटा सा एक स्वाभिमानी बच्चा अपने बाप की मौत के बाद भाईयों के घर से झगड़ा करके छोटी सी बहन के साथ घर छोड़ कर निकल जाता है। एक दूकान में काम करते हुए इलाके में पेट्रोलियम आईल्स याने तेल के काले कारोबार के खिलाड़ियों के बीच जवान होता है। वह इस काले खेल में ऐसा पारंगत होता है कि देश का सबसे बड़ा तेल तस्कर बन जाता है। हजारों करोड़ का काला कारोबार खड़ा करने वाला महमूद भाई उर्फ एमडी किसी की धमकी न तो सुनता है, न किसी के मातबत काम करता है। वह देश के सबसे बड़े डॉन के सेनापति छोटा बाबू की उनके मातहत काम करने की पेशकश से न केवल साफ इंकार कर देता है वरन धमकी मिलने पर उसे सीधे चुनौती देता है। जब छोटा बाबू नहीं मानता है तो उसकी कार को बम लगा कर उड़ा देता है।
बिहार में छोटी उम्र के लड़के खतरनाक सुपारी हत्यारे क्यों बन जाते है? इस सवाल का जवाब कहानी ‘सेंचुरी‘ का खलचरित्र बचुनिया सामने आकर देता है। कमसिन उम्र में दरोगा को सबक सिखाने के लिए कट्टा लेकर निकल पड़े बचुनिया की दीदादिलेरी को भुनाने में बाहुबली नेता लपक लेते हैं। बिहार से बंबई तक बचुनिया ‘रक्त रेखा’ बनाता है, जिसे मिटाना किसी के वश में नहीं। ‘सेंचुरी’ का बचुनिया तो बिहार के सैंकड़ों नॉजवानों का प्रतिनिधि है, जिनके लिए जरायम शर्मिंदगी का बायस नहीं, अधिकार है, सम्मान है, काम है, समाज का अंग है। बिहार से बंबई तक एक सुपारी हत्यारे का सफर नया लगता है। भला ऐसा भी होता है कि एक डॉन अपना गिरोह का हत्यारा किराए पर किसी और को दे? जवाब इस कहानी में है।
विवेक अग्रवाल की इस ईमानदार और सच्ची पहल ने भारतीय हिंदी साहित्य संसार में नया अध्याय लिखना आरंभ किया है। वे सआदत हसन मंटो की तरह क्रूर समाज की क्रूर सच्चाईयां उतनी ही क्रूरता से बयान तो करते हैं, लेकिन भटकते नहीं हैं। वे आपकी आत्मा को झकझोरते तो हैं, साथ ही चेतन करते जाते हैं। इंसान के हिंस्र पशु बन जाने के सफर में शब्दों से सब कुछ दिखाते जाने की कला पर अद्भुत महारत लेखक ने हासिल कर ली है।
कहानियां (कुल 9) | |
काला खून – नेपाली लड़की चकला तलाश कहानी | कशाकश – इबलिस और पीर बाबा |
नन्नी मां – पहाड़ी शूटर की कहानी | नरक का राजा – जेल में महबूब सीनियर की कहानी |
पानी बादशाह – ममद्या की कहानी | बुल्सआई – राजस्थानी शूटर की कहानी |
रक्त गंध – फिरोज कोंकणी की कहानी | लाल नदी – क्राईम रिपोर्टर की कहानी |
सेंचूरी – बचुनिया की कहानी |
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