Books: दत्तात्रय लॉज: मुंबई के फिल्मी स्ट्रगलरों की अंतस कथा
इस किताब के तमाम किस्से अलग-अलग भी पढ़े जा सकते हैं, और एक उपन्यास की शक्ल में भी उनके अंदर विचरण किया जा सकता है।
हर उपन्यास को एक किरदार की जरूरत होती है, जिसके इर्द-गिर्द पूरी कहानी चले, तो दत्तात्रय लॉज में वह किरदार बाबू भाई हैं, जिलके चारों तरफ हर दिन दसियों किरदार घूमते हैं। तमाम किरदार आते-जाते हैं, बाबू भाई अपनी जगह बने हैं।
एक प्रमुख किरदार दत्तात्रय लॉज भी है। एक जीवंत और धड़कते दिलवाला ऐसा किरदार, जिसकी हर सांस से एक नई कहानी सुनाई देती है। यह लॉज भले ही पत्थर, ऊंट, गारे, चूने और लकड़ियों से बनी हो, उसमें मौजूद हर इंसान मिल कर इस इमारत को ही एक किरदार बना देता है।
बॉलीवुड में चमकने की लाखों ख्वाहिशें औ’ हजारों ख्वाब लिए लोग दत्तात्रय लॉज में आते हैं। यहां का हर शख्श ‘स्ट्रगलर’ है। उनका स्ट्रगल एक वक्त बाद, जिंदा रहने का सवाल बन जाता है।
ऐसे ही 22 स्ट्रगलरों की 21 कहानियां दत्तात्रय लॉज में कैद हैं। कहानियां 21, तो स्ट्रगलर 22 कैसे? एक स्ट्रगलर लॉज मैनेजर बाबू भाई भी तो हैं, या कहें कि इस ‘महाभारत’ के ‘एक्सक्लूसिव सारथी महायोगी कृष्ण’ हैं।
दत्तात्रय लॉज में जिगेलो, सुपारी हत्यारे, देह के दलालों, झूठों-मक्कारों से सच्चे-सहृदय इंसानों तक, हर किस्म के किरदारों की कहानियां है।
दत्तात्रय लॉज में लेखक ने तथाकथित फिल्मोद्योग का वह रूप नंगा कर दिया है, जो रुपहले परदे के पीछे आज तक बड़ी बेरहमी से छुपा हुआ था।
अध्याय – कुल 21 | ||
500 की खाट | गांधारी का अर्धसत्य | माता कुमाता न भवति… |
लॉज की यारी… | डंक | वापसी |
लखनऊ वाया मुंबई सेंट्रल | रात का राजा | राक्षस |
भाग्यविधाता | नमक का ढेला | भीम |
गोरा बाबू का इलाका | तू नहीं, और सही… | जनतंत्र |
मन्नत | अपना हाथ, जगन्नाथ | कुछ मीठा हो जाए |
कैप्टन | अधूरा मैच | हम खुदा से नहीं… |