क्या मोदी सरकार ने जनता के साथ लड़ाई शुरू कर दी?
लड़ाई अपने देश का स्थायी भाव है। यह अनिवार्य है। इसके बगैर कुछ नहीं होता। जिसको देखो वह किसी न किसी से लड़ता रहता है या लड़ती रहती है। देश के इतिहास में लड़ाइयों की भरमार है। स्वतंत्र गणतंत्र के रूप में आकार लेने से पहले देश में करीब 650 राजा, महाराजा, नवाब आदि हुआ करते थे। वे आपस में लड़ते हुए अंग्रेजों के काबू में रहते थे। ऐसा शायद ही कोई राजा होगा, जिसने किसी अन्य राजा से खुन्नस नहीं पाली हो। अंग्रेज सरकार की मनमानी के चलते जनता एकजुट हुई तो इन राजाओं नवाबों को सरेंडर करना पड़ा। जनता ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। अंग्रेज अफसरों से लड़ते-लड़ते हिंदू-मुसलमान भी आपस में लड़े। भयंकर लड़ाई के बीच भारत स्वतंत्र घोषित हुआ और उसके एक हिस्से को तोड़कर मुसलमानों का अलग देश पाकिस्तान बना दिया गया।
देश में लोकतंत्र स्थापित हुआ। चुनाव होने लगे। चुनाव को भी लड़ाई माना गया। हर उम्मीदवार यही कहता है कि वह चुनाव लड़ रहा है। लोकतंत्र की राजनीति में विचारधाराओं की लड़ाई शुरू हुई। अर्थव्यवस्था का विस्तार होने के साथ लड़ाई के तौर-तरीके बदल गए। पुराने जमाने में शारीरिक बल के आधार पर लड़ाइयां होती थीं। बाद में तकनीक आ गई। आर्थिक ताकतों के जरिए लड़ाई होने लगी। ज्यादा से ज्यादा मनुष्यों का संहार कम समय में करने वाले हथियार बन गए। बम बन गए। तरह-तरह की बंदूकें बन गईं। तोप की जगह टैंक ने ले ली। लड़ने की ताकत का विस्तार होता चला गया। एक देश दूसरे देश से लड़ने के लिए तैयार। देश के भीतर राजनीतिक पार्टियां आपस में लड़ने को तैयार। भारत-पाकिस्तान हमेशा आमने-सामने। अंग्रेजों ने कांग्रेस को शासन सौंपा था।
कांग्रेसी सत्ता सुख भोगने में मशगूल हो गए। चुनाव जीतते रहने के लिए उन्होंने मुसलमानों और हरिजन-आदिवासियों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया। धीरे-धीरे ये दोनों वोट बैंक उसके हाथ से निकलते चले गए। हिंदुत्व समर्थक पार्टियां कांग्रेस से राजनीतिक लड़ाई लड़ती रही। अयोध्या में राम जन्मभूमि के लिए आंदोलन ने जोर पकड़ा तो उसके सहारे भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ बढ़ा। लोकसभा में उसकी सीटें बढ़ती चली गई। वह कांग्रेस की सरकार से हर तरह से लड़ी और अब उसने कांग्रेस तो हराकर सरकार पर कब्जा कर लिया है। कांग्रेस पस्त हो चुकी है। नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें फायरब्रांड नेता घोषित किया जा चुका है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी भाजपा की लड़ाई जारी है। मोदी की सरकार अब अपने विरोधियों से लड़ रही है। जो भी मोदी सरकार का किसी भी तरह विरोध करता है, उसे देशद्रोही बताने वालों की फौज सक्रिय है। मोदी पिछले छह-सात साल से जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे देश का नवनिर्माण बताया जा रहा है। देश में लोकतंत्र है, यह तथ्य मोदी सरकार ने भुला दिया है, जिसका प्रमाण नवंबर 2020 से चल रहा किसान आंदोलन है। इसे कमजोर करने और बदनाम करने के भरसक प्रयास कर लिए गए हैं। लालकिले पर उपद्रव हो चुका है। दिल्ली की सिंघु बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर के आसपास की सड़कों पर किसानों को रोकने के लिए लिटरली कांटे बिछाए जा रहे हैं।
किसानों की लड़ाई मोदी सरकार के साथ है। मोदी सरकार की लड़ाई उन किसानों के साथ है जो संसद में पारित किए गए तीन किसान विरोधी कानूनों का विरोध कर रहे हैं। आंदोलन को फैलने से रोकने के लिए पूरी ताकत लग रही है। इंटरनेट बंद कर दिए गए हैं। सड़कें खोदी जा रही हैं। सीमेंट कांक्रीट के कांटेदार बैरीकेड लगाए जा रहे हैं। किसानों का सत्याग्रह अहिंसक है, जिन पर कई बार बल प्रयोग किया जा चुका है। ग्रामीणों की तरफ से विरोध के नाम पर उन पर पत्थर भी फेंके जा चुके हैं। लाल किले की घटना के बाद भी किसान आंदोलन ठंडा नहीं पड़ने की बौखलाहट मोदी सरकार की कथनी-करनी में साफ देखी जा सकती है।
सरकार सर्वशक्तिमान होती है। उसे किसी लड़ने की क्या जरूरत? लेकिन जब स्वभाव ही लड़ने का हो तो क्या किया जाए? जब तक इसके खिलाफ या उसके खिलाफ हुंकारा नहीं भरेंगे, फुफकारेंगे नहीं तो राजनीति कैसे चलेगी? यही मोदी सरकार कर रही है। विरोधियों को निबटाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद हर तरह के उपाय अपनाए जा रहे हैं। पुलिस का कैसे इस्तेमाल किया जाता है, इसकी ट्रेनिंग मौजूदा शासकों ने गुजरात में ले ही रखी है। पुलिस का बुरी तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
अब, जब सिर्फ गिनती के लोगों का वर्चस्व बनाने की खातिर मोदी सरकार अपने देश के नागरिकों के भविष्य को ही अंधकारमय बना देने पर उतारू हो गई है तो जनता को भी सरकार से लड़ाई करने का अनुभव है। सिकंदर के खिलाफ, अकबर के खिलाफ, औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई, अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ाई, देश स्वतंत्र होने के बाद आपातकाल के खिलाफ लड़ाई, मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने पर लड़ाई, राम जन्म स्थान का ताला खुलने के बाद तथाकथित हिंदुत्व के लिए लड़ाई, और स्थानीय स्तर पर तरह-तरह की लड़ाइयां। सरकार चला रहे लोग समझते हैं कि लड़ेंगे नहीं तो जिएंगे कैसे? वे किसानों से इसलिए लड़ रहे हैं कि वे अपनी मिलकियत बर्बाद होने की शंका में स्यापा क्यों कर रहे हैं?
अब यह लड़ाई चलेगी। मोदी सरकार मनमानी करेगी और विरोध भी बढ़ेगा।
अभी इस देश में ऐसे लोग जीवित हैं, जो इस देश के शक्तिशाली लोकतंत्र को तहस-नहस होते नहीं देख सकते। राजनीतिक पार्टियां तो राजनीतिक लड़ाई में ही व्यस्त रहती है। बुनियादी अधिकारों और संविधान की हिफाजत के लिए तो जनता को ही उन नेताओं से लड़ना पड़ेगा, जो सत्ता का दुरुपयोग करते हुए देश का नुकसान कर रहे हैं। किसान आंदोलन इसी का प्रतीक है और भारतीय लोकतंत्र में एक लंबी लड़ाई की शुरूआत है। इसमें कौन जीतेगा, कौन हारेगा, कह नहीं सकते, लेकिन सत्य की हमेशा विजय होती है, इस कहावत के झुठलाने के लिए बड़ी-बड़ी ताकतें लगी हुई हैं, जिनमें मीडिया भी शामिल है। इस लड़ाई में कौन किस पर भारी पड़ रहा है, यह दिसंबर 2021 तक मालूम पड़ जाएगा।