Books: अछूत कुत्ता: कुरीतियों के खिलाफ कलम
अछूत कुत्ता: कुरीतियों के खिलाफ कलम
पृष्ठ – 165 / अध्याय – 33
भारत ही नहीं, पूरा विश्व अजब-गजब किस्म की परंपराओं और रीतियों से भरा है। उनके पीछे वैसे ही अजब-गजब तर्क भी पेश किए जाते हैं।
अजब दुनिया है… जितनी रंगीन है यहां जिंदगी… उतने ही काले रंग हैं यहां जीवन में। कुछ बुरे रिवाज इस समाज में भी हैं, जो बनाते हैं इंसान को हैवान… और ये हैं एक अभिशप्त देश के कुछ श्राप।
ऐसा सिर्फ भारत में नहीं हो रहा। सारी दुनिया कुरीतियों से शापित हो चली है।
इन अभिशाप ने न केवल महिलाओं बल्कि पुरुषों का भी जीवन जहर से भर दिया है। इनकी आग में आज भी कई जिंदगियां जल कर खाक हो रही हैं।
आलम ये है कि हर जगह अपनी जरूरत के हिसाब से परंपराएं और रीति-रिवाज लोगों ने बना लिए। ये वक्त के साथ कुरीतियों बन चलीं। लोगों को इन कुरीतियों के दरदरे पत्थरों के नीचे कुचलते और पीसते समाज की मुखालफत भी जरूरी है।
अछूत कुत्ता किताब में इन पर न केवल लेखक ने गहरी नजर डाली है बल्कि उनके खिलाफ कलम से आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की है।
सबसे पहली बात यह कि सच को सच कहें। सत्य का उद्धाटन करें। सच लिखते समय न कलम थर्राए, न रुके। न उस समाज का भय हो, जो कुरीतियों को जन्म देता और पालता-पोसता है।
अछूत कुत्ता कहानी–किस्सों की किताब भर नहीं है। समाज में फैली गलत रीतियों के खिलाफ बगावत है। कुरीतियों पर कलम का कठोर आघात है।