पत्रकार वो नहीं, जो डरता नहीं…
पत्रकार कोई हीरो नही है। डॉक्टर और नर्स और पुलिस हीरो हैं।
अपनी जान लेकिन ख़तरे में डाल कर होनी-अनहोनी खबरें लोगों तक पहुँचाने वाला या वाली पत्रकार कैसे हीरो हो सकता / सकती है?
क्या हुआ अगर पत्रकार किसी दुर्घटना के वक्त जगह पर पहुँच कर खबरें लाता है? अपने परिवार के बारे में नहीं सोचते वे!
भूकंप के वक्त जब पीड़ितों की खबरें पाने के लिए दूर बैठे रिश्तेदार तड़प रहे थे, तब पत्रकार ही थे, जिन्होंने लोगों को लोगों से जोड़ा था। टूटे मकानों के लुढ़कते मलबे पर खड़े हो कर समाचार इकठ्ठा किए थे।
गैंगवॉर या टेररिस्ट अटैक के वक्त भी पत्रकार घर से बाहर होता है। साइक्लोन सुनामी हो या कोरोना और स्पेनिश फ्लू हो, पत्रकार हमेशा खबरें लाता रहता है। पत्रकार को लेकिन कोई हीरो नहीं कहता।
पत्रकार वो नहीं, जो डरता नहीं… बस समाज की खातिर डर भूल कर काम करता है…
जब देश डॉक्टरों, नर्सों, सेवाभावी संस्थाओं के लोगों के लिए दिया जलाता है या खिड़कियों में आकर लोग ताली या थाली बजाते है, तब वे तस्वीरें और खबरें सब तक पहुँचती है, जी हां, इन्हीं पत्रकारों के ज़रिए।
पत्रकारों को सेफ्टी किट या कपड़े कोई सरकार या कोई समाजसेवी संगठन नहीं देता। अपनी जान, अपना सामान, और अपना संघर्ष। यही पत्रकार की पहचान है।
पत्रकार समाज के हर व्यक्ति को दूसरे से जोड़ने वाला इंसान है। पत्रकार के पास अपने बच्चे के आंसू पोछने का वक्त नहीं होता। लेकिन पत्रकार हीरो नहीं है।
समाज क्योंकि उसे हीरो नहीं मानता।
हकीकत ये है कि पत्रकार छुपे हीरो हैं, जिसकी सराहना नहीं होती, और उन्हें सराहनाकी ज़रूरत भी नहीं होती।
कोरोना से पीड़ित मुंबई के मेरे पत्रकार दोस्तों, फ़ोटो जर्नालिस्ट, रिपोर्टर्स, कैमरामैन, आप सब भी हीरो ही हैं।
आप भी देश और समाज की बहुत ही अहम सेवा कर रहे हैं। आपके बिना भी कोई, किसी भी देश का समाज जी नहीं सकता।
कोरोना का वायरस पत्रकार और पत्रकारिता को हरा नहीं सकता। हम उसी तरह कोरोना के खिलाफ इस जंग में आगे बढ़ कर काम करते रहेंगे, जिस तरह पुलिस या डॉक्टर रहता है। सराहना के लिए नहीं, प्रशंसा के लिए नहीं, कोई पुरस्कार या फूल हार के लिए नहीं, हमारे कर्तव्य और संसार के लिए।
कोई हीरो क्योंकि किसी के कहने से नहीं होता। हीरो, बस हीरो होता है। जैसे आप सब हैं।
– संजय त्रिवेदी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक व पूर्व संपादक – संदेश, मुंबई