क्या योग मजाक का विषय नहीं बन गया?
सोमवार 21 जून 2021 को समारोह पूर्वक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। जगह-जगह झुंड के झुंड के लोग बैठे और उन्होंने सबने मिलकर योग किया। टीवी चैनलों पर सीधा प्रसारण हुआ। करोड़ों लोगों को नयन सुख मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योग पर प्रवचन दिए। पूरे देश को मोदीजी ने बताया कि योग का क्या महत्व है। अच्छा लगा। शरीर को मोड़ना तोड़ना, सांस को ऊपर नीचे करना, आंख बंद कर बैठ जाना और फोटो खिंचवाने के बाद वापस अपने काम पर। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को इस तरह तमाशे के साथ मनाने में किसका क्या फायदा हुआ?
योग क्या है? जिमनास्टिक और योग में बहुत अंतर है। यहां जो योग दिवस मनाया जा रहा था, उसमें कई लोगों ने योग को जिमनास्टिक समझा और शरीर को तोड़ने मरोड़ने की कला का प्रदर्शन किया। महिलाओं की संख्या भी अच्छी खासी थी, जिससे योग दिवस का आकर्षण बढ़ा। बहुत से लोगों ने समझा कि भारत आगे बढ़ रहा है। योग पर भारत का कॉपीराइट है और यहां की सरकार योग का किसी भी तरह इस्तेमाल कर सकती है। योग के बारे में ज्यादातर लोगों को कुछ नहीं मालूम। वे सिर्फ इस शब्द से परिचित हैं। योगाभ्यास का अधिकतम शारीरिक उपयोग शीर्षासन तक पहुंचता है, जिसमें व्यक्ति सिर के बल खड़ा हो जाता है। यह योग साधने वाली प्रक्रिया का बहुत छोटा हिस्सा है। जो योग का मतलब समझता है, उसकी विचारधारा आश्चर्यजनक रूप से बदल जाती है।
योग के माध्यम से बाबा रामदेव को बिन मांगे बहुत प्रचार मिला, क्योंकि उन्होंने शिविर लगाकर जन साधारण को योग के महत्व से परिचित करवाया और स्वस्थ रहने में उपयोगी सांस के नियंत्रण संबंधी यौगिक प्रक्रियाओं से परिचित करवाया। कपालभाति, अनुलोम-विलोम आदि का मतलब लोग समझने लगे। इससे पहले तक ब्राह्मण परिवार ही इन प्रक्रियाओं को जानते थे। साधु, संत, संन्यासियों का जीवन योग पर आधारित रहता है। योग के माध्यम से मनुष्य कई रोगों से बचता है। जीने का तरीका सीखता है। जो इससे आगे बढ़ता है, वह महात्मा बनता है। बाकी लोग क्षमताओं का दुरुपयोग करते हैं।
अब बाबा रामदेव ने योग सिखाना बंद कर दिया है और व्यापार करने लगे हैं। पतंजलि ब्रांड का कारोबार हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। योग का प्रचार करने की जिम्मेदारी मोदी ने संभाल ली है। अगर वह योग का मतलब समझते तो उनकी सरकार ऐसी नीतियां बनाने के बारे में सोचती भी नहीं, जिसमें आम जनता का नुकसान हो। योग अब उनकी सरकार में आयुष मंत्रालय का हिस्सा है। आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी को मिलाते हुए आयुष नामकरण किया गया है। कोविड महामारी के दौर में यह मंत्रालय क्या कर रहा है, किसी को खबर नहीं है। योग दिवस पर बहुत खर्च होता है। योग मैट पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। इवेंट होने के बाद योगा मैट अपने घर ले जाने के लिए छीना छपटी होती है। ये योग मैट चीन की कंपनी सप्लाई करती है।
योग दिवस देखकर लगा कि भारत की पावन परंपराओं का किस तरह मजाक बनाया जा सकता है। योग मनुष्य को स्वयं से परिचित कराता है। उसमें आत्म विश्लेषण की क्षमता आ जाती है। वह सही-गलत समझने लगता है। उसके आचार-व्यवहार, विचारधारा में परिवर्तन आ जाता है। उसकी जीवन शैली साधारण लोगों की तरह नहीं रहती और न ही उसमें अपना खुद का प्रचार करवाने की इच्छा होती है। योग मनुष्य के लिए परमात्मा की तरफ से अद्भुत भेंट है। शरीर का ध्यान तो सभी रखते हैं, लेकिन शरीर के अलावा क्या है, जिससे जीवन को ईंधन मिल रहा है, इसका ज्ञान योग के माध्यम से होता है।
योग का अर्थ है जोड़ना। मेल। इसमें मनुष्य ब्रह्मांड की विराट चेतना से जुड़ने का प्रयास करता है। कुछ लोग इस रास्ते पर चलते हुए जीवन सफल कर लेते हैं। बाकी के रास्ता भटक जाते हैं। ब्रह्मांड और पृथ्वी के अंतरसंबंधों की व्याख्या योग के माध्यम से होती है। इसमें शरीर को संभालने के लिए सांस के उपयोग की जानकारी तो है ही, ध्यान के माध्यम से ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ने का प्रयास भी शामिल है। इस प्रक्रिया का संबंध उससे बिलकुल नहीं है, जिस तरह भारत में योग दिवस मनाया गया। अगर इस देश के लोग योग के प्रति समर्पित होते, मोदी सरकार योग के प्रति समर्पित होती तो देश की ऐसी हालत ही नहीं होती, जैसी आज हो रही है। योग के विभिन्न आयाम हैं, जिनमें शरीर को तोड़ना मरोड़ना एक छोटा सा हिस्सा है। शरीर को साधने के बाद मन को साधना पड़ता है। मन पर नियंत्रण प्राप्त करने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है। मनुष्य या मानव शब्द मन से ही बना है। योग उस मन को समझने की प्रक्रिया का नाम है।
तन और मन को समझ लेने के बाद पता चलता है कि आत्मा क्या है? है या नहीं है? कुछ भी हो सकता है। लोग इस संबंध में सदियों से रटवाई जा रही बातों को माने हुए रहते हैं। वह उनकी धार्मिक आस्था का विषय बन जाता है। पंडित सुबह पूजा कर रहे हों, कई लोग सूर्य नमस्कार कर रहे हों, मुसलमान नमाज पढ़ रहे हों, ये सभी किसी न किसी तरह योग से जुड़े हुए हैं। यह सब करते हुए ये लोग अपने मन की उड़ान को कुछ समय तक के लिए रोकने का प्रयास करते हैं। मन पर काबू करना ही योग है। मनुष्य मन से चलता है। मन बेकाबू होकर उसके शरीर से तरह-तरह के काम करवा लेता है। मनुष्य स्वार्थी हो जाता है। स्वार्थी मनुष्य का योग तन को साधने तक ही सीमित है। मन से वह कुछ तो भी करता रहता है।
नास्तिक लोग नहीं मानते कि आत्मा, परमात्मा जैसी बातें होती हैं। बाकी लोग मानते हैं। जानने और नहीं जानने वाले लोग ब्रह्मांड का अंश बनी इस पृथ्वी पर किसी मां की कोख से जन्म लेते हैं, कुछ वर्ष जीते हैं और फिर मर जाते हैं। इस तरह हर मनुष्य मिट्टी का छोटा सा ढेर है। लोग इस तथ्य से अनजान बहुत कुछ सीखे हुए, माने हुए रहते हैं। अनुभव उनके साथ होता है। चेतना उनके साथ होती है, जिसका उपयोग वे मन के हिसाब से करते हैं। मन हमेशा आनंद की खोज में रहता है, जिससे शरीर को सुख मिले। शरीर को कई तरह से सुख मिलता है और उन सभी सुखों से मिलकर संसार बना हुआ है। सुख नहीं मिलने पर मनुष्य दुखी हो जाता है। इस तरह मन की गति के कारण मनुष्य मोह-माया में उलझे हुए रहते हैं। योग मनुष्य को मोह-माया में उलझने से बचाता है।
ब्रह्मांड में जो हमारी चेतना के दायरे में है, उसमें सूर्य है, उसके चारों तरफ पृथ्वी सहित सात ग्रह हैं। पृथ्वी पर मनुष्य जन्म लेता है। उसके लिए ब्रह्मांड का सातवां ग्रह चंद्रमा होता है, जो कि पृथ्वी का हिस्सा है। जो जन्म लेता है, वह जीवन धारण करता है, सोचता है, विचारता है, कुछ करता है, मनमानी करता है या नहीं करता है, बचपन से जवान होकर बूढ़ा हो जाता है और मर जाता है। यह जीवन की कहानी है। इसमें बहुत ही कम लोग योग पर विचार करते हैं। ऐसे लोगों के लिए योग दिवस के प्रचार का महत्व है, क्योंकि इससे उनकी समझ में आता है कि अपने देश में ऐसा भी होता है। प्रधानमंत्री बता रहे हैं तो काम की बात होगी। हरेक को देशभक्त होना चाहिए। भारतीयता का सम्मान करना चाहिए। योग को मानने वाला देशभक्त होता है।
बहरहाल पावन भारतीय परंपराओं को जिस तरह प्रहसन में परिवर्तित किया जा रहा है, उससे किसी का भला नहीं होना है। प्रचार के युग में बहुत से ब्रांड चलते हैं। कोका कोला, पेप्सी, रायल चैलेंज, नैस्केफे, टाटा, रिलायंस आदि, इत्यादि। योग को भी योगा बनाकर उन्हीं की कतार में खड़ा कर दिया गया है। योग इतना सतही नहीं है। योग मनुष्य को जीवन की गहराई से परिचित करवाता है। उसको इस तरह का इवेंट बना देना ठीक नहीं है। योग दिवस पर लोग ऊंट पर बैठे योग कर रहे थे, नावों में बैठकर योग कर रहे थे, बर्फीली चोटियों पर योग कर रहे थे, छतों पर, मैदानों में, जहां देखो वहां योग करते हुए लोगों की तस्वीरें टीवी के समाचार चैनलों पर छाई रहीं।
इस तरह मनुष्य को अध्यात्म की तरफ मोड़ने वाला योग खूबसूरती से संसार की तरफ मोड़कर उसे ब्रांड में तब्दील कर दिया गया। प्रचार में इतनी ताकत है कि बहुत से योग का नाम रटते रहेंगे और भोग में तल्लीन रहेंगे। योग के नाम पर कई प्रोडक्ट मार्केट में आ जाएंगे। देखते जाइए, आगे क्या होता है।