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उत्तर प्रदेश की भयंकर हालत

उत्तर प्रदेश इस समय गरम तवा बना हुआ है। वास्तविकताओं से परे खबरें रची जा रही हैं और जरूरी मुद्दों से ध्यान हटाकर मतदाताओं को राम मंदिर और हिंदू-मुसलमान के मुद्दों में उलझाकर चुनाव जीतने की तरकीबें भिड़ाई जा रही हैं। योगी आदित्यनाथ की सरकार है। राज्य का पिछड़ापन बरकरार है और वहां के गांव के लोग बताते हैं कि प्रदेश 2004 की स्थिति में पहुंच गया है, जब जमकर लूटमार होने लगी थी। वही माहौल इस समय है। उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा दूर-दूर बसे गांवों में फैला हुआ है। उत्तर प्रदेश के युवक बड़ी संख्या में बड़े शहरों में छोटी कंपनियों में नौकरी करते थे, या खुद का छोटा-मोटा धंधा करते थे।

ऐसे लाखों लोगों की आजीविका नवंबर 2016 में नोटबंदी से नष्ट हुई। उसके बाद रही-सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी। इसके साथ ही ऐसे-ऐसे कानून नियम बना दिए गए कि सामान्य व्यक्ति के लिए छोटा कारोबार करना बहुत मुश्किल है। उत्तर प्रदेश के ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनकी आजीविका पर नोटबंदी और जीएसटी के कारण संकट आया और उसके बाद मार्च 2020 में अचानक लॉकडाउन ने उनकी कमर तोड़ दी। ऐसे लाखों युवक बेरोजगार होने के बाद उत्तर प्रदेश अपने गांव पहुंच गए हैं। इसके साथ ही प्रदेश के कई इलाकों में छोटी मोटी लूट, डकैती, मारपीट जैसी घटनाएं आम बात हो गई हैं।

राजनीति और मीडिया का सारा विमर्श शहरों तक सिमटा हुआ है। उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्र कम, ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा है। वहां के कई शहरों में भी ग्रामीण क्षेत्र की झलक मिल जाती है। कोविड-19 की दूसरी लहर में जिस तरह लोगों के मरने की खबरें आईं और गंगा में बहती, तट पर दबी लाशों की तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छपी, उससे लोगों में भारी असंतोष है। ऐसी तमाम तस्वीरें उत्तर प्रदेश की थी। श्मशानों में कई चिताएं लगातार जलती रहीं और कहीं-कहीं जलती चिताओं को लोगों की नजरों से बचाने के लिए ऊंची दीवारें बना दी गईं। दूसरी लहर ने उत्तर प्रदेश की हालत स्पष्ट कर दी और महामारी के दौरान अस्पतालों में जो कुछ हुआ, उसमें भाजपा नेताओं तक की असहायता साफ दिखी। वे बेड तक का इंतजाम नहीं कर सकते थे।

उत्तर प्रदेश में इस समय बेरोजगार युवकों की फौज है और उन्हें पैसे की जरूरत है। रोजगार नहीं है, आमदनी नहीं है, शहरों में जगह नहीं है, गांव में हालत खराब है, ऐसे में कई युवक थोड़े से पैसों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार है। इस समय स्थिति भयंकर है। कई लोगों के पास खाने को नहीं है। लॉकडाउन के दौरान कई लोगों ने चावल उबालकर नमक चटनी से खाकर पेट भरा। परिवारों में तनाव बढ़ रहा है। शिक्षा की स्थिति दयनीय है। जो गांव-कस्बे हाईवे के किनारे हैं, या जहां मुख्य बस स्टैंड जैसी जगह है, वहां थोड़ी सुरक्षा है, लेकिन कई इलाके ऐसे हैं, जहां इंटीरियर में कुछ किलोमीटर दूर स्थित गांव तक अकेले पहुंचना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए लोग सुरक्षा के मद्देनजर समूहों में यात्रा करते हैं।

कानून व्यवस्था की स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की आलोचना करने वालों के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई होती है। सरकार से असहमत होने वालों की खैर नहीं। विपक्षी पार्टियों के लोग ज्ञापन देने जाएं तो उल्टे उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई हो जाती है। सरकार का विरोध करने वाले कई लोग बेवजह जेल भेज दिए जाते हैं। प्रदेश में महामारी के दौरान पंचायत चुनाव हुए। चुनाव कार्य में लगे कई शिक्षकों की कोविड से मौत हुई। अब जिला प्रमुख के चुनाव होने वाले हैं। भाजपा को जिताने के लिए साम, दाम, दंड, भेद, हर तरीका अपनाया जा रहा है। कई जगह विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोका गया। विपक्षियों को अपने खेमे में लाने के लिए प्रलोभन दिया जा रहा है, या धौंस दपट की जा रही है।

छोटे अपराधों की रिपोर्ट लिखने से पुलिस बचती है, जिससे प्रदेश में कानून-व्यवस्था के आंकड़े दुरुस्त बने रहते हैं। मीडिया की पूरी ताकत बड़े शहरों में और भाजपा के प्रचार में खर्च होती है, जिसके कारण जमीनी वास्तविकताओं की तरफ ध्यान देने वाला कोई नहीं है। एक तरफ बड़ी संख्या में लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच रहे हैं, दूसरी तरफ सरकार के प्रचार पर अंधाधुंध रुपए खर्च हो रहे हैं। हर अखबार, टीवी का हर समाचार चैनल सरकार से लगातार मिलने वाली राशि के कारण अपच का शिकार है। उनके कैमरे और रिपोर्टर सिर्फ नेताओं के इर्द-गिर्द तैनात रहते हैं।

बहरहाल भाजपा की तरफ से उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए उससे ज्यादा रुपए खर्च किए जाने की संभावना है, जितने पश्चिम बंगाल में किए गए थे। प्रदेश की वास्तविकताओं पर पर्दा डालते हुए धन बल से चुनाव जीतने का प्रयास किया जाएगा। चुनाव में बहुत पैसा बंटेगा, लेकिन चुनाव के बाद क्या होगा? क्या बेरोजगारी दूर करने के लिए किसी के पास कोई रोडमैप है? दैनिक मजदूर का एक दिन का पारिश्रमिक कम से कम 400 रुपए है, लेकिन कई लोग कई किलोमीटर दूर जाकर 250 रुपए रोज में काम करने के लिए तैयार हैं। समझा जा सकता है उत्तर प्रदेश की हालत क्या होने वाली है? क्या कोई इस तरफ ध्यान देने वाला है?

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