जल्दी ही मालूम पड़ जाएगा कि लोग कितने स्वतंत्र हैं, कितने गुलाम
पूरे देश में जबरन लॉकडाऊन करने और चीन से फैले कोरोना वायरस के कारण भयानक महामारी का सुनियोजित प्रचार करने से किसको क्या मिला? यहां कोरोना संक्रमण है, वहां कोरोना संक्रमण है। यहां इतने मर गए, वहां उतने मर गए। संक्रमण बढ़ रहा है।
सरकार इस महामारी को रोकने के पूरे प्रयास कर रही है। लोग घर में बैठे रहें। कुछ न करें। एक-दूसरे से दूर रहें। सरकार का सहयोग करें।
किसी भी शहर / प्रांत में इस बीमारी से मरने वालों की संख्या इकाई दहाई में और संक्रमित लोगों की संख्या तीन अंकों में बताई जा रही है।
यह महामारी है और लोगों को बुरी तरह भयभीत कर दिया गया है कि घर में नहीं रहोगे, दुकान खोलोगे, काम-धंधा करोगे तो महामारी और फैलेगी। सरकार इसको रोकने में लगी है। घर से बाहर निकलोगे तो बीमारी फैलाने के आरोप में पुलिस डंडे मारेगी। गजब का माहौल है और लोगों ने मान भी लिया।
भारतीय लोकतंत्र में पहली बार सरकारों को लोगों के जीवन की इतनी चिंता करते हुए देखा जा रहा है। यह लोकतंत्र में सुधार है या यह जांचने का प्रयास कि देशवासियों को डरा कर किस सीमा तक गुलाम बनाकर रखा जा सकता है?
केंद्र की मोदी सरकार इसी दिशा में काम करती हुई दिखाई दे रही है और राज्य सरकारों को भी कोरोना मामले में उसके साथ कदमताल करना उचित प्रतीत होता है, क्योंकि राजनीतिक विरोधियों की बोलती बंद रखने का इससे बेहतर और कोई उपाय नहीं हो सकता।
महामारी का प्रचार ऐसा ब्रह्मास्त्र है, जिसके उपयोग से घटिया से घटिया सरकार को भी अनंतकाल तक टिकाए रखा जा सकता है।
ऐसी बात नहीं है कि दुनिया में महामारियां कभी फैली ही नहीं। प्लेग से लाखों लोगों के मर जाने की भयानक याद आज भी कई लोगों के जेहन में है। लेकिन कोरोना प्लेग नहीं है। इसकी भयानकता का अभी तक भारतीयों को पता नहीं चला है।
यह कितनी भी भयानक हो, 138 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत में इससे मरने वालों की कुल संख्या पचास-पिचत्तर हजार तक पहुंचना भी मुश्किल है। इससे ज्यादा लोग तो दुर्घटनाओं, हादसों, अपराधों और सामान्य बीमारियों से मर जाते हैं।
कोरोना संक्रमण और उससे कुछ लोगों के मरने की खबरें बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रकाशित / प्रसारित करने वाले मीडिया को अन्य मौतों के भी तुलनात्मक आंकड़े जारी करते रहना चाहिए।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब देश के विभाजन की बात हुई, तब आपसी लड़ाई में कितने लोग मरे थे? यह संख्या लाखों में है। गुजरात सहित देश के विभिन्न स्थानों में हुए सांप्रदायिक दंगों में मरने वालों की संख्या क्या है? जहरीली शराब से अब तक कितने लोग मरे होंगे? यह संख्या भी लाख में निकलेगी।
भोपाल गैस कांड में कितने लोग मरे थे? हर साल सड़क हादसों में कितने लोग मरते हैं? नदियों में बाढ़ आ जाने से कितने लोग मरते हैं? अस्पतालों में साधारण बीमारियों का भी इलाज समय पर नहीं हो पाने से कितने लोग मर जाते हैं?
मोदी सरकार तो ऐसा हंगामा कर रही है जैसे उसने देशवासियों के जीवन-मृत्यु को वश में कर लिया है और अब जो लोग मरेंगे, वे सिर्फ कोरोना से मरेंगे!! क्या देश की चिंता करने वालों की बुद्धि पर पाला पड़ गया है, जो कोरोना के नाम से लोगों को बुरी तरह भयभीत कर चलाई जा रही देश को बर्बाद करने वाली नौटंकी चुपचाप देख रहे हैं?
दरअसल यह लोकतंत्र में लोगों की बुद्धि की परीक्षा का समय है।
जल्दी ही साबित हो जाएगा कि इस देश का नागरिक कितना स्वतंत्र है और कितना पूरी तरह एक तानाशाह सरकार का गुलाम।
श्रषिकेश राजोरिया
19 अप्रैल 2020
लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक
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