महालक्ष्मी रेसकोर्स के प्रमुख बुकी बनारसी दास का लाईसेंस रद्द, बुकियों की हड़ताल शुरु
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 22 दिसंबर 018
मुंबई पुलिस की शुक्रवार शाम भारी छापामारी के बाद आज सुबह महालक्ष्मी रेसकोर्स के सभी अधिकृत लाईसेंसधारी बुकियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी है। यह हड़ताल रेसकोर्स के अग्रणी बुकी बुनारसी दास का लाईसेंस रद्द करने के खिलाफ हुई है।
छापामारी से मचा हड़कंप
बता दें कि शुक्रवार को साढ़े सात बजे की अंतिम रेस के तुरंत बाद ढाई दर्जन से अधिक पुलिस वालों के एक दस्ते ने लाईसेंसधारी घुड़दौड़ बुकियों पर शुक्रवार की शाम छापामारी की।
पुलिस ने 21 बुकियों के स्टॉल पर मौजूद 100 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है।
स्टॉल की तमाम नकदी, दस्तावेज, बही-खाते, मोबाईल फोन और लैपटॉप जब्त कर लिए हैं।
शुक्रवार को मुंबई रेसकोर्स में कुल 7 रेस थीं। कोलकाता रेसकोर्स में कुल 9 रेस थीं। कुल 16 रेस होने के कारण मुंबई सेंटर रिंग में मोटी रकम लगी थी। इसके चलते शुक्रवार को मोटा कलेक्शन होने पर नकदी भी काफी आई थी।
मौके पर मौजूद एक पंटर ने बताया कि सादे कपड़ों में पहले ही काफी सारे पुलिस वाले रिंग में मौजूद थे। उन्हें यही लगा कि अंडरवर्ल्ड की धमकियों के चलते पुलिस वाले निगरानी के लिए आए हैं।
इस पंटर के मुताबिक आखिरी रेस जैसे ही खत्म हुई, सभी पुलिस अधिकारियों ने बुकियों के केबिन घेर लिए, अंदर बैठे तमाम कर्मचारियों और मालिकों से कहा कि उनमें से कोई भी बाहर नही निकलेगा।
बनारसी दास का बजा बैंड
मुंबई रेसकोर्स के लाईसेंसधारी स्टॉल ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बनारसी दास स्टॉल के मालिक राज अरोरा हैं। उनका ही लाईसेंस अपराध शाखा अधिकारियों द्वारा रद्द करवाने की खबर आ रही है।
यह बात और है कि न तो पुलिस इसकी पुष्टी कर रही है, न ही रेसकोर्स से अधिकृत तौर पर कोई बयान आया है।
पीछे पड़ गया अंडरवर्ल्ड
बता दें कि मुंबई रेसकोर्स में क्राऊन गेंबलिंग के मालिक मिलन गांधी, विपिन गांधी, विनोद गांधी समेत पूरे परिवार और प्रशांत रीतिक, प्रेम संस के मालिक, जो प्रेम चेंबूर नाम से पहचाने जाते हैं और उनके बेटे राहुल, रिधी स्टॉल के मालिक माईकल, ठक्कर एंड कंपनी, फरीद के पीछे मुंबई अंडरवर्ल्ड के पड़े होने की सूचना छन-छन कर आ रही है।
रिंग में बड़ी हार-जीत करने वालों में बनारसी दास, प्रेम संस, रितिक, माईकल, ठक्कर एंड कंपनी, फरीद, राजपूत एंड कंपनी बताए जाते हैं।
अवैध जुआ है जड़ में
पता चला है कि मुंबई के 21 में से 8 ऐसे लाईसेंसधारी बुकी हैं, जिनकी एक रेस में 10 लाख रुपए तक की हार-जीत होती है। उनसे हफ्तावसूली करने का खेल पिछले दिनों खराब हो गया था।
इन लाईसेंसधारी बुकियों के अलावा क्रिकेट का अवैध सट्टा करने वाले बुकी भी रेसकोर्स का अवैध सट्टा करने लगे हैं। इन अवैध सटोरियों में दिलीप मटका और केतन बुकी का नाम सबसे ऊपर है।
पंटरों को भारी नुकसान
एक पंटर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले एक महीने में ‘वन टू – वन टू’ में ही रेस हो रही है। उसके मुताबिक रेस ‘जोड़ी में’ हो रही है, जिससे पंटर बुरी तरह हार रहे हैं। भारी नुकसान सहन करने के कारण भी कुछ समय से पंटरों में क्षोभ बना हुआ था।
सबसे बड़ा सेंटर है मुंबई-पुणे
देश में मुंबई-पुणे, कोलकाता, ऊटी-चेन्नई, मैसूर, हैदराबाद, दिल्ली, बंगलुरू में रेसकोर्स सेंटर हैं। इनमें सबसे अधिक बेटिंग मुंबई-पुणे रेसकोर्स क्लब में ही होती है। उसके बाद बंगलुरू का नंबर आता है।
बता दें कि हैदराबाद का अपना ही रेसकोर्स है, जिसके कारण उन्हें किसी को किराया नहीं देना होता है।
बुकियों का अर्थशास्त्र
पता चला है कि हर मुंबई का हर लाईसेंसधारी बुकी 55 हजार एक स्टॉल का प्रतिदिन किराया क्लब को कारोबार करने के एवज में देता है। यही किराया बंगलुरू रेसकोर्स में 35 हजार प्रतिदिन, कोलकाता का 22 हजार और अन्य सेंटर्स पर 15 से 20 हजार है।
सूत्रों के मुताबिक मोबाईल व अन्य खर्चे मिला कर लगभग 1 लाख रुपए हर दिन मुंबई के लाईसेंसधारी बुकियों को खर्च लगता ही है।
हर वैध बेटिंग पर 28 फीसदी जीएसटी लगता है। यह आरोप आम है कि बुकी जीएसटी नहीं भरते हैं।
बुकियों की हरकतों से हैरान एक पंटर ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि “अंदर वाले बुकियों को कम से कम 15 हजार रुपए टैक्स भरने के लिए क्लब से दबाव होता है। पंटरों से बुकी 10 फीसदी जीएसटी हर सौदे का लेते हैं। कोई पंटर एक हजार रुपए का खेल खेलता है, तो उसे 1,100 रुपए बुकियों को देता है।”
एक पंटर के मुताबिक वैध जुए में तो हार-जीत की रकम तुरंत स्टॉल पर जाकर मिल जाती है लेकिन फोन पर जुआ लगाने वालों के लिए मंगलवार का दिन सेटलिंग के लिए तय है।
आज है हड़ताल
पता चला है कि आज कोलकाता और चेन्नई में रेस है। इसमें मुंबई के लाईसेंसधारी बुकियों ने नहीं बैठने का फैसला किया है।
इसके उलट आज भी बाहरी अवैध बुकी तो रेस का सट्टा करेंगे ही। इसके चलते मुंबई में रेसकोर्स सट्टे पर अधिक फर्क पड़ने की संभावना नहीं दिख रही है। इस चक्कर में बस रेसकोर्स की कमाई घटेगी और सरकार को मिलने वाले टैक्स में कमी आएगी।