Books: नरक सरहद पार: पाक की वहशी जेलों से जिंदा लौटे जासूस की सच्ची दास्तां
इस किताब का मकसद उन गुमनाम देशभक्तों के अधिकारों के प्रति सरकार और लोगों को जागरूक करना है, जिन्होंने अपना जीवन देश सेवा में लगाया। अपने परिवारों से बरसों दूर रहे। बेतहाशा प्रताड़ना और जुल्मात झेले। ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिसमें एक देशभक्त जासूस को सरकार से मुआवजा देने का आदेश जारी हुआ। हम बात कर रहे हैं, सूचना के उन प्रहरियों की, जो दूसरे देशों में रह कर जोखिम भरा काम बखूबी करते हैं। हम उन्हें जासूस कहते हैं।
यह किताब पाकिस्तान में जाने वाले खुफिया और गुमनाम भारतीय एंजंटों की असली, हैरअंगेज और दर्दभरी कहानी है। उनकी जुबान से, उनके दर्द का बयान है। इसका मकसद देशहित को नुकसान पहुंचाना नहीं। यह मानवीय अधिकारों पर सरकार और हुक्मरानों के ध्यान खींचने की कोशिश है।
विनोद साहनी की दास्तान गजब है। देशभक्ति और पक्की सरकारी नौकरी के छद्म आवरण में खुफिया अफसरानों ने विनोद साहनी से कैसे धोखे किए, कैसे उनसे बेकदरी की, यह कोई भी जाने तो उसका सीना चाक हो जाए। इंसानियत का गला घोंटते उनके प्रसंग सामने आते हैं, तो हर इंसान अवाक रह जाता है।
पाकिस्तान में भारतीय जासूसों से संबंधित किताबें और खबरें अखबारों-पत्रिकाओँ में पढ़ें, तो मन क्षोभ तथा क्रोध से भरता है। मन में सवाल उठता है कि हम हिंदुस्तानी आखिर क्यों अपने सपूतों को इस तरह नरक में झोंकते हैं? वे जब नरक में तकलीफ भोग रहे हैं, हम यहां चैन की नींद कैसे सो सकते हैं? क्यों उनके काम का मुआवजा और सम्मान उन्हें नहीं मिलता?
सेना का एक जवान शहीद हो जाए तो आंसुओं का सैलाब आ जाता है। उसकी शवयात्रा किलोमीटर भर लंबी होती है। अंतिम संस्कार पर पचास कोस तक के गांव वाले उमड़ आते हैं। उनके परिवार को लाखों रुपए की सरकारी मदद हासिल होती है। कोई सिपाही घायल हो जाए तो सेना उसे जिंदगी भर पेंशन देती है। उसका इलाज करवाती है। उसके परिवार का खयाल रखती है।
इसके ठीक उलट भारत के जासूस जब पाकिस्तान की गिरफ्त में आते हैं, तो हमारी सरकार और उसमें बैठे नुमाईंदे इन्हें पहचानने से भी इंकार कर देते हैं। उनके लिए कोई आंसू नहीं बहाता। वापसी पर भी सरकारी तंत्र उनके लिए कुछ नहीं करता। न कोई गाजा-बाजा होता है। न कोई सम्मान मिलता है। वे दसियों बार जान जोखिम में डाल फौजी महत्व की ढेरों सूचनाएं लाते हैं। बावजूद इसके कोई पदक या पुरस्कार उनके लिए नहीं होता। वे घायल लौटते हैं तो 5-10 रुपए के इंजेक्शन के लिए तरस जाते हैं। मरते हैं तो उनकी लाश लावारिस जलती हैं।
एक ही राष्ट्र के दो सपूतों से ऐसा भेदभाव क्यों है? क्या इसका जवाब कभी मिल सकेगा?
सवालों के जवाब में कई सवाल सामने आते हैं। आखिर इंसानियत नाम की कोई चीज है कि नहीं? मानवाधिकार और कानून क्या सिर्फ आतंकियों और अपराधियों की सुरक्षा के हथियार ही बने रहेंगे? गरीब और अशिक्षित युवकों के सपनों की तिजारत करने वाली खुफिया एजंसियां और सरकार की कोई जिम्मेदारी इनके प्रति बनती है कि नहीं? इनके परिवार क्यों भूख और गरीबी में जिएं? जब वे पाक जेल में गिरफ्तार होकर प्रताड़ित हो रहे हैं, तब आखिरकार उन्हें छुड़ाने की पुख्ता कोशिश क्यों नहीं होती है? उनके परिवारों को पालन-पोषण के लिए धन क्यों नहीं दिया जाता है? वे जिंदा लौटे तो भी सरकार क्यों उनका ध्यान नहीं रखती है? क्या ये इंसान नहीं हैं?
विनोद साहनी ने सालों तक पाकिस्तान की जेलों में भयावह यातना सहीं। उनके मन के एक कोने में यह भावना और भरोसा भी रहा होगा कि पाक आतताईयों के आगे टूट कर देश का एक भी खुलासा न करने की देशभक्ति का ही सही, सम्मान होगा। उन्हें उचित मुआवजा मिलेगा। वे भारत लौटे तो अफसरों ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका। पहचानने से इंकार कर दिया। इससे जो क्षोभ व क्रोध उनके मन में उपजा, वह स्वाभाविक है।
विनोद साहनी पहले नहीं, जो बतौर हिंदवी अय्यार पाकिस्तान गए। उनके पहले भी सैंकड़ों गए हैं। सरहद पार बने अनेकों नरक में बेड़ियां पहने, सलाखों के पीछे जिंदा लाश से जीते रहे। मर गए तो किसी नाले के हवाले हो गए। वापस लौटे तो आजाद सांसें लिए। लेकिन हुआ क्या!? अपने ही वतन में वे बिना बेड़ियों और कैद के जिंदा लाश बने रह गए। क्यों!?
सरबजीत की याद है ना आपको? क्यो नहीं होगी भला। मीडिया और प्रेस ने उसकी बेबसी सरहद के दोनों तरफ खूब बेची। फिल्म भी बनी। हंगामे के बीच किसी ने नहीं पूछा और देखा कि सरबजीत के परिवार को क्या माली इमदाद हासिल हुई। एक महिला ने उसके नाम पर लाखों कमाए लेकिन उसके माता-पिता और परिजनों का क्या हुआ? कुछ नहीं पता। पाकिस्तान के इंट्रोगेशन सेंटरों और जेलों में न जाने कितने सरबजीत हलाक हो गए हैं। क्या उनकी कहानियां भी खबरनवीसों की कलम की जीनत बनी हैं? नहीं ना? क्यों?
कुलभूषण जाधव की बात करें। वह तो आज भी पाक जेल में बंद है। मौत की सजा के पहले ही तिल-तिल कर मरती जिंदगी जीता एक इंसान है। सरकारी स्तर पर कुलभूषण को बचाने के जो प्रयास हो रहे हैं, ऐसे कितनों के लिए हुए हैं? पाक जेलों और इंट्रोगेशन सेंटरों में न जाने कितने कुलभूषण आज भी सड़ रहे हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। क्यों?
भारत के सीमांत इलाकों से ऐसे सैंकड़ों नाम मिलते हैं, जिनकी जिंदगी सरहद पार नरकों में धड़कती रही। वे जिंदा भले लौटे, अपनी दास्तां बताने की हिम्मत नहीं कर पाते। किसी से बात करें तो दशक भर बाद भी दहाड़ें मार कर रोता है। किसी से वहां के किस्से सुनाने को कहें तो थरथर कांपने लगता है। किसी से जासूसी तंत्र का पर्दाफाश करने के लिए कुछ सवाल पूछें तो शक की निगाहों से देखते चुप हो जाता है। ऐसी ‘जिंदा लाशों’ से सीमांत गावों, कस्बों, शहरों के घर पटे पड़े हैं।
‘नरक सरहद पार’ किताब नहीं, दस्तावेज है। वक्त की दास्तान कहता, इंसानियत की कहानियां सुनाता, हैवानियत के राज बताता, हुक्मरानों की घटिया राजनीति का पर्दाफाश करता, अफसरान के लालच की परतें उधेड़ता, मजलूमों की जख्म उघाड़ कर पेश करता, औरतों की अस्मत के लुटेरों को बेनकाब करता, दीन के नाम ईमान के सौदे करते पोंगापंथियों का झूठ बेपर्दा करता, दो मुल्कों में बेवजह खूनखराबे को रेखांकित करता, इतिहास का पैरोकार बनता दस्तावेज है।
अध्याय
- जन्नत के नजारे
- झूठे फरिश्ते से मुलाकात
- नरक की ओर
- नरक नंबर 1 – गोरा जेल उर्फ एफआईयू-702
- छोटा नरक – सियालकोट पुलिस चौकी
- नरक नंबर 2 – जिला जेल सियालकोट उर्फ जिंदा लोगों का कब्रिस्तान
- नए नरक का सफर– सियालकोट से मुल्तान का सफर
- नरक नंबर 3 – सेंट्रल जेल मुल्तान
- नरक से निकासी – सदमा और खुशी एक साथ
- नरक इस पार – वतन में सदमा, बेरुखी और जलालत
मुख्य बिंदु
- भारतीय और पाकिस्तानी खुफिया एजंसियों के बीच मचे घमासान और एक-दूसरे पर बढ़त हासिल करने के चक्कर में अपने ही देश के युवजनों के सपनों और जिंदगी के हत्यारे बन गए अफसरों की सच्ची कहानी पेश करती है नरक सरहद पार…
- भारत-पाकिस्तान के बीच पिछले 7 दशकों से बिना कारण जारी छद्म युद्द में हजारों जिंदगियां तबाह हो चुकी हैं, उनमें से कुछ की सच्ची कहानी पेश करती है नरक सरहद पार…
- गरीबी से बाहर निकलने की जद्दोजहद और सपने पूरे करने के लिए मचलते मासूम, हसीन और जवान ख्वाबों को कुचलने की साजिशाना हरकतों का भंडाफोड़ करती है नरक सरहद पार…
- इंसान के लालच और धूर्तता की निम्नतम कोटि की हरकतों की गवाह है नरक सरहद पार…
- दो देशों के बीच झूठ बेचते हुक्मरानों के घृणित खेल का पर्दाफाश करती है नरक सरहद पार…
- जासूस-जासूस खेलते हुए कब दो देशों के सियासतदां, हुक्मरान, अफसरान अपने ही लोगों का कत्ल करवाने लगे, ये उन्हें ही नहीं पता चला, जिसका कच्चा चिट्ठा खोलती है नरक सरहद पार…
- पाकिस्तान में एक तरफ दरिंदगी, तो दूसरी तरफ इंसानियत की सच्ची मिसालें पेश करती है नरक सरहद पार…
- भारत और पाकिस्तान के बीच एक दशक तक क्या हालात रहे, उनका सच्चा और जीवंत दस्तावेज सामने रखती है नरक सरहद पार…
- भारत ही जीता है पाकिस्तान, हिंदुस्तान ही दिलों में बसाता है पाकिस्तान, इंडिया ही मन में समोता है पाकिस्तान, जिसे हर पल – हर क्षण जताती है नरक सरहद पार…
- पाकिस्तान के रावलपिंडी, इस्लामाबाद, लायलपोर, लाहौर समेत कई शहरों में रवां जिंदगी के हर पल का आखों देखा हाल पेश करती है नरक सरहद पार…
- गोरा जेल उर्फ एफआईयू-702 इंट्रोगेशन सेंटर की वहशियत और दरिंदगी, जिला जेल सियालकोट उर्फ जिंदा लोगों का कब्रिस्तान में हिंदुस्तानी कैदियों के शव नाले में फेंकने जैसी जालिम और दुष्ट हरकतें, सेंट्रल जेल मुल्तान में पागल कैदियों की सड़ांध मारती कोठरियों और जिस्मों के बीच बांटी जाती मौत का आईना है नरक सरहद पार…
- सियालकोट पुलिस चौकी की अंधेरी, गलीच, बदबूदार कोठरी और सदर थाना सियालकोट में इंसानों को पशुओं से बदतर तरीके से रखने की कहानियां सामने लाती है नरक सरहद पार…
- पाक अदालतों में हर पल इंसाफ के कत्ल की अंदरूनी खबरें दर्ज करती है नरक सरहद पार…
- सरहद पार के एक नरक से निकल कर सरहद इस पार अपने ही वतन में बने दूसरे नरक में आने की सच्चाई बयान करती है नरक सरहद पार…
- हिंदुस्तानियों के लिए कुछ अफसरों में एक तरह हद दर्जे की नफरत, तो कुछ में फरिश्तों सी मुहब्बत भी दिखाती है नरक सरहद पार…
- अवाम में हिंदुस्तानियों के लिए कितनी-कितनी मुहब्बत भरी है है… सिर्फ और सिर्फ यही जताती है नरक सरहद पार…
- पाकिस्तान कैसे भारत की कश्मीर घाटी और पंजाब में आतंकी घटनाओं को हवा दे रहा है, उसकी पूरी तफसील पेश करती है नरक सरहद पार…
- फौजी हुकूमत कैसे आजादी की मांग करने वालों को बूटों तले रौंदती है, बंदूकों के दहानों से निकली आग से भूनती है, कैसे इंसानी लहू नालियों-सड़कों पर बहाती है, उसका आंखों देखा हाल है नरक सरहद पार…
- भारतीय तो पाक कैदियों से अच्छा सलूक करते हैं, लेकिन वे नहीं… यही कारण है कि विनोद साहनी कहते हैं कि हम उनके मरने नहीं देते, वो हमारे जिंदा नहीं छोड़ते… और यही साबित करती है नरक सरहद पार…
- न जाने कितने सरबजीत पाकिस्तान के इंट्रोगेशन सेंटरों और जेलों हलाक हो गए… न जाने कितने कुलभूषण जाधव आज भी पाक जेलों और इंट्रोगेशन सेंटरों में सड़ रहे हैं… उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं… यही जताने की कोशिश है नरक सरहद पार…
यही है “नरक सरहद पार”… यही है आपके हिस्से की बेहिस जन्नत…
वीडियो इंटरव्यू लिंक
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 1
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 2
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 3
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 4
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 5
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 6
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 7
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 8
नरक सरहद पार पाकिस्तान: जांबाज जासूस विनोद साहनी की कहानी – भाग 9