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Mumbai Mafia: Secrets of Haji Mastan: Part 07: मस्तान की जकात के लिए पुरे देश से आते थे लोग

इंद्रजीत गुप्ता

मुंबई, 02 मार्च 2023।

हाजी मस्तान जितना सोने की तस्करी, फिल्मी और राजनितिक हस्तियों से रिश्तों के कारण मशहूर रहा, उतना ही नाम उसकी जकात देने और दयानतदारी के कारण भी हुआ। उससे जकात लेने पूरे देश से लोग मुंबई आते थे।

हाजी मस्तान की हज हाऊस इलाके में कई दुकानें थीं। यहीं पर उनका डायमंड सोशल क्लब भी था, जो एक तरह से जुआघर ही था। यहां ताश का जुआ चला करता था।

मस्तान हज हाऊस की मस्जिदों में रमजान के 27वें रोजे पर जकात दिया करते थे, जिसे लैलतुल कद की रात कहा जाता है।

कहा जाता है कि रमजान के 27 रोजा का दिन बहुत ही नेक होता है। कुरान के मुताबिक रोजे के 21, 23, 25, 27 और 29वें दिन बहुत पाक होते हैं। इस दिन जो आदमी नेक काम करता है, उसका शबाब एक के बदले 1,000 मिलता है।

इस्लाम के जानकार बताते हैं कि ऊपर वाले ने कहा है कि रमजान में 27 की रात को एक नमाज या एक दुआ का हजार गुना ईनाम मिलेगा यानी बरकत मिलेगी। लैलतुल कद रात पर जो लोग जकात देते, नमाज पढ़ते, रात को बुजुर्गों की याद करते, उनकी कब्र पर जाते हैं, रात भर तहरीर देते हैं, कलमा पढ़ते हैं, गरीबों को खाना खिलाते, उन्हें एक हजार सवाब मिलता है। इसे बड़ी रात भी कहा जाता है। वह पूरी रात ईस्लाम के अनुयायी जाग कर काटते हैं।

इसी कारण मस्तान रोजे के 27वें दिन जकात देता था। हिंदुस्तान भर से मदरसे, अनाथालय, वृद्धाश्रम इत्यादि संचालित करने वाले लोग 27वें रोजे पर वहां आते थे। मस्तान को अपने कागजात दिखाते थे। वे बताते कि उनके पास कितने बच्चे पढ़ते या अनाथ रहते हैं। कितनी बेवा महिलाएं या बुजुर्ग रहते हैं। वे अपने सालाना खर्च का हिसाब बताते थे। इस मस्तान सबसे पहले बाहर से आए लोगों को उनकी जरूरत के हिसाब से मदद करते थे।

जो लोग जकात के लिए आते थे, उन्हें मस्तान हज हाऊस की मस्जिद में ही ठहराते थे। रात की नमाज होने पर 10 बजे के बाद वे सबसे मिलते थे। किसी को सौ, किसी को 200 तो किसी को 500 रुपए देते थे। यह बात पूरे हिंदुस्तान में मशहूर थी कि मस्तान रात 10 से सुबह 5 बजे तक हर जरूतमंद को मदद देते हैं।

कहा जाता है कि मस्तान एक बैग में पैसे लाता था। पास की एक दुकान में उसके कारिंदे बैठे होते थे। जब एक बैग की रकम खत्म हो जाती थी, तो दासरा बैग दुकान से लाकर मस्तान के पास रख दिया जाता था। इस तरह तकरीबन 20 से 25 लाख रुपए उस जमाने में भी वह जकात में दान करते थे।

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