Mumbai Mafia: करीम लाला की चरस-गांजा का अड्डा थी नूर बिल्डिंग, कई कमरे बांग्लादेशियों को तोहफे में दे डाले
इंद्रजीत गुप्ता
मुंबई, 03 मार्च 2023।
यह सन 1986 की बात है। चार नल के पास नूर मस्जिद के सामने नूर बिल्डिंग करीम लाला की मिल्कियत थी। इसमें कई बांग्लादेशी परिवार रहते थे, जिन्हें करीम लाला ने उपहार में ये घर दे दिए थे।
उन दिनों करीम लाला चरस व गांजे की तस्करी करता था। यह माल अफगानिस्तान से पठानों के जरिए मंगवाया जाता था।
उस जमाने में पुलिस चरस और हशीश पकड़ने के मामले में बहुत सक्रिय थी। जब अफगानिस्तान से करीम लाला के पास माल आ जाता था, तब उसे छुपाने का अड्डा नूर बिल्डिंग ही थी। उसके सात-आठ कमरे करीम लाला ने लोगों की नजर में किराए पर दे रखे थे।
इन कमरों में बांग्लादेशियों को करीम लाला के कारिदों ने बसा रखा था। ये बांग्लादेशी 1945 के पहले ही भारत आ चुके थे। तब तक तो हिंदुस्तान का बंटवारा भी नहीं हुआ था।
ये बांग्लादेशी करीम लाला के विश्वस्त थे और उसका ही काम करते थे। चरस-गांजा इनके घरों में छुपाया जाता था। ये लोग अपने घरों में खुशी-खुशी चरस-गांजा छुपाते थे क्योंकि उन्हें सिर चुपाने की जगह के साथ में मोटी रकम भी मिला करती थी। यही उनकी आजविका होती थी।
जब करीम लाला ने यह काला कारोबार बंद करने का विचार किया, इन बांग्लादेशियों की जरूरत नहीं रही। तब ये घर भी गिरोह के बंदों ने खाली करने के लिए बांग्लादेशियों को फरमान सुना दिया। इस फैसले से हैरान बांग्लादेशियों ने करीम लाला से कहा कि हमारा तो यही आशियाना रहा है, अब हम सब परिवार के साथ कहां जाएंगे?
करीम लाला ने दरियादिली दिखाते हुए तमाम घर बांग्लादेशियों को रहने के लिए उपहार में सौंप दिए। उसने कहा कि जाइए, आज के बाद से घर आपके हुए।
इन बांग्लादेशियों ने परिवार के पालन-पोषण के लिए करीम लाला की जेल रोड वाली इमारत पर बतौर वॉचमैन नौकरी कर ली थी।
करीम लाला बहुत दिलदार इंसान था। वह कभी किसी को तकलीफ नहीं देता था। डोंगरी बाल सुधार गृह की दीवार से लगी सड़क पर ही उसकी इमारत तामीर थी। वहीं उसकी शाम गुजरती थी। वहां का रास्ता बंद हो जाता था। खाट पर दरियां बिछा कर रास्ते पर ही हुक्के लग जाते थे। करीम लाला की बैठक जम जाती थी।
इसमें से ही एक घर एक महिला ने कुछ बाद 1 लाख 60 हजार रुपए में बेच दिया था। तब उसकी कीमत डेढ़ लाख होती थी। उसके घर बेचने का कारण था कि उसके तीनों लडके अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ एक ही कमरे में रहते थे। उनका गुजारा नहीं हो रहा था।
घर का खरीददार जब कब्जा लेने आया तो औरत फूट-फूट कर रोने लगी। खरीददार ने महिला से कहा कि अम्मा मैं तुम्हें डेढ़ लाख की जगह एक लाख साठ हजार दे रहा हूं।
महिला ने रोकर कहा कि ये घर मेरे पति की आखिरी निशानी है, उसने पांच हजार में ये घर लिया था। मेरे बेटे इतने निकम्मे हैं कि उन्होंने दूसरा घर नहीं लिया। इसी घर में रह रहे हैं। हालात ऐसे आ गए कि आज पति की निशानी भी छोड़ कर जाना पड़ रही है। इस घर से मेरा बहुत लगाव है।
बेटों ने मां को घर बेचने से रोकने के लिए कहा कि इस घर के हम भी हकदार हैं। हम यहीं पैदा हुए यहीं पले-बढ़े और बड़े हुए हैं। मां ने जब घर बेचने की तैयारी दिखाई, तब बेटे मामला अदालत में ले गए। आज भी यह मामला अदालत में चल रहा है।