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कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 10: सुकून

यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक

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सुकून

“पांच मिनट रुक सकते हैं आप?” सलमा ने ग्राहक से बहुत विनम्र गुजारिश की।

“क्यों?” ग्राहक हैरान हुआ।

“ईशा की नमाज का वक्त है…” सलमा ने ग्राहक की आंखों के भाव पढ़ने चाहे।

“तुम नमाज पढ़ती हो!?” अब तो ग्राहक अचरज के सागर में गोते लगाने लगा।

“मैं क्यों नहीं कर सकती नमाज?”

“बेशक कर सकती हो, लेकिनsss…”

“क्या लेकिन?”

“तुम जिस काम में हो, खुदा के सामने सजदे का क्या मतलब?”

“क्यों मतलब नहीं!? मेरी रूह को जरूरत है… उसे भी सुकून चाहिए… उसे भी तो उस खुदाई नूर से मिलने की तमन्ना है, जिसके बिना ये दुनिया कुछ नहीं, जिसने ये कायनात बनाई है… मेरी रूह भी इंसान बनना चाहती है…”

“इंसान तो तुम हो ही…”

“पता नहीं हूं या नहीं, होना जरूर चाहती हूं… ये बात और है कि दौरे जमाना नहीं चाहता कि हम दुनिया के मालिक की बंदगी करें… मेरी इबादत उस तक पहुंचे – ना पहुंचे, मेरे दिल को सुकून तो पहुंचता है, मेरे लिए इतना ही काफी है…”

“तुम इतमिनान से नमाज करो, मैं इंतजार करूंगा…”

“तुम भी तो मुसलमान हो, नमाज क्यों नहीं करते?”

“जाने दो, लंबी कहानी है… बंदों की बंदगी कर ली, वही मेरी नमाज है… तुम अपना फर्ज अदा करो…” ग्राहक ने लंबी सांस ली लेकिन सलमा को लगा कि उसके दिल से आह सी निकली है।

सलमा ने बात नहीं बढ़ाई, ना जिरह की, बस सिर पर दुपट्टा ओढ़ा, मुसल्ला बिछाया, नमाज पढ़ने लगी। नमाज पढ़ती सलमा को ग्राहक इत्मीनान से देखता रहा। नमाज सलमा पढ़ रही थी, दिल को तसल्ली और सुकून ग्राहक को मिल रहा था।

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