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कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 09: शराबी

यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक

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शराबी

आठ महीने की गर्भवती रजनी के लिए धंधे पर बैठना जरूरी है। बैठेगी नहीं, तो कमाएगी कैसे! कमाई नहीं हुई, तो बच्चे के बाद खाएगी क्या! खाएगी नहीं, तो बच्चे को दूध क्या पिलाएगी! वो भी सड़क किनारे ग्राहक पटा रही है। उसके पास एक शराबी आकर रुका।

“आता क्या?” रजनी ने उसे आंख मारी।

“कितना?” शराबी खड़ा खड़ा झूल रहा है। कोई और दिन होता तो रजनी उसने देखती नहीं। आज तो उसकी मजबूरी है।

“बीस…” रजनी ने रोजाना वाला रेट बताया।

“चल बीस वाली… मटका लगा के बीस मांगती है…” शराबी ने उसे झिड़का।

“तू बोल…” रजनी ने सौदेबाजी शुरू की। 

“पांच…” शराबी सबसे नीचे जा पहुंचा।

“तेरा ना मेरा, दस दे…” रजनी ने कुछ अधिक पैसे हासिल होने की उम्मीद में बात बढ़ाई।

“चल, तू भी क्या याद करेगी…” शराबी ने मान गया।

“चल ऊपर रूम में…” रजनी ने ऊपर जाने वाली सीढ़ियों की तरफ इशारा किया।

शराबी दो-दो सीढ़ियां एक साथ चढ़ने लगा। रजनी सोचने लगी कि या तो बहुत पिया है, या बहुत बेसब्र है। जो हो, अपने को क्या, दस तो दस सही, अंधे से काने मामा भले!

पहली मंजिल पर पहुंच कर आगे बढ़ रजनी ने कमरे का परदा खोला। शराबी उसके पीछे आया। उसने जेब से पांच सौ का कड़क नोट निकाल कर रजनी की तरफ बढ़ा दिया।

“ले…”

“ये क्या!!?” रजनी की आंखें फैल गईं।

“रख ले, काम आएगा… और मंगता तो जास्ती देगा…”

“तू इतना कायकून देता तू!?”

“बस दिया तेरे को… मेरी जोरू पेट से थी, उस पर मैं चढ़ गया… उसका बच्चा मर गया… तुझे पेट से हो के धंधा करते देखा, तो अच्छा नई लगा…”

“में ऐसई नई लेगी…”

“रख ले… दिमाक नई लगाने का, जस्ती दिमाक लगाएगी तो फट जाएगा… पकड़…” रजनी के हाथ में नोट पकड़ा कर शराबी दो-दो सीढ़ियां उतरता गया। रजनी खाली सीढ़ियां देखते काफी देर हतप्रभ खड़ी रह गई।

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