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कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 08: बकरे

यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक

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बकरे

“बोलो दोस्त, बैठना है क्या?” पप्पू दलाल ने सहमे हुए से छह लड़कों को कमाठीपुरा की सड़कों पर घूमते देखा, तो फौरन ताड़ लिया कि नए बकरे फंसे हैं।

“सोच तो रहे हैं…” एक लड़के ने निडर और बिंदास होने का दिखावा किया।

“तो चलो मेरे साथ, एक से बढ़ कर एक माल दिखाएगा… नया जवान कड़क छोकरी है…”

“रेट बोलो…” लड़के ने होशियारी दिखाई।

“एक का सौ…”

“एक लड़की का?”

“नहीं दोस्त, एक भाई के एक बार बैठने का…”

“रेट ज्यादा बोला आपने…” लड़के ने मोलभाव शुरु किया।

“अच्छे माल का अच्छा रेट… तुम सब बैठोगे तो कमी कर देगा… बोलो?”

“कितना?”

“अस्सी…”

“पचास देंगे…”

“ठीक है, पचास तो पचास सही… आओ…” पप्पू आगे चल दिया। छहों लड़के पीछे-पीछे चल दिए। वे एक अंधियाले से कमरे में पहुंचे। अभी लड़के कुछ सोच पाते, गुंडे से दिखने वाले पांच आदमी भी कमरे में आ घुसे। एक ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। यह देख कर छहों लड़कों के दिल धड़कने लगे। 

“चल, जेब खाली कर…” अब पप्पू असली औकात पर आ गया।

“पहले माल दिखाओ…” लड़के ने हौसला दिखाया।

“ये देख माल…” पप्पू ने आगे बढ़ कर नेतागिरी कर रहे लड़के को जोरदार थप्पड़ जड़ा। वो चकरा कर लहराया और दीवार के सहारे जा टिका। उसकी हालत देख बाकी पांचों की रूह भी जम गई।

“अभी तुम लोग एक का पांच हजार देने का…” पप्पू की दहाड़ सुन लड़कों की हालत खस्ता हो गई।

“हमारे पास इतना पैसा नहीं है…” रूआंसा सा लड़का बोला।

“कितना है, सब निकाल…” पप्पू ने घुड़का।

“आठ हजार…”

“निकाल…” लड़के ने जेब से रकम निकाली कि पप्पू ने लपक ली।

“चलो ऊपर… अभी माल दिखाता है…”

“हमें कुछ नहीं चाहिए, हमें जाने दो…” दूसरे लड़के ने हिम्मत दिखाई। उसे भी पप्पू का झन्नाटेदार तमाचा पड़ा।

अब सबकी हिम्मत टूट गई। पप्पू आगे चला, लड़के डर के मारे उसके पीछे चले।

ऊपर की मंजिल पर एक हॉलनुमा कमरे में सब पहुंचे। यहां पप्पू ने लड़कों को मोटी-भद्दी छह औरतें दिखाईं। लड़कों की हालत खराब थी, ऐसे में किसी से संबंध क्या बनाते। पप्पू के डर से औरतों के साथ लड़के कमरों में गए जरूर लेकिन किसी से संबंध नहीं बनाए। सभी लड़के कुछ देर तक कमरों में दुबके बैठे रहे। कुछ देर बाद सब बाहरी कमरे में आए, वहां पप्पू नहीं दिखा। सबकी जान में जान आई। सभी लड़के तेजी से कोठे के नीचे पहुंचे। उन्होंने चारों तरफ जायजा लिया। पप्पू दूर-दूर तक नहीं दिख रहा है। सब ग्रांट रोड स्टेशन की तरफ सरपट भागे। किसी ने एक शब्द नहीं बोला। उनके दिमाग में भी नहीं आया कि इस लूट की शिकायत पुलिस में करें। नया डर उन पर तारी हो गया कि कहीं उनके घर में पता चल गया तो क्या होगा!

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