कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 04: गालियां
यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक
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गालियां
“तू गाली कायको दिया रे?” ईला ने भद्दी गालियां ग्राहक के मुंह से सुनी तो बौखला गई।
“चल साली रंडी, मेरे से मुंजोरी करती है… मादर@#*#, भैन*#@+, कुत्ति, चु#@*@मारी की…” ग्राहक ने गालियों की बारिश कर दी।
ईला एक पल के लिए सहम गई। ये कैसा मरद है, कितना गाली देता है। इसके साथ बैठेगी कैसे!?
“ऐ रांड, चल काम आगे बढ़ा…”
“अरे पन तू ऐसा बोलेगा, तो बैठेगी कैसे रे!?”
“हरामजादी मैंने मूं मत लग… तेरी चू*#@ फाड़ देगा… बहुत बोलती तू…” ग्राहक और अभद्रता से पेश आया।
“तेरे मूं नई लगती, पन बोल तो अच्छा… कान को तपलीक होता रे…” ईला ने इल्तिज़ा की।
“तेरे कान में डाल देगा अभी जास्ती बोली तो…”
“अरे तू तो चढ़ता जा रहा है रे… मन्नूsss… ऐ मन्नू sss…” ईला जोर से चिल्लाई। मन्नू दलाल दौड़ता आया।
“क्या हुआ?! क्या हुआ!?” मन्नू ने कमरे का परदा उठाया।
“निकाल इसे घर से… साला गाली देता जा रहा है…”
“तू साली रांड मेरे को निकालेगी, सबके पिछवाड़े में गरम सरिया डाल देगा… तू जानती नई मेरे को…”
“निकाल रे इस स्याने को… खबीस टाईम खोटी किया…”
ग्राहक का हाथ पकड़ मन्नू खींच कर कमरे के बाहर करने लगा। ग्राहक ने गालियां दे-देकर आसमान सिर पर उठा लिया। दूसरे कमरे की लड़कियां भी सहम कर बाहर झांकने लगीं। सड़क पर पहुंच कर भी ग्राहक की गालियों की सुनामी शांत नहीं हुई। ईला कमरे में संयत होते की कोशिश करती रही।
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