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कमाठीपुरा कथाएं: गिराहक 01: फिरेंच किस्स

यहां पेश कमाठीपुरा की सच्ची कथाएं किताब ‘कमाठीपुरा‘ का हिस्सा नहीं बन पाईं। सभी पुस्तक-प्रेमियों के लिए लेखक विवेक अग्रवाल ने कुछ कहानियां इंडिया क्राईम के जरिए बतौर तोहफा पेश की हैं। आप भी आनंद उठाएं। – संपादक

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फिरेंच किस्स

“साला, हलकट, कुत्ता…” आभा गालियां देते हुए सीढ़ियां उतरती गई। उसकी गालियां कम नहीं हो रही हैं। चेहरे से ढेर सारी नफरत और घृणा का लावा पिघल-पिघल कर बह रहा है।

“क्या हुआ, कायको धंधे के टाईम पे गाली निकालती है?” बिंदू ने पूछ लिया, जो ग्राहक के इंतजार में पिछले तीन घंटे से खड़ी हुई बोर हो रही है। उसे लगा कि अब कुछ बढ़िया सा सुनने को मिलेगा। थोड़ी बोरियत ही दूर होगी।

“साला, गटर का मुं ले के आ गया… बोलता है ‘फिरेंच किस्स’ (फ्रेंच किस) करेगा…” आभा अभी भी भन्नाई हुई है।

“बोले तो?” बिंदू को इस ऊटपटांग शब्द के बारे में जानने की उत्सुकता जगी।

“साला होंठों से होंठ लगा के चुम्मी लेगा…” आभा ने घृणा से ढेर सारा थूक जमीन पर उगल दिया।

“तेरा प्रॉब्लम क्या है, करने दे चुम्मा… गिराहक है, जो बोलेगा, तेरे को करना मंगता है…” बिंदू ने वही पाठ आभा को पढ़ाया, जो हर दिन हजार बार घरवाली पढ़ाती है।

“मैं किदर ना बोली…”

“तो?”

“साला मूं पास लाया तो गटर का माफिक बास मारता था… मैं बोली कि जा के दांत घिस के आ…”

“किया वो?”

“किया ना, फिर भी इतना सड़ेला बास मारता था, एक सेकेंड भी उसके पास नहीं रुक पाती थी… साले हलकट को रूम के बाहर कर दी… पैसा वापस भी कर दी… कैसा-कैसा मरद है दुनिया में…”

“हां रे, तू सई बोली…” बिंदू ने सहमति जताई। उसका पूरा ध्यान सड़क पर लगा है। कोई तो ग्राहक लगे, आज धंधा ही नहीं हुआ। उसकी बदबू मारने वाले ग्राहक में कोई रुचि नहीं है।

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